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क्या सीबीआई निदेशक के खिलाफ शिकायत को संस्थान के खिलाफ शिकायत समझा जाना चाहिए ?

नयी दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रमुख और उनके उप सहकर्मी के बीच अंदरूनी कलह के खराब रुख अख्तियार करने के बीच एजेंसी के सूत्रों ने शनिवार को कहा कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को यह स्पष्ट करना होगा कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों को क्या उस संस्था पर लगे […]

नयी दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रमुख और उनके उप सहकर्मी के बीच अंदरूनी कलह के खराब रुख अख्तियार करने के बीच एजेंसी के सूत्रों ने शनिवार को कहा कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को यह स्पष्ट करना होगा कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों को क्या उस संस्था पर लगे आरोप माना जाना चाहिए जिसकी वह अध्यक्षता कर रहे हैं.

ये टिप्पणियां सीबीआई की ओर से प्रेस को दिये गये बयान के एक दिन बाद आयी हैं जिनमें 1979 बैच के एजीएमयूटी कैडर के आईपीएस अधिकारी वर्मा के खिलाफ शिकायत की जांच कर रहे (आयोग) सीवीसी को एजेंसी द्वारा सौंपे गए जवाब के विवरण दर्ज थे.

एजेंसी के उपप्रमुख राकेश अस्थाना ने वर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी थी और इसे सरकार ने सीवीसी के पास भेज दिया था. हालांकि एजेंसी ने इन आरोपों को मूर्खतापूर्ण और दुर्भावनापूर्ण बताया था. एजेंसी ने शुक्रवार को मीडिया को एक बयान जारी कर बताया था कि शिकायतकर्ता (अस्थाना) की भूमिका की कम से कम आधा दर्जन मामलों में जांच की जा रही है.

सीबीआई के एक सूत्र ने कहा कि सीवीसी को यह स्पष्ट करना होगा कि वर्मा सीबीआई कहलाने वाली संस्था हैं या एक व्यक्तिगत अधिकारी जो सीबीआई के प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि आयोग से यह भी स्पष्ट करने को कहा गया कि क्या आलोक वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों को सीबीआई पर लगे आरोपों के तौर पर देखा जाना चाहिए?

खबर के मुताबिक वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की संलिप्तता वाले आईआरसीटीसी घोटाले में आखिरी क्षण में छापेमारी बंद कर दी थी.

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