अातंकी कार्रवाई से ज्यादा लोगों की मौत गड्ढों के कारण हो रही, यह अस्वीकार्य : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सड़कों पर गड्ढों की वजह से पिछले पांच साल में हुई दुर्घटनाओं में करीब 15,000 लोगों की मौत पर बृहस्पतिवार को चिंता व्यक्त करते हुए इसे ‘अस्वीकार्य’ बताया और कहा कि यह संभवत: सीमा पर या आतंकवादियों द्वारा की गई हत्याओं से ज्यादा है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति […]
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सड़कों पर गड्ढों की वजह से पिछले पांच साल में हुई दुर्घटनाओं में करीब 15,000 लोगों की मौत पर बृहस्पतिवार को चिंता व्यक्त करते हुए इसे ‘अस्वीकार्य’ बताया और कहा कि यह संभवत: सीमा पर या आतंकवादियों द्वारा की गई हत्याओं से ज्यादा है.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि 2013 से 2017 के बीच सड़कों पर गड्ढों के कारण हुई मौतों का आंकड़ा यही दिखाता है कि संबंधित प्राधिकारी सड़कों का रखरखाव सही तरीके से नहीं कर रहे हैं. पीठ ने कहा, गड्ढों की वजह से सड़क दुर्घटनाओं में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु अस्वीकार्य है. न्यायालय ने भारत में सड़कों के गड्ढों के कारण होनेवाली मौतों के मामले में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षतावाली उच्चतम न्यायालय की सड़क सुरक्षा समिति की रिपोर्ट के अवलोकन किया. रिपोर्ट के अनुसार देश में 2013 से 2017 के दौरान गड्ढों की वजह से हुई सड़क दुर्घटनाओं में 14,926 व्यक्तियों की मृत्यु हुई.
पीठ ने कहा कि पांच साल में यह लगभग 15, 000 है जो संभवत: सीमा पर या आतंकवादियों द्वारा मारे गये लोगों से अधिक है. पीठ ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर सभी राज्य सरकारों से परामर्श के बाद समिति की रिपोर्ट पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. इस मामले में अब जनवरी में आगे सुनवाई होगी. इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने कहा कि समिति ने शीर्ष अदालत के निर्देश पर अपनी रिपोर्ट तैयार की है और उसने सभी राज्य सरकारों से परामर्श किया था. पीठ ने कहा कि नगर निगम, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और उनके लिए काम करनेवाले संस्थान या राज्यों के सड़क विभाग इन मौतों के लिए जिम्मेदार होंगे क्योंकि वे ही सड़कों का ठीक से रख-रखाव नहीं कर रहे हैं. पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में पीड़ितों के परिजनों को कोई भी मुआवजा नहीं दिया गया और मृतक के कानूनी वारिसों को प्राधिकारियों की उदासीनता की वजह से इस त्रासदी के साथ ही जीना पड़ रहा है.
न्यायालय ने कहा कि इससे पहले गड्ढों की वजह से होनेवाली सड़क दुर्घटनाओं में घायल व्यक्तियों के बारे में कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं थे और निश्चित ही ऐसे घायलों की संख्या मृतकों की संख्या से कहीं अधिक होगी. शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को इस तरह की मौतों पर चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी ऐसी दुर्घटनाओं में होनेवाली मृत्यु के आंकड़े आतंकी हमलों में मारे गये लोगों की संख्या से अधिक हैं. पीठ ने इस स्थिति को भयावह बताते हुए शीर्ष अदालत की समिति से इस मामले में सड़क सुरक्षा के बारे में गौर करने का अनुरोध किया था. न्यायालय ने कहा था कि यह सर्वविदित है कि इस तरह के हादसों में बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होती है और वे प्राधिकारी, अपना काम ठीक तरह से नहीं कर रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी सड़कों के रख-रखाव की है. देश में सड़क सुरक्षा से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सड़कों पर गड्ढों की वजह से होनेवाली मृत्यु और पीड़ितों को मुआवजे का मुद्दा उठा था. न्यायालय इन मुद्दों पर अब विचार कर रहा है.