बड़ा खुलासा : बनारस के अलावा और भी जगह उत्तरवाहिनी होती है गंगा
नयी दिल्ली: आम जनमानस में धारणा है कि गंगा गोमुख से निकलती है, लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि यह सात धाराओं या सात जगह से निकलती है. जब सातों जगह से निकलने वाली धारा देवप्रयाग में एक साथ मिलती है, तो यह गंगा कहलाती है. इससेपहले की धाराओं को अलग-अलग नाम […]
नयी दिल्ली: आम जनमानस में धारणा है कि गंगा गोमुख से निकलती है, लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि यह सात धाराओं या सात जगह से निकलती है. जब सातों जगह से निकलने वाली धारा देवप्रयाग में एक साथ मिलती है, तो यह गंगा कहलाती है. इससेपहले की धाराओं को अलग-अलग नाम से जाना जाता है. गोमुख से निकलने वाली धारा का नाम गंगा नहीं, भागीरथी है.
यह जानकारी पत्रकार अमरेंद्र कुमार राय की नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘गंगा तीरे’ में सामने आयी है. पौराणिक मान्यता है कि शिव की जटा से मुक्त होकर गंगा सात धाराओं में पृथ्वी पर उतरी, जिसमें से तीन धाराएं पूर्व और तीन धाराएं पश्चिम की ओर प्रवाहित हुईं. सातवीं धारा भागीरथी के पीछे आयी. इसीलिए लोगों में आम धारणा है कि गंगा का उदगम स्थल गोमुख है.
राय के अनुसार, गोमुख से निकलने वाली धारा 200 किलोमीटर चलने के बाद देवप्रयाग पहुंचती है. दूसरी तरफ बद्रीनाथ के पास से निकलकर अलकनंदा नदी भी करीब इतनी ही दूरी तय करने के बाद देवप्रयाग पहुंचती है. अलकनंदा अपने साथ केदारनाथ के पास से निकलने वाली मंदाकिनी, पिंडर, नंदाकिनी आदि नदियों का जल लेकर आती है.
पुस्तक में विस्तृत हवाला देते हुए बताया गया है कि जब ये सारी धाराएं देवप्रयाग के पास मिलती हैं, तब उनका नाम गंगा पड़ता है. इस बात का भी उल्लेख पुस्तक में है कि ठीक इसी तरह गंगा सागर (बंगाल की खाड़ी) में मिलने से पहले भी गंगा का नाम गंगा नहीं रह जाता.
पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया के पास गंगा नदी दो भागों में बंट जाती है, जिसका एक हिस्सा पश्चिम बंगाल में, जबकि दूसरा हिस्सा बांग्लादेश की ओर चला जाता है. गिरिया से आगे पश्चिम बंगाल में जो धारा आगे बढ़ती है, उसे भागीरथी बोला जाता है और जो धारा बांग्लादेश में चली जाती है, उसे पद्मा कहते हैं.
भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहती है, जबकि पद्मा दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है. मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा एक बार फिर भागीरथी के नाम से जानी जाती है (जैसा कि गोमुख से देवप्रयाग तक है). हुगली शहर से समुद्र के मुहाने तक गंगा का नाम हुगली ही है.
राय ने किताब में एक और मान्यता का जिक्र किया है, जिसके अनुसार, गंगा बनारस में ही उत्तरायण (उत्तर दिशा की ओर बहना) होती है. पौराणिक मान्यता है कि करीब आधी दूरी तय करने के बाद गंगा के मन में इच्छा जगी कि वह अपने आप को देखे, इसलिए उसने वाराणसी में अपने उत्तर की ओर मुंह करके देखा और फिर समुद्र से मिलने के लिए आगे चल पड़ी.
इसलिए माना जाता है कि गंगा सिर्फ बनारस में ही उत्तरवाहिनी है, लेकिन जब आप गंगा की पूरी यात्रा करते हैं, तो देखते हैं कि गंगा सिर्फ बनारस ही नहीं, कई और जगहों पर उत्तरवाहिनी है.
राय के अनुसार, गोमुख से निकलकर गंगा सबसे पहले गंगोत्री पहुंचती है और खुद गंगोत्री में ही गंगा उत्तरवाहिनी है. यहां गंगा उत्तर की ओर बहती है. इसलिए इसका नाम गंगोत्री (गंगा उत्तरी) है.
बनारस जैसी ही स्थिति उत्तरकाशी में भी है. इसलिए इसे उत्तरकाशी कहते हैं. इसके अलावा कुर्था (गाजीपुर, उत्तर प्रदेश), सुल्तानगंज और कहलगांव (भागलपुर) में भी गंगा उत्तरवाहिनी है.
इस पुस्तक में पौराणिक मान्यताओं, धारणाओं और स्थानीय विश्वास की रोशनी में गंगा के अस्तित्व के बारे में गहन मंथन किया गया है.