SC/ST Act में संशोधन के खिलाफ याचिका पर Supreme Court ने केंद्र से मांगा जवाब
नयीदिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति कानून में संशोधनों को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया. न्यायालय ने इस मामले में पक्षकार बनाने के लिए दायर अनेक आवेदनों को स्वीकार कर लिया. न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ […]
नयीदिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति कानून में संशोधनों को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया. न्यायालय ने इस मामले में पक्षकार बनाने के लिए दायर अनेक आवेदनों को स्वीकार कर लिया.
न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केंद्र को इस मामले में 26 अक्तूबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए इन याचिकाओं को अंतिम सुनवाई के लिए नवंबर में सूचीबद्ध कर दिया. इससे पहले, केंद्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए न्यायालय से कुछ और समय देने का अनुरोध किया. इस पर पीठ ने केंद्र सरकार को एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि इन याचिकओं पर 20 नवंबर को सुनवाई की जायेगी. शीर्ष अदालत ने सात सितंबर को कहा था कि संसद द्वारा अजा-अजजा कानून में किये गये नये संशोधनों पर इस समय रोक नहीं लगायी जा सकती है.
न्यायालय ने इन संशोधनों को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर केंद्र से छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा था. संसद ने नौ अगस्त को एक विधेयक पारित करके इस कानून के तहत गिरफ्तारी के मामले में कुछ सुरक्षा उपाय करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के 20 मार्च के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया था. न्यायालय ने इस कानून के दुरुपयोग की घटनाओं को देखते हुए अपने फैसले में कहा था कि अजा-अजजा कानून के तहत दायर किसी भी शिकायत पर आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जायेगी. न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि इस कानून के तहत किसी भी लोक सेवक को सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के बाद ही गिरफ्तार किया जा सकेगा.
अजजा-अजजा कानून में हुए संशोधनों को चुनौती देनेवालों में शामिल पृथ्वी राज चौहान ने इन याचिकाओं पर सुनवाई होने तक संशोधित प्रावधानों के अमल पर तत्काल रोक लगाने का अनुरोध किया है. याचिका में कहा गया है कि सरकार ने शीर्ष अदालत के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए ये संशोधन किये हैं, लेकिन उसने इस कानून में व्याप्त विसंगति को दूर नहीं किया है. इन संशोधनों के बाद अजा-अजजा कानून के तहत उत्पीड़न करने के आरोपी व्यक्ति को अदालत से अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती. इन संशोधनों के बाद उत्पीड़न की शिकायत होने की स्थिति में आपराधिक मामला दर्ज करने से पहले किसी प्रकार की प्रारंभिक जांच की आवश्यकता भी नहीं है और आरोपी को बगैर किसी पूर्व मंजूरी के ही गिरफ्तार किया जा सकता है.