समलैंगिकता कोई विकार नहीं जो उसके लिए उपचार की जरूरत हो

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करके एलजीबीटीक्यू समुदाय के उन लोगों को बड़ी राहत प्रदान की जो समाज की उपेक्षाएं झेलते रहे हैं. इससे पहले समलैंगिकता को मनोविकार या बीमारी की श्रेणी में रखने को लेकर बहस चलती रही है लेकिन शीर्ष अदालत की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2018 11:35 AM

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करके एलजीबीटीक्यू समुदाय के उन लोगों को बड़ी राहत प्रदान की जो समाज की उपेक्षाएं झेलते रहे हैं. इससे पहले समलैंगिकता को मनोविकार या बीमारी की श्रेणी में रखने को लेकर बहस चलती रही है लेकिन शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने आईपीसी की धारा 377 को समाप्त कर इस बहस को समाप्त कर दिया है.

इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी और इंडियन साइकेट्रिक एसोसिएशन जैसे संगठनों ने भी फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि अब समलैंगिकता को अपराध की दृष्टि से देखना बंद होना चाहिए. पेश हैं इस संबंध में जानेमाने मनोचिकित्सक और फोर्टिस हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहार विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ समीर पारिख पांच सवाल और उनके जवाब…

प्रश्न : देश में मनोचिकित्सकों की नजर में समलैंगिकता क्या है? क्या इसे मनोविकार माना जाता रहा है या यह प्राकृतिक है जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है?
उत्तर : समलैंगिकता कोई विकार या बीमारी नहीं है जिसके लिए मनोवैज्ञानिक उपचार की जरूरत हो. हम इसे कभी मानसिक समस्या नहीं मानते. यह यौन प्रवृत्ति है जो पूरी तरह जैविक है। यह विपरीतलिंगी लोगों के साथ संबंधों की तरह ही मानवीय यौन प्रवृत्ति का एक स्वरूप है.

प्रश्न : अब तक समलैंगिकता की ओर झुकाव रखने वाले लोगों के लिए ‘कन्वर्जन थैरेपी’ या यौन संबंधों की प्रवृत्ति बदलने की बात होती थी. इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी ने कहा है कि न्यायालय के फैसले से इन थैरेपीज पर लगाम लगेगी. आखिर होना क्या चाहिए?
उत्तर : समलैंगिकता कोई विकार है ही नहीं तो इसमें किसी तरह के उपचार या थैरेपी की भी जरूरत नहीं है.

प्रश्न : क्या एलजीयाबीटीक्यू समुदाय के लोग आपके पास आते रहे हैं और उनके प्रति समाज के बर्ताव को लेकर आपके क्या अनुभव हैं
उत्तर : इस समुदाय के लोग अकसर हमारे पास आते हैं जो सामाजिक भेदभाव और अलगाव के कारण अत्यंत अवसाद से घिरे होते हैं। हमें लगता है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से यह भेदभाव समाप्त होगा. यह ऐतिहासिक फैसला बहुप्रतीक्षित था.

प्रश्न : आगे मनोचिकित्सकों को एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर : मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने के नाते हम एलजीबीटीक्यू समुदाय को गरिमापूर्ण जीवन जीने में मदद देने के लिए अपनी भूमिका निभाएंगे. चिकित्सक होने के नाते हम इस समुदाय के लोगों की जरूरत को लेकर सहानुभूतिपूर्ण रवैया रख सकते हैं.

प्रश्न : आम लोगों में इस समुदाय के प्रति धारणा बदलने के लिए क्या प्रयास होने चाहिए?
उत्तर : समाज में समलैंगिकता को स्वीकार्य बनाना और लोगों को संवेदनशील बनाना समय की जरूरत है. जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें जागरुकता अभियान चलाने चाहिए ताकि इस तरह का भेदभाव समाप्त हो.

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