क्यों पेड़ों पर लटकायी जा रही हैं महिलाएं?

!!गीता पांडे!! पिछले एक पखवाड़े में उत्तर प्रदेश के गांवों में चार महिलाएं पेड़ों से लटकी हुई पायी गयी हैं. इनमें से तीन के परिजनों, जिनमें से दो चचेरी बहनें थीं, ने आरोप लगाया है कि उनकी बलात्कार के बाद हत्या की गयी थी. क्या हत्याओं की यह बाढ़ नयी है? ऐसे अपराध उत्तर प्रदेश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 16, 2014 8:49 AM

!!गीता पांडे!!

पिछले एक पखवाड़े में उत्तर प्रदेश के गांवों में चार महिलाएं पेड़ों से लटकी हुई पायी गयी हैं. इनमें से तीन के परिजनों, जिनमें से दो चचेरी बहनें थीं, ने आरोप लगाया है कि उनकी बलात्कार के बाद हत्या की गयी थी. क्या हत्याओं की यह बाढ़ नयी है? ऐसे अपराध उत्तर प्रदेश या भारत के लिए नये नहीं है.

जब मैं छोटी थी और गर्मियों की सालाना छुट्टियों में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में अपने पैतृक गांव दादा-दादी के पास जाती थी, तब कभी-कभी मैंने अपनी मां और पड़ोसियों को महिलाओं पर हमलों के बारे में बात करते सुना था. हमलावर शायद हमेशा ही उच्च वर्गीय जातियों के होते थे और पीड़ित शायद हमेशा ही नीची जाति की या दलित महिलाएं होती थीं. कई बार हमले की शिकार महिला शोर मचा देती थी और बच निकलने में कामयाब हो जाती थी. लेकिन कोई भी पुलिस के पास नहीं गयी, क्योंकि अक्सर उन्हें ही मुसीबत की वजह मान लिया जाता था.

रोजमर्रा की बात

महिलाओं के लिए काम करने वाले लखनऊ के संगठन साझी दुनिया की रूप लेखा वर्मा कहती हैं, इससे पहले महिलाओं के खिलाफ अपराध के हम रोज दो या तीन मामलों के बारे में सुना करते थे, लेकिन अब यह रोज 10-12 हो गये हैं. वह कहती हैं ऐसे मामलों में 20 फीसदी बलात्कार के होते हैं और यह रोजमर्रा की बात हो गया है. यह पूछे जाने पर कि क्या यह इसलिए है कि अब यौन हिंसा ज्यादा हो रही है या फिर इसलिए कि रिपोर्ट ज्यादा दर्ज की जा रही हैं, रूप लेखा कहती हैं कि लाख टके का सवाल यही है.

ज्यादा शिकायतें दर्ज हो रहीं

दिसंबर, 2012 में दिल्ली में एक छात्र के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद महिलाओं के खिलाफ हिंसक अपराधों को रोकने के लिए भारत में बलात्कार के खिलाफ कानूनों को नये सिरे से तैयार किया गया और बेहद जघन्य मामलों में मौत की सजा का प्रावधान भी किया गया. लेकिन इससे देश भर में होने वाले और भी जघन्य बलात्कार की खबरों पर शायद ही रोक लगी हो. रूप लेखा कहती हैं, इससे पहले महिलाएं सिर्फ घरों, खेतों, घरों के पीछे वाली गलियों में ही दिखाई देती थीं लेकिन अब महिलाएं ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक स्थानों में दिखाई दे रही हैं. इसलिए अब अपराध भी बड़े दायरे में हो रहे हैं. लेकिन क्या सख्त बलात्कार विरोधी कानून सचमुच समस्या का एक हिस्सा हो सकते हैं? एक वजह यह हो सकती है अब बलात्कार से जुड़े कलंक के बावजूद ज्यादा से ज्यादा परिवार यौन हमलों की शिकायत कर रहे हैं.

आत्महत्या दिखाने का तरीका?

रूप लेखा कहती हैं, बलात्कार की शिकारों की हत्या इसलिए की जा रही है क्योंकि बलात्कारी मुख्य गवाह को ही खत्म कर देना चाहते हैं. अब कानून बहुत बेहतर है और वे जानते हैं कि अगर किसी महिला ने अपनी गवाही में उनकी तरफ उंगली उठाई और उन पर बलात्कार का आरोप लगाया तो वह गंभीर मुश्किल में फंस सकते हैं, फिर बच निकलने की गुंजाइश बहुत कम है. लेकिन महिलाओं को फांसी पर लटकाया क्यों जा रहा है? रूप लेखा वर्मा को लगता है कि संभवत: बलात्कारियों को सबूतों से बचने और हत्या को आत्महत्या दिखाने का यह सबसे आसाना तरीका लगता हो. लेकिन पुलिस और राज्य प्रशासन इससे सहमत नहीं है और कहते हैं कि कुछ मामलों में दोषी परिजन ऑनर किलिंग को बलात्कार और हत्या का मामला बताने की कोशिश करते हैं. राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, किसी को फांसी लटकाना आसान नहीं होता. अगर कोई सबूत मिटाना चाहता हो तो क्या कुएं या नदी में फेंकना आसान नहीं होगा?

लेकिन उत्तर प्रदेश ही क्यों?

भारत के सबसे घने बसे इस राज्य की आबादी 20 करोड़ से ज्यादा है और यह सबसे गरीब राज्यों में से एक भी है जिसकी आबादी का 40 फीसदी हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे रहता है. उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों की तरह यह भी पितृसत्तात्मक और सामंती है और यहां महिलाओं को पुरु षों के मुकाबले कमतर समझा जाता है. इसके अलावा इसका समाज जाति, लिंग और धार्मिक आधार पर बंटा हुआ है और यह धारणाएं बहुत गहरे पैवस्त हैं.

साभार : बीबीसी हिंदी डॉट कॉम

Next Article

Exit mobile version