21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सत्ता के लिए धर्म, जाति के इस्तेमाल से शांति बाधित हो सकती है : मनमोहन सिंह

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सत्ता हासिल करने के लिए सियासी पार्टियों की ओर से धर्म और जाति के इस्तेमाल के खिलाफ आगाह करते हुए कहा कि इससे नफरत और विभाजन का वातावरण पैदा हो सकता है. उन्होंने इस तरह के गलत इरादे वाले लोगों का मुकाबला करने के लिए अच्छे लोगों […]

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सत्ता हासिल करने के लिए सियासी पार्टियों की ओर से धर्म और जाति के इस्तेमाल के खिलाफ आगाह करते हुए कहा कि इससे नफरत और विभाजन का वातावरण पैदा हो सकता है. उन्होंने इस तरह के गलत इरादे वाले लोगों का मुकाबला करने के लिए अच्छे लोगों को एक साथ आने की जरूरत बतायी.

सिंह ने शनिवार को कहा कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें डर, चिंता और अनिश्चितता का माहौल बना सकती है. उन्होंने कहा कि शांति एवं सौहार्द के लिए सभी संस्थानों, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका का धर्मनिरपेक्ष चरित्र पहली जरूरत है.

प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन की ओर से आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने दावा किया कि देश के प्रमुख संस्थान विश्वसनीयता की कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने रेखांकित किया कि अच्छी तरह से काम करने वाले संस्थानों के बिना राष्ट्र ‘नाकाम’ हो जाते हैं.

उन्होंने कहा कि गिरावट राज्य के अंगों के कामकाज को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है और उनकी विश्वसनीयता को खराब करती है. उन्होंने ‘टूवर्ड्स पीस, हार्मनी एंड हेप्पीनेस : ट्रांस्टजिशन टू ट्रांसफॉर्मेशन’ सम्मेलन में कहा, ‘ऐसी स्थिति समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में अव्यवस्था पैदा कर सकती है.’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि शांति और सौहार्द बनाये रखने के लिए शासन के संस्थान एक आवश्यक शर्त हैं. इसके अलावा, उनका निष्पक्ष होना जरूरी है तथा उन्हें समाज के सभी तबकों के लिए काम करना चाहिए.

सिंह ने कहा, ‘दुर्भाग्य से, राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने एवं सत्ता हासिल करने के लिए धर्म, जाति और अन्य कारकों का इस्तेमाल करने से, धार्मिक एवं जातीय समूहों में नफरत का माहौल बन सकता है और उनके बीच विभाजन पैदा कर सकता है. इस तरह की स्थिति शांतिपूर्ण बदलाव के समक्ष गंभीर चुनौती पेश कर सकती है.’

उन्होंने कहा, ‘इस संदर्भ में, शांति, सौहार्द और खुशहाली को बाधित करने वाली ताकतों के गलत इरादों का मुकाबला करने के लिए समाज के जहीन तबके को साथ आने की जरूरत है.’ गुरुनानक, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, सर मोहम्मद इकबाल का हवाला देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि वे सभी एक ऐसा देश चाहते थे, जो सांप्रदायिक अशांति से मुक्त हो और लोगों में उनकी जाति, नस्ल, रंग, धर्म के आधार पर कोई विभाजन नहीं हो.

उन्होंने कहा, ‘यह हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि भारत एक बहु-सांस्कृतिक, बहु जातीय, बहु भाषी देश है. बहरहाल, कुछ ताकतें हैं, जो इस विविधता का फायदा उठा रही हैं और देश की एकता के समक्ष चुनौती पैदा कर रही हैं.’

सिंह ने कहा, ‘एक ऐसे समाज में जहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, वहां डर, चिंता और अनिश्चितता से मुक्त जीवन जीने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द बहुत अहम है.’ पूर्व प्रधानमंत्री की टिप्पणी ऐसे वक्त में आयी है, जब विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर के संवेदनशील मुद्दे पर ‘धर्म संसद’ बुलायी है.

शांति और सौहार्द के लिए सभी संस्थानों का धर्मनिरपेक्ष चरित्र बनाये रखने को जरूरी बताते हुए सिंह ने कहा कि यह राजनीतिक, धार्मिक नेतृत्व, नागरिक समाज, बुद्धिजीवी, और मीडिया की जिम्मेदारी है कि वे संविधान और संस्थानों की विश्वनीयता को बनाये रखें.

उन्होंने कहा, ‘जब संस्थान अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों के निर्वहन से विचलन शुरू करते हैं और जान-बूझकर या अनजाने में संवैधानिकेतर शक्तियों और राज्येतर तत्वों का शिकार होते हैं, तो परिवर्तन की प्रक्रिया में हिंसा का खतरा होता है.’ उन्होंने कहा कि समाज में शांति, सौहार्द और खुशहाली के लिए आर्थिक प्रगति और विकास जरूरी शर्त है, लेकिन पर्याप्त कारण नहीं है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें