चुनाव लड़ने वाली पार्टियां 484 संसद पहुंचे सिर्फ 35 के नुमाइंदे

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता ने जो फैसला सुनाया हैं वह कई मायने में आश्चर्यचकित करने वाला है. इस चुनाव में वोटरों ने 1984 के बाद पहलीबार किसी एक पार्टी को बहुमत दिलाने के लिए वोट दिया. आजाद भारत के इतिहास में पहलीबार किसी गैर कांग्रेस दल को लोकसभा में पूर्ण बुिमत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 15, 2014 1:39 PM

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता ने जो फैसला सुनाया हैं वह कई मायने में आश्चर्यचकित करने वाला है. इस चुनाव में वोटरों ने 1984 के बाद पहलीबार किसी एक पार्टी को बहुमत दिलाने के लिए वोट दिया. आजाद भारत के इतिहास में पहलीबार किसी गैर कांग्रेस दल को लोकसभा में पूर्ण बुिमत मिला. 129 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को इस चुनाव में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा. आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की इतनी बड़ी हार नहीं हुई थी. इस चुनाव के बाद एक नई तरह की राजनीतिक शक्ति का उदय हुआ है. यह नई शक्ति उस पीढ़ी के लिए ज्यादा है जिसका जन्म इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ है. इस चुनाव परिणाम पर किसी तरह की टिप्पणी करने से पहले परिणाम की समीक्षा जरूरी है. पहले के कुछ चुनाव परिणामों से तुलना जरूरी है.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 484 पार्टियों ने चुनाव लड़ा. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उतरी पार्टियों से यह संख्या 121 अधिक है और 2004 के लोकसभा चुनाव उतरी पार्टियों से दुगनी है. हालांकि इससे जीतने वाली पार्टियों की संख्या में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ क्योंकि कई पार्टियों को वोटरों ने नकार दिया. संसद में पहुंचने वाली पार्टियों की संख्या 2009 में 39 थी और 2014 में 35 है.

इस लोकसभा चुनाव में 8159 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे जिसमें से 6959 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. यानी इन उम्मीदवारों को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में जितने वोट पड़े उसमें उसका छठा हिस्सा भी नहीं मिला. पिछले चुनाव के मुकाबले इस परिणाम में भी ज्यादा बदलाव नहीं आया है.

भाजपा का प्रदर्शन

भारतीय जनता पार्टी को हिन्दी प्रदेशें में भारी सफलता मिली है. भाजपा कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण भारत में और पूर्वी तटीय इलाकों में अपनी पैठ नहीं बना पायी है. इसमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है.

जीतने वाले प्रत्याशियों के वोट माíजन में भी भाजपा की सफलता अश्चर्यजनक है. पार्टी के जीतने वाले प्रत्याशियों का औसत वोट शेयर 47 फीसदी है जबकि दूसरे नंबर पर रहने वालों का 32 फीसदी.

इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को 31 फीसदी मत मिले. लोकसभा में बहुमत में आने वाली पार्टी को मिलने वाला सबसे कम मत प्रतिशत है. इस चुनाव में 139.5 मिलियन वोटरों ने यानी सिर्फ 17 फीसदी मतदाताओं ने एक बहुमत सरकार दी. इससे पहले चार बार बनी एक पार्टी की बहुमत वाली सरकार को कम से कम 40 फीसदी वोट मिले थे.

उत्तर प्रदेश की सफलता भाजपा के लिए सबसे बड़ी जीत थी. पार्टी ने 80 में 71 सीटों पर जीत हासिल की. बसपा का खाता भी नहीं खुला. राज्या में 42.34 फीसदी वोटरों ने भाजपा को वोट दिया. वहीं 2009 में सिर्फ 17.5 फीसदी वोटरों ने वोट दिया था. वहीं कांग्रेस को 7.48}, बसपा को 19.63} वोट मिले.

क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदर्शन

इस चुनाव की सबसे खास बात यह है कि भाजपा के पक्ष में जबरदस्त माहौल होने के बावजूद क्षेत्रिय पार्टियों की सामूहिक शक्ति में कोई बदलाव नहीं आना. वर्ष 2009 में क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या 212 थी. इस लोकसभा में भी इतने ही सांसद क्षेत्रीय पार्टियों से चुनकर आये हैं. उन्हें 46.6} वोट मिले हैं. 2009 में 46.7} वोट मिले थे.

हिन्दी प्रदेशों यानी जहां भाजपा को भारी सफलता मिली है, की क्षेत्रीय पार्टयिां इस लोकसभा चुनाव में करीब-करीब साफ हो गईं.

हिन्दी बेल्ट के बाहर की क्षेत्रीय पार्टयिां अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब रही. इसके पीछे कांग्रेस का खराब प्रदर्शन सबसे बड़ी वजह है.

महिला प्रतिनिधि

16वीं लोकसभा में 62 महिला सांसद हैं. यह अबतक लोकसभा में पहुंचने वाली सबसे अधिक महिलाओं की संख्या है.

उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से ही 23 महिला सांसद लोकसभा में पहुंची हैं. झारखंड और हरियाणा से एक भी महिला सांसद लोकसभा में नहीं है.

पार्टी के हिसाद से तृणमूल, आम आदमी पार्टी और बसपा ने सबसे ज्यादा महिलाओं को टिकट दिया.

16वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में खड़े कुल उम्मीदवारों में 7.9} महिला प्रत्याशी मैदान में उतरी थीं. वहीं जीतने वाले सांसदों में इनका प्रतिशत 11 है.

मुसलिमों का प्रतिनिधित्व

इस लोकसभा में 23 मुसलमान लोकसभा में पहुंचे हैं. 1952 से अब तक संसद में पहुंचने वाले मुसलमानों की सबसे कम संख्या है. भाजपा के पास एक भी मुसलिम सांसद नहीं है.

सभी 23 मुसलिम सांसद आठ अलग-अलग राज्य और 11 पार्टियों से आते हैं.

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