सरकार ने विदेशों में कालाधन जमा करने वालों का नाम बताने से किया इंकार
नयी दिल्ली : विदेशों में जमा कालेधन को देश में वापस लाने की पहल के बीच केंद्र सरकार ने विभिन्न देशों के साथ दोहरे कराधान बचाव समझौते के गोपनीयता प्रावधानों का जिक्र करते हुए विदेशी बैंकों में खाता रखने वाले भारतीयों का ब्यौरा देने से इंकार किया है. सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत […]
नयी दिल्ली : विदेशों में जमा कालेधन को देश में वापस लाने की पहल के बीच केंद्र सरकार ने विभिन्न देशों के साथ दोहरे कराधान बचाव समझौते के गोपनीयता प्रावधानों का जिक्र करते हुए विदेशी बैंकों में खाता रखने वाले भारतीयों का ब्यौरा देने से इंकार किया है.
सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत राजस्व विभाग के केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने कहा, विदेशी प्राधिकरणों से विदेशी बैंकों में खाताधारक भारतीयों के बारे में प्राप्त जानकारी दोहरे कराधान बचाव समझौते के तहत प्राप्त हुई है. संधि के प्रावधानों में यह गोपनीयता संबंधी बातें हैं.
इसलिए विभाग को प्राप्त ब्यौरे की जानकारी नहीं दी जा सकती है क्योंकि इसे सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8 (1) (ए) और धारा 8 (1) (एफ) के तहत छूट प्राप्त है. विभाग ने कहा, उसे उच्चतम न्यायालय से ऐसा कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है जिसमें उसे सूचना को सार्वजनिक करने की बात कही गई हो जो भारत सरकार के पास है तथा आवेदक ने जिनका ब्यौरा मांगा है. सूचना के अधिकार के तहत हिसार स्थित आरटीआइ कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने सरकार से विदेशी बैंकों में कालाधन जमा करने वाले लोगों का ब्यौरा मांगा था, जिनकी जानकारी भारत सरकार के पास है.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने करीब तीन साल तक प्रतिरोध करने के बाद हाल ही में उच्चतम न्यायालय को 18 व्यक्तियों के नामों की जानकारी दी थी, जिन्होंने कथित रुप से जर्मनी के लिंकेस्टाइन में एलएसटी बैंक में कालाधन जमा कर रखा था और जिनके खिलाफ आय कर विभाग ने मुकदमा शुरु किया है.
केंद्र सरकार ने सीलबंद लिफाफे में उन लोगों के नाम भी दिये थे जिनके खिलाफ आठ मामलों में कर चोरी का कोई सबूत नहीं मिला है. सरकार ने न्यायमूर्ति एच एल दत्तू, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की तीन सदस्यीय खंडपीठ से अनुरोध किया था कि इन नामों को सार्वजनिक नहीं किया जाये.
जर्मनी के कर विभाग के अधिकारियों से एलजीटी बैंक मंे भारतीय खाताधारकों के नाम सरकार को 2009 में ही मिल गए थे. न्यायालय ने इन लोगों के नाम बताने का आदेश 2011 में दिया था. बावजूद इसके सरकार ने ऐसा नहीं किया था और इसके कारण उसे न्यायालय की नाराजगी झेलनी पडी थी.
सरकार ने हलफनामे में कहा है कि एलजीटी बैंक में 12 ट्रस्टियों एवं इकाइयों के खातों में जमा अथवा बकाया धनराशि के बारे में मिली राशि की जानकारी दोहरे कराधान से बचाव के बारे में भारत-जर्मन संधि के तहत मार्च 2009 में जर्मनी के कर अधिकारियों से मिली थी.
सरकार के हलफनामे के अनुसार, इसमें भारतीय मूल के 26 व्यक्ति शामिल थे. इन 26 मामलों में से 18 में आय कर विभाग ने जांच पूरी करके 17 मामलों में मुकदमा शुरु किया है. हलफनामे के अनुसार इनमें से एक करदाता की मृत्यु हो चुकी है.
केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नयी सरकार बनने के बाद उसने कालाधन से जुडे मामले की पडताल के लिए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम बी शाह के नेतृत्व में विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया है.