नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कीवर्ष 2022 तक भारत द्वारा अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की घोषणा के बाद देश-दुनिया की नजरें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पर हैं. पिछले साल एक ही उड़ान में रिकॉर्ड 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण का इसरो की क्षमता का लोहा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिक भी मानते हैं.
हाल ही में नासा से सेवानिवृत्त हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक और वर्तमान में अमेरिका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में एडजंक्ट प्रोफेसर डॉ कुमार कृषेन से जब इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि इसरो के लिए यद्यपि वर्ष 2022 एक वास्तविक चुनौती होगा, लेकिन उसके पास इस लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता है.
उन्होंने कहा कि इसरो ने ‘री एंट्री मॉड्यूल्स’ और प्रक्षेपण के दौरान किसी हादसे की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित निकालने से संबंधित प्रणाली का परीक्षण किया है. मेरी समझ है कि इसरो ने अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण और जीवन रक्षा प्रणाली जैसे कुछ क्षेत्रों में रूस सरकार से मदद मांगी है. मेरा मानना है कि इसरो यदि नासा के साथ मिलकर काम करता है, तो उसे काफी लाभ मिल सकता है.
डॉ कुमार ने कहा कि इसरो का जोर दीर्घकालिक मानव मिशन कार्यक्रमों के लिए अवसंरचना विकसित करने पर होना चाहिए. इससे इसरो के लिए सुरक्षित एवं किफायती, अंतरिक्ष में मानव मिशन सुनिश्चित होंगे.
उन्होंनेकहा कि इसरो ने निचली और भू-स्थैतिक कक्षाओं के लिए प्रक्षेपण यानों में अपनी काबलियत स्थापित कर लंबा सफर तय किया है. इसका लाभ संचार, प्रसारण, रिमोट सेंसिंग, मौसम निगरानी और उपग्रह नौवहन के रूप में मिल रहा है. इसरो अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ताओं के लिए उपग्रह प्रक्षेपित करता रहा है. इसका पीएसएलवी 30 से अधिक सफल प्रक्षेपणों के साथ एक शक्ति पुंज के रूप में उभरा है.
नासा के पूर्व वैज्ञानिक ने कहा कि इसरो अपने पहले ही प्रयासों में चंद्रमा और मंगल पर पहुंचने में सफल रहा है. सीएनइएस जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी इसरो के साथ सहयोग कर रही हैं. ऊष्णकटिबंधीय जलवायु अध्ययन के लिए इसरो ने मेघा-ट्रॉपिक्स उपग्रह निर्मित किया है. इसरो के पास निजी क्षेत्र के साथ मिलकर क्रांतिकारी प्रौद्योगिकी और प्रणालियां विकसित करने की श्रेष्ठ क्षमताएं हैं.
अपनी जीपीएस बना रहा है भारत
डॉ कुमार कृषेन ने कहा कि भारत अपनी खुद की नौवहन प्रणाली बना रहा है. इस उद्देश्य के लिए उसने उपग्रह प्रक्षेपित किये हैं. यह जीपीएस और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रणालियों की जगह नहीं ले सकती. हालांकि, इन प्रणालियों के उपलब्ध न होने की स्थिति में भारत के पास जीपीएस उपलब्ध रहेगा. वर्तमान में परमाणु घड़ियों में कुछ खामी के कारण स्थापन अवस्थिति संबंधी गुणवत्ता कम है. एक बार इसके पूरी तरह परिचालित हो जाने पर यह क्षेत्रीय आधार पर जीपीएस की जगह ले सकता है. कहा कि वर्तमान में विश्व को कवर कर रहे जीपीएस में 31 से ज्यादा उपग्रह लगे हैं, जबकि भारत के नाविक में सात उपग्रह हैं.
इसरो की क्षमता पर कही यह बात
नासा के रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ कुमार ने कहा कि इसरो ने संचार और प्रसारण के लिए रीढ़ के रूप में उपग्रह उपलब्ध करायेहैं. जीसैट-11 इस साल नवंबर में प्रक्षेपित होने वाला है, जो उच्च बैंडविड्थ डेटा ट्रांसमिशन में मदद करेगा. इसरो के उपग्रह चक्रवातों सहित मौसम निगरानी के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं.
उन्होंने कहा कि इसरो के दूर संवेदी उपग्रह कृषि, वन प्रबंधन, तटीय क्षेत्र निगरानी, शहरी योजना और आपदा प्रबंधन के लिए डेटा उपलब्ध कराते रहे हैं. टेली एजुकेशन, टेली मेडिसिन और अन्य अनुप्रयोगों के लिए जमीनी स्टेशन हैं, लेकिन मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि क्या यह अवसंरचना पर्याप्त परिणाम दे रही है.
इसरो और नासा की भागीदारी की संभावनाएं
डॉ कुमार कृषेन ने कहा कि भारत के प्रक्षेपण स्थल विकसित देशों सहित विश्व के लिए उपयोगी हैं. विकासशील और अल्प विकसित देशों के लिए संचार और दूर संवेदी आधारित एप्लीकेशंस में भारत के उपग्रह उपयोगी हो सकते हैं. इसलिए इन क्षेत्रों में नासा के साथ इसरो की भागीदारी की संभावनाएं बेहतरीन हैं.