जम्मू-कश्मीर: क्या विधानसभा भंग करवाने में सफल रहा विपक्ष ?
जम्मू/श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के तहत पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश किये जाने के कुछ ही देर बाद, राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बुधवार की रात राज्य विधानसभा को भंग कर दिया और साथ ही कहा कि प्रदेश के संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत यह […]
जम्मू/श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के तहत पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश किये जाने के कुछ ही देर बाद, राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बुधवार की रात राज्य विधानसभा को भंग कर दिया और साथ ही कहा कि प्रदेश के संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत यह कार्रवाई की गयी है. विधानसभा भंग होने के बाद जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने कहा कि हमारी पार्टी ने गुरुवार को अपने सभी विधायकों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलायी है, इसमें आगे क्या करना है यह फैसला लिया जाएगा. हमारा मानना है कि राज्य में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ कराए जाएं.
यहां चर्चा कर दें कि पीडीपी ने प्रतिद्वंद्वी नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया था. वहीं दूसरी तरफ दो सदस्यों वाली पीपुल्स कांफ्रेंस ने भी भाजपा और अन्य पार्टियों के 18 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा किया. मामले को लेकर जानकारों की माने तो यह तीनों दलों द्वारा सूबे की विधानसभा भंग कराने का ‘प्लान’ था जो सफल भी साबित हुआ. दरअसल, पीडीपी ने जैसे ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक के पास राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया उसके कुछ घंटे बाद ही राज्यपाल ने विधानसभा ही भंग कर दी.
चार मुख्य कारणों का हवाला
राजभवन द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में राज्यपाल ने विधानसभा भंग किये जाने की घोषणा की. देर रात जारी एक बयान में राज्यपाल ने तत्काल प्रभाव से विधानसभा भंग करने की कार्रवाई के लिए चार मुख्य कारणों का हवाला दिया जिनमें ‘‘व्यापक खरीद फरोख्त’ की आशंका और ‘‘विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं वाली पार्टियों के साथ आने से स्थिर सरकार बनना असंभव’ जैसी बातें शामिल हैं. बयान में कहा गया, ‘‘व्यापक खरीद फरोख्त होने और सरकार बनाने के लिए बेहद अलग राजनीतिक विचारधाराओं के विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए धन के लेन देन होने की आशंका की रिपोर्टें हैं. ऐसी गतिविधियां लोकतंत्र के लिए हानिकार हैं और राजनीतिक प्रक्रिया को दूषित करती हैं.’
पीडीपी-भाजपा का टूटा था गठबंधन
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में भाजपा द्वारा समर्थन वापस लिये जाने के बाद पीडीपी-भाजपा गठबंधन टूट गया था जिसके बाद 19 जून को राज्य में छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लगा दिया गया था. राज्य विधानसभा को भी निलंबित रखा गया था. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को लिखा था कि राज्य विधानसभा में पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी है जिसके 29 सदस्य हैं. कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस ने भी राज्य में सरकार बनाने के लिए हमारी पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया है. नेशनल कान्फ्रेंस के सदस्यों की संख्या 15 है और कांग्रेस के 12 विधायक हैं. अत: हमारी सामूहिक संख्या 56 हो जाती है. उन्होंने कहा कि 87 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 44 विधायकों की जरूरत है. तीनों दलों के विधायकों की कुल संख्या 56 है जो इससे अधिक है.
सूबे में नये चुनाव कराये जाने का मार्ग प्रशस्त
उधर, विधानसभा भंग किये जाने की घोषणा से कुछ ही देर पहले पीपुल्स कान्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी भाजपा के 25 विधायकों तथा 18 से अधिक अन्य विधायकों के समर्थन से जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने का दावा पेश किया था. लोन ने राज्यपाल को व्हाट्सऐप के जरिए एक संदेश भेज कर कहा था कि उनके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ों से अधिक विधायकों का समर्थन है. अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव कराये जाने की अटकलों के बीच विधानसभा भंग होने से अब राज्य में नये चुनाव कराये जाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है. जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन 18 दिसम्बर को समाप्त हो रहा था और इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगना था. राज्य विधानसभा का कार्यकाल अक्टूबर 2020 तक था.
महबूबा का ट्वीट
महबूबा ने कई ट्वीट करके कहा कि पिछले पांच महीनों से राजनीतिक संबद्धताओं की परवाह किये बगैर,‘‘हमने इस विचार को साझा किया था कि विधायकों की खरीद फरोख्त और दलबदल को रोकने के लिए राज्य विधानसभा को तत्काल भंग किया जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा,‘‘लेकिन हमारे विचारों को नजरअंदाज किया गया. लेकिन किसने सोचा होगा कि एक महागठबंधन का विचार इस तरह की बैचेनी देगा.’ उन्होंने यह भी कहा कि आज की तकनीक के दौर में यह बहुत अजीब बात है कि राज्यपाल आवास पर फैक्स मशीन ने हमारा फैक्स प्राप्त नहीं किया लेकिन विधानसभा भंग किये जाने के बारे में तेजी से बयान जारी किया गया.
क्या कहा कांग्रेस ने
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि एक लोकप्रिय सरकार का गठन करने के लिए वार्ता प्रारंभिक चरण में थी और केन्द्र की भाजपा सरकार इतनी चिंतित थी कि उन्होंने विधानसभा भंग कर दी. आजाद ने कहा, ‘‘स्पष्ट है कि भाजपा की नीति यही है कि या तो हम हों या कोई नहीं.’