कश्मीरी पंडितों को घाटी भेजने का विशेष प्रयास करेगी सरकार

नयी दिल्ली: नरेन्द्र मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों को ‘पूरी गरिमा, सुरक्षा और सुनिश्चित जीविका’ के साथ घाटी में वापस भेजने का इरादा किया है. अपने कार्यकाल के दौरान सरकार इस मुद्दे पर विशेष रुप से ध्यान देगी. राष्ट्रपति का अभिभाषण राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के संबोधन में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 9, 2014 4:07 PM

नयी दिल्ली: नरेन्द्र मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों को ‘पूरी गरिमा, सुरक्षा और सुनिश्चित जीविका’ के साथ घाटी में वापस भेजने का इरादा किया है. अपने कार्यकाल के दौरान सरकार इस मुद्दे पर विशेष रुप से ध्यान देगी.

राष्ट्रपति का अभिभाषण

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के संबोधन में इस मुद्दे का जिक्र संभवत: पहली बार आया है. कश्मीरी पंडितों के संगठनों ने इसका स्वागत किया है. ये संगठन लाखों कश्मीरी पंडितों के हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उग्रवाद के दौरान ये कश्मीरी पंडित 1990 में घाटी छोडने पर बाध्य हुए थे.

राष्ट्रपति ने मोदी सरकार के अगले पांच साल का एजेंडा पेश करते हुए कहा, ‘‘यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रयास किये जाएंगे कि कश्मीरी पंडित अपने पूर्वजों की भूमि पर पूर्ण गरिमा, सुरक्षा और सुनिश्चित जीविका के साथ लौटें.’’ भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कश्मीरी विस्थापितों की वापसी और पुनर्वास का जिक्र किया था.

सरकारी आंकडों के मुताबिक घाटी में जब 1990 में उग्रवाद ने सिर उठाया तो कश्मीरी पंडितों के 24202 परिवार विस्थापित हो गये. जम्मू कश्मीर राजस्व एवं राहत मंत्रालय के साथ अब तक 38119 परिवार पंजीकृत हैं.कश्मीरी पंडितों के संगठन ने हालांकि विस्थापित लोगों की संख्या छह से सात लाख के बीच बतायी है.

कश्मीरी पंडितों के संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि पहली बार केंद्र सरकार ने विस्थापित समुदाय की स्थिति को प्राथमिकता बनाया है.आल इंडिया कश्मीरी समाज के महासचिव रमेश रैना ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि अंतत: कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का गंभीर मुद्दा देश की मुख्यधारा की राजनीति में सही जगह पा सका है.

रैना ने कहा कि हमारा सरकार से आग्रह होगा कि कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास का ‘ब्लूप्रिंट’ तैयार करते समय उसे विस्थापितों की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं पर विचार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि संवैधानिक तंत्र के जरिए उनका राजनीतिक पुनर्वास किया जाए.

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