#Sabarimala : जानें कौन हैं भगवान अयप्पा और क्यों उनके मंदिर में महिलाओं का प्रवेश था वर्जित….
आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सबरीमाला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी. पिछले 53 साल से यहां महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लागू था. मात्र छोटी बच्चियां और वृद्ध महिलाएं ही मंदिर में प्रवेश पा सकती थीं. गौरतलब है कि कुछ युवा वकीलों ने याचिका […]
आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सबरीमाला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी. पिछले 53 साल से यहां महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लागू था. मात्र छोटी बच्चियां और वृद्ध महिलाएं ही मंदिर में प्रवेश पा सकती थीं. गौरतलब है कि कुछ युवा वकीलों ने याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की थी कि सबरीमाला मंदिर में रजस्वला आयुवर्ग की महिलाओं को भी प्रवेश मिले. आइए जानते हैं क्या है सबरीमाला मंदिर का इतिहास और यहां महिलाओं के प्रवेश पर क्यों था प्रतिबंध:-
भगवान अयप्पा विराजते हैं सबरीमाला मंदिर में
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर स्थित पेरियार टाइगर रिजर्व क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है. इस मंदिर की ऊंचाई समुद्रतल से एक हजार किलोमीटर है. यह हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है. हर साल यहां करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में भगवान अयप्पा विराजते हैं जिन्हें पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप और शिव के समागम का प्रतिफल माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम ने अयप्पा मंदिर की स्थापना की थी. लेकिन इतिहास के अनुसार अयप्पा केरल के पांडलम राजवंश के राजकुमार थे. भगवान अयप्पा को वानप्रस्थ आश्रम का प्रतीक माना जाता है और वे ब्रह्मचारी हैं. ऐसी मान्यता भी है कि करीब 700-800 साल पहले दक्षिण भारत में में शैव और वैष्णवों के बीच वैमनस्य काफी बढ़ गया था. उस वक्त दोनों समुदायों के बीच समन्वय बढ़ाने के लिए भगवान अयप्पा की परिकल्पना की गयी. इस मंदिर में सभी जाति और धर्म के लोगों को प्रवेश दिया जाता है, यहां तक कि आरती में दलितों की भी भागीदारी होती है, जो दक्षिण के कई मंदिरों में नहीं है. 12वीं शताब्दी में पांडलम राजवंश के राजकुमार माणिकंदन ने सबरीमाला मंदिर का निर्माण कराया था, उन्हें भगवान अयप्पा का अवतार माना जाता है.
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सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है मंदिर
भगवान अयप्पा के सबसे वफादार साथियों में एक अरब सिपाही था, जिसे उन्होंने युद्ध में पराजित किया था. जिसका नाम वावर था. वावर के नाम पर मंदिर से कुछ दूरी पर उनके नाम पर एक मस्जिद बनाया गया है. मान्यता है कि जब तीर्थयात्री यहां आते हैं तो वावर की आत्मा उनकी रक्षा करती, इसी कारण से सबरीमाला के प्रति मुसलमानों की भी बहुत श्रद्धा है और वे मस्जिद तक की यात्रा करते हैं. यह मंदिर सामाजिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है.
महिलाओं के प्रवेश पर क्यों थी पाबंदी?
सबरीमाला आने वाले श्रद्धालु 41 दिनों का कठिन व्रत करते हैं और फिर वे मंदिर आते हैं. इस मंदिर में प्रवेश से पहले जो व्रत किया जाता है उसका पवित्रता से संबंध है. ऐसी मान्यता है कि रजस्वला स्त्रियां 41 दिनों तक पवित्र नहीं रह सकतीं, क्योंकि समाज रजस्वला स्त्रियों को अपवित्र मानता है, इसलिए वे 41 दिनों का व्रत पूरा नहीं कर पाती हैं और मंदिर में उन्हें प्रवेश नहीं मिलता है. जबकि यहां जो कहानी प्रचलित है उसके अनुसार भगवान अयप्पा का जन्म एक स्त्री राक्षस को मारने के लिए हुआ था. जब अयप्पा ने उसकी हत्या कर दी, तो उस राक्षसी शरीर से एक सुंदर स्त्री का जन्म हुआ. उस सुंदर स्त्री ने भगवान अयप्पा से शादी करने की इच्छा जतायी तो उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने कहा वे पहले सबरीमाला जायेंगे जहां अपने भक्तों की प्रार्थनाओं का उत्तर देंगे. हालांकि, उन्होंने उसे यह आश्वासन दिया कि जब वे वहां से लौटेंगे तो उससे शादी करेंगे. वह स्त्री मुख्यमंदिर से कुछ दूरी पर स्थित मलिकापुरथम्मा मंदिर में उनका इंतजार करती रही. उस मंदिर में उनकी पूजा भी की जाती है. चूंकि वह भगवान अयप्पा का इंतजार करती रहीं इसलिए उनके इंतजार को सम्मान देने के लिए महिलाओं के प्रवेश को रोका गया था. भक्त इस बात पर विश्वास करते हैं और मासिक धर्म से इसका कुछ लेना देना नहीं है. सबरीमाला आने वाले भक्त इस बात से वाकिफ हैं.