नयी दिल्ली : सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के मामले में आज फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि सरकार ने जो भी कार्रवाई की है उसमें सीबीआई का हित निहित होना चाहिए. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा तो नहीं है कि दोनों अधिकारियों का झगड़ा रातोंरात प्रकाश में आया होगा, परिस्थितियां तो पहले से इस बात की गवाही दे रहे होंगे. कोर्ट ने कहा कि अटार्नी जनरल ने उन्हें बताया है कि जुलाई में बने हालात इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं.
पीठ ने कहा, ‘‘सरकार की कार्रवाई के पीछे की भावना संस्थान के हित में होनी चाहिए.” शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सीबीआई निदेशक और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच झगड़ा रातोंरात सामने आया जिसकी वजह से सरकार को चयन समिति से परामर्श किये बिना निदेशक के अधिकार वापस लेने को विवश होना पड़ा हो. उसने कहा कि सरकार को ‘निष्पक्षता’ रखनी होगी और उसे सीबीआई निदेशक से अधिकार वापस लेने से पहले चयन समिति से परामर्श लेने में क्या मुश्किल थी. प्रधान न्यायाधीश ने सीवीसी से यह भी पूछा कि किस वजह से उन्हें यह कार्रवाई करनी पड़ी क्योंकि यह सब रातोंरात नहीं हुआ.
मेहता ने अदालत से कहा कि सीबीआई के शीर्ष अधिकारी मामलों की जांच करने के बजाय एक दूसरे के खिलाफ मामलों की तफ्तीश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सीवीसी के अधिकार क्षेत्र में जांच करना शामिल है, अन्यथा वह कर्तव्य में लापरवाही की दोषी होगी. अगर उसने कार्रवाई नहीं की होती तो राष्ट्रपति और उच्चतम न्यायालय के प्रति जवाबदेह होती. उन्होंने कहा कि सीबीआई निदेशक के खिलाफ जांच सरकार की तरफ से उन्हें भेजी गयी. मेहता ने कहा, ‘‘सीवीसी ने जांच शुरू कर दी लेकिन वर्मा ने महीनों तक दस्तावेज नहीं दिये.” अदालत वर्मा की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. वह उनके खिलाफ केंद्र के फैसले को चुनौती दे रहे हैं.