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नौसेना ने रिलायंस समूह की कंपनी के खिलाफ की कार्रवाई, बैंक गारंटी भुनायी

नयी दिल्ली : नौसेना ने रिलायंस समूह की कंपनी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. नौसेना ने 3,000 करोड़ रुपये के सौदे में रिलायंस नैवल इंजीनियरिंग लि.(आरएनईएल) की बैंक गारंटी को भुना लिया है. रिलायंस नैवल इंजीनियरिंग द्वारा पांच समुद्री गश्ती नौकाओं की आपूर्ति में जरूरत से ज्यादा देरी के लिए नौसेना ने यह कार्रवाई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 3, 2018 10:31 PM

नयी दिल्ली : नौसेना ने रिलायंस समूह की कंपनी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. नौसेना ने 3,000 करोड़ रुपये के सौदे में रिलायंस नैवल इंजीनियरिंग लि.(आरएनईएल) की बैंक गारंटी को भुना लिया है.

रिलायंस नैवल इंजीनियरिंग द्वारा पांच समुद्री गश्ती नौकाओं की आपूर्ति में जरूरत से ज्यादा देरी के लिए नौसेना ने यह कार्रवाई की है. नौसेना ने यह भी कहा है कि वह इस करार की जांच कर रही है. सूत्रों के अनुसार बैंक गारंटी कुल अनुबंध राशि का 10 प्रतिशत है.

नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने सोमवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आरएनईएल को कोई तरजीह नहीं दी गयी है… उसकी बैंक गारंटी को भुना लिया गया है. उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई है. इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा रहा है.

नौसेना प्रमुख से कंपनी द्वारा गश्मी नौकाओं की आपूर्ति में अत्यधिक विलंब के बारे पूछा गया था. उनसे यह भी सवाल किया गया कि क्या कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए किसी तरह का दबाव डाला गया है. एडमिरल लांबा ने कहा कि यह सौदा अभी रद्द नहीं किया गया है, लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि इस पर गौर किया जा रहा है.

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उनका संकेत था कि इस मुद्दे पर अंतिम फैसला सरकार करेगी. उन्होंने बताया कि कंपनी फिलहाल कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन की प्रक्रिया में है. नौसेना प्रमुख के बयान पर आरएनईएल से तत्काल कोई टिप्पणी नहीं मिली है.

अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस 58,000 करोड़ रुपये के राफेल जेट लड़ाकू विमान सौदे को लेकर विवादों के घेरे में है. कांग्रेस ने सरकार पर कंपनी का पक्ष लेने का आरोप लगाया है. हालांकि, कंपनी के साथ ही सरकार भी इन आरोपों का खंडन कर चुकी है.

पांच समुद्री गश्ती जहाजों का 3,000 करोड़ रुपये का मूल करार पिपावाव डिफेंस एंड आफशोर इंजीनियरिंग को 2011 में मिला था. अनिल अंबानी समूह ने 2016 में इस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया था. मूल अनुबंध के तहत पहले जहाज की आपूर्ति 2015 के शुरू में की जानी थी. हालांकि, इस समयसीमा को कई बार बढ़ाया जा चुका है.

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