तेलंगाना विधानसभा भंग, टीआरएस ने 105 उम्मीदवारों की घोषणा की

हैदराबाद : तेलंगाना की टीआरएस सरकार ने एक बड़ा राजनीतिक दांव चलते हुए गुरुवार को राज्य विधानसभा को उसके निर्धारित समय से कुछ महीने पहले ही भंग करने की सिफारिश कर दी. टीआरएस को उम्मीद है कि पार्टी प्रमुख के चंद्रशेखर राव के करिश्मे और बिखरे विपक्ष की वजह से वह लगातार दूसरी बार सत्ता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 6, 2018 4:07 PM

हैदराबाद : तेलंगाना की टीआरएस सरकार ने एक बड़ा राजनीतिक दांव चलते हुए गुरुवार को राज्य विधानसभा को उसके निर्धारित समय से कुछ महीने पहले ही भंग करने की सिफारिश कर दी. टीआरएस को उम्मीद है कि पार्टी प्रमुख के चंद्रशेखर राव के करिश्मे और बिखरे विपक्ष की वजह से वह लगातार दूसरी बार सत्ता में आ जायेगी.

माना जा रहा है कि पार्टी लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ होने की स्थिति में ‘केसीआर बनाम मोदी’ मुकाबले को भी टालना चाहती थी. इस बीच राव ने विधानसभा की 119 सीटों में से 105 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. पार्टी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए उसे तेलंगाना की सबसे बड़ी दुश्मन बताया. राव ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देश का ‘सबसे बड़ा मसखरा’ बताया. हालांकि, उन्होंने भाजपा की आलोचना से परहेज किया. हफ्तों से चल रही अटकलों को विराम देते हुए, मुख्यमंत्री राव ने राज्य कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता की जिसमें विधानसभा भंग किये जाने का प्रस्ताव पारित किया गया. राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने सिफारिश को स्वीकार कर लिया और 2014 में बनी राज्य की पहली सरकार के मुखिया राव को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर पद पर बने रहने को कहा गया.

राजभवन ने एक विज्ञप्ति में कहा कि मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सिफारिश को स्वीकार करते हुए राज्यपाल ने चंद्रशेखर राव और उनकी मंत्रिपरिषद को कार्यवाहक सरकार के रूप में काम करते रहने का अनुरोध किया. चंद्रशेखर राव ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया. कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे चंद्रशेखर राव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच संदिग्ध समझौते का नतीजा बताया. पिछले कुछ हफ्तों से अटकलों का बाजार गर्म था कि राव विधानसभा भंग कर जल्दी चुनाव की सिफारिश कर सकते हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि अगले साल लोकसभा चुनाव के दौरान स्थानीय कारकों पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो जायें. टीआरएस महसूस करता है कि स्थानीय कारक उसके पक्ष में हैं. सामान्य रूप से राज्य में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ अगले साल अप्रैल-मई में होते.

उम्मीद है कि राज्यपाल नरसिम्हन राज्य के राजनीतिक घटनाक्रम पर केंद्र को रिपोर्ट सौंपेंगे और विधानसभा भंग किये जाने के बारे में चुनाव आयोग को औपचारिक रूप से सूचित करेंगे. राज्य में जल्दी चुनाव कराये जाने के बारे में अंतिम फैसला निर्वाचन आयोग को करना है. आयोग के पास चुनाव कराने के लिए छह महीने तक का समय है. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने नयी दिल्ली में कहा कि यह चुनाव आयोग को फैसला करना है कि वह चार अन्य राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के साथ ही यहां भी विधानसभा चुनाव कराये. टीआरएस के वरिष्ठ नेता और सांसद के केशव राव ने एक टीवी न्यूज चैनल से कहा, ‘आज, यह केसीआर बनाम कोई नहीं है. छह महीने बाद, यह केसीआर बनाम (नरेंद्र) मोदी अभियान हो जाता.’

सत्तारूढ़ पार्टी सूत्रों ने कहा कि राव महसूस कर रहे थे कि उनकी सरकार के पक्ष में सकारात्मक माहौल है और वह इसका लाभ उठाना चाहते थे. उन्होंने कहा कि राव ने महसूस किया कि उनकी सरकार द्वारा शुरू किये गये लोकप्रिय कार्यक्रमों का फायदा उन्हें चुनाव में होगा. कैबिनेट की बैठक के बाद राव ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हर कोई राहुल गांधी को जानता है. वह देश के सबसे बड़े मसखरा हैं. पूरे देश ने उन्हें देखा कि वह किस प्रकार लोकसभा में नरेंद्र मोदी के पास गये और उनसे गले मिले.’ राव ने कहा कि मोदी के साथ उनके संबंध पूरी तरह से सरकार से सरकार, संविधान के हैं और निजी नहीं हैं. उन्होंने कहा, कांग्रेस तेलंगाना की सबसे बड़ी शत्रु और विलेन है. यह जवाहरलाल नेहरू थे जिन्होंने उस समय तेलंगाना क्षेत्र को अन्य तेलुगूभाषी क्षेत्रों के साथ लोगों की इच्छा के खिलाफ मिला दिया. इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में अलग राज्य के आंदोलन को कुचल दिया.

कांग्रेस की तेलंगाना इकाई के मुख्य प्रवक्ता श्रवण दासाजु ने कहा कि अगर, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते तो राज्य में यह राहुल गांधी बनाम मोदी मुकाबले में बदल जाता तथा इससे कांग्रेस को फायदा होता. 120 सदस्यीय विधानसभा को भंग किये जाने से पहले सदन में टीआरएस के 82 सदस्य थे, जबकि कांग्रेस के 17, एआईएमआईएम के सात, भाजपा के पांच, तेदेपा के तीन सदस्य थे। दो सीटें रिक्त थीं, जबकि भाकपा और माकपा के एक-एक सदस्य थे. एक विधायक निर्दलीय थे, जबकि एक सदस्य मनोनीत थे.

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