संयुक्त राष्ट्र ने समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया

नयी दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र के भारत स्थित कार्यालय ने दो वयस्कों के बीच ‘खास यौन संबंधों’ को अपराध ठहराने वाले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक अहम हिस्से को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय कै फैसले की गुरुवार को सराहना की और कहा कि इस फैसले से एलजीबीटीआई व्यक्तियों पर लगा धब्बा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 6, 2018 5:37 PM

नयी दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र के भारत स्थित कार्यालय ने दो वयस्कों के बीच ‘खास यौन संबंधों’ को अपराध ठहराने वाले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक अहम हिस्से को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय कै फैसले की गुरुवार को सराहना की और कहा कि इस फैसले से एलजीबीटीआई व्यक्तियों पर लगा धब्बा और उनके साथ भेदभाव खत्म करने के प्रयासों को बल मिलेगा.

साथ ही उम्मीद जताई कि यह फैसला एलजीबीटीआई व्यक्तियों को पूरे मौलिक अधिकारों की गारंटी देने की दिशा में पहला कदम होगा. एक बयान में उसने कहा कि दुनियाभर में यौन रुझान और लैंगिक अभिव्यक्ति किसी भी व्यक्ति की पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं तथा इन तत्वों के आधार पर हिंसा, दाग या भेदभाव मानवाधिकारों का ‘घोर’ उल्लंघन है.

इसे भी पढ़ें…

#Section377 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सहमति से बने समलैंगिक संबंध अपराध नहीं

उसने एक बयान में कहा, भारत स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अहम हिस्से के निरस्तीकरण से संबंधित उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता है जो बालिगों के बीच विशेष यौन कृत्यों को अपराध ठहराता है. यह ऐसा कानून है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का है और उसके निशाने पर खासकर लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्ति एवं समुदाय रहे हैं.

उसने कहा, भारत में संयुक्त राष्ट्र का कार्यालय उम्मीद करता है कि अदालत का यह फैसला एलजीबीटीआई व्यक्तियों को पूरे मौलिक अधिकारों की गारंटी देने की दिशा में पहला कदम होगा. हम यह भी आशा करते हैं कि इस फैसले से सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रियाकलापों के सभी क्षेत्रों में एलजीबीटीआई व्यक्तियों के विरुद्ध दाग और भेदभाव खत्म करने के प्रयासों को बल मिलेगा और सच्चे अर्थों में समावेशवी समाज सुनिश्चित होगा.

इसे भी पढ़ें…

#377Verdict: जैसे ही आया फैसला इस होटल में डांस करने लगे लोग, देखें वीडियो

उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने भादसं की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने उस प्रावधान को अपराध की श्रेणी से दूर कर दिया जो अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध बताता है.

Next Article

Exit mobile version