महाराष्ट्र की बड़ी पार्टी शिवसेना यूं तो लंबे समय से भाजपा की साथी रही है, समय चाहे बालासाहेब ठाकरे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का रहा हो या उद्धव ठाकरे और देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हो. भाजपा और शिवसेना तब भी राज्य और केंद्र में साथ-साथ थे और अब भी.
यह बात दीगर है कि लगभग एक विचारधारा वाली इन दोनों पार्टियों के बीच रिश्तों में कभी-कभार तल्खी भी देखी जाती है. इन दिनों शिवसेना, भाजपा कीनीतियों के खिलाफ कुछ ज्यादा ही तल्ख दिख रही है. लेकिन इन सबके बीच पेट्रोलियम पोडक्ट्स की बढ़ोतरी को लेकर कांग्रेस की अगुवाई में सोमवार 10 सितंबर को विपक्ष द्वारा बुलाये गये भारत बंद से शिवसेना ने किनारा कर लिया.
ऐन मौके पर किया किनारा
यहां यह जानना गौरतलब है कि भाजपा की पुरानी सहयोगी शिवसेना पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर केंद्र सरकार का खुलकर विरोध कर रही है, लेकिन कांग्रेस द्वारा आहूत भारत बंद में शामिल नहीं हुई. शिवसेना ने इसका ऐलान बंद से एक दिन पहले, यानी रविवार को पार्टी की तरफ से किया. मालूम हो कि इस बंद को लेकर शिवसेना ने पहले से तैयारी कर रखी थी और इसका सबूत है तेल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ पार्टी द्वारा पूरी मुंबई में लगाये गये पोस्टर.
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एक फोन कॉल ने पाट दी दूरियां
ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि इतनी तैयारी के बावजूद शिवसेना ने भारत बंद से ठीक पहले अचानक इससे दूरी बना ली. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसकी वजह बतायी जा रही है भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की एक फोन कॉल. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शिवसेना के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से बंद में शामिल न होने की सलाह दी थी, लेकिन जब अमित शाह और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की तरफ से फोन कॉल गया,तो आने के बाद पार्टी ने अपना स्टैंड बदल दिया.
अब बढ़ेगी नजदीकी…!
वैसे बताते चलें कि कांग्रेस और एनसीपी ने इस देशव्यापी आंदोलन में शामिल होने के लिए शिवसेना से अपील की थी, लेकिन अमित शाह की एक फोन कॉल इनपर भारी पड़ी. राजनीतिकेजानकारों की मानें, तो यह कदम भाजपा और शिवसेना के बीच नजदीकी बढ़ायेगा. चूंकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना और अमित शाह की भाजपा केंद्र और राज्य में गठबंधन सहयोगी हैं, ऐसे में अगर शिवसेना बंद में शामिल होती, तो यह भाजपा के लिए नुकसान की बात होती.
असली बंद सम्राट कौन…?
इसमामले में शिवसेना के सांसद संजय राउतका कहनाहै, हम देखना चाहते हैं कि कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष का बंद कितना असरदार होता है. शिवसेना पिछले चार साल से महाराष्ट्र में वास्तविक विपक्ष के रूप में खड़ा रहा है. कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष तो अब जाकर जागा है. उन्हें हड़ताल करने दीजिए. जब आम आदमी के लिए सड़कों पर उतरने का समय आयेगा, तो शिवसेना दिखाएगी कि बंद कैसे किया जाता है. शिवसेना महाराष्ट्र में असली बंद सम्राट है.
कांग्रेस के भारत बंद को 21दलों का समर्थन
मालूम हो कि कांग्रेस के इस भारत बंद को देशभर के 21 राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल है. इनमें महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी और राज ठाकरे एमएनएस भी शामिल है. इस राष्ट्रव्यापी बंद में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का विरोध और इसे जीएसटी में दायरे में लाने की मांग की जा रही है.
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…तो 2019 के आम चुनाव में भाजपा-शिवसेना साथ-साथ
भाजपा के प्रति शिवसेना की नरमी की वजह की जड़ में जायें, तो शिवसेना को महाराष्ट्र राज्य के निगमों और एजेंसियों में काफी संख्या में बड़े पद मिले हैं. भाजपा के खिलाफ नरमी से पेश आने की एक वजह यह भी हो सकती है. इससे पहले जून में मातोश्री में अमित शाह के साथ उद्धव ठाकरे की मुलाकात के बाद दोनों पार्टियों के बीच तल्ख रिश्तों में नरमी देखी गयी है. और अगर दोनों दलों के बीच सबकुछ ठीक रहा, तो शिवसेना 2019 चुनाव में साथ चुनाव न लड़ने का अपना फैसला बदल सकती है.