अस्थाना पर एफआईआर दर्ज करने से पहले इजाजत की जरूरत नहीं थी : वर्मा
नयी दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा ने दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा, विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के पहले सरकार की अनुमति जरुरी नहीं है .उन्होंने यह बात वरिष्ठ विधि अधिकारी के हवाले से कही. प्राथमिकी निरस्त करने के लिये अस्थाना ने याचिका दायर की थी. […]
नयी दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा ने दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा, विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के पहले सरकार की अनुमति जरुरी नहीं है .उन्होंने यह बात वरिष्ठ विधि अधिकारी के हवाले से कही.
प्राथमिकी निरस्त करने के लिये अस्थाना ने याचिका दायर की थी. याचिका के जवाब में वर्मा ने कहा, भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे जनसेवकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सरकार की अनुमति की जरुरत के संबंध में सीबीआई ने अतिरिक्त सॉलीसीटर (एएसजी) जनरल पी एस नरसिम्हा की राय मांगी थी और उन्होंने राय दी थी कि उसकी जरुरत नहीं है.
अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ने ‘‘राय दी थी कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा 17 ए के तहत किसी सक्षम प्राधिकार से अनुमति लेने की तब जरुरत नहीं होती है जब उस तारीख पर जांच पहले से ही शुरु हो गयी हो और धारा 17 ए प्रभाव में आ गया हो.” हलफनामे में यह भी कहा गया है कि विधि अधिकारी ने सलाह दी थी कि जब कानून प्रवर्तन एजेंसी के संज्ञान में किसी संज्ञेय अपराध की जानकारी आए तब प्राथमिकी या प्राथमिक जांच अवश्य ही दर्ज की जाए और उसे धारा 17 ए के तहत पूर्वानुमति का इंतजार नहीं करना चाहिए.
अस्थाना ने अपने विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने के लिए अपनी याचिका में बताये गये आधारों में यह भी है कि प्राथमिकी दर्ज करने से पहले केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली गयी. वर्मा ने दलील दी कि इस मामले में सीबीआई के पास सभी आरोपियों- अस्थाना, डीएसपी देवेंद्र कुमार और बिचौलिये मनोज प्रसाद के विरुद्ध पर्याप्त अभियोजन संबंधी दस्तावेज और सबूत थे तथा प्राथमिक जांच में संज्ञेय अपराधों का खुलासा होने के बाद प्राथमिकी दर्ज की गयी. इससे पहले, सीबीआई ने अस्थाना और कुमार की याचिकाओं पर अपने जवाब में कहा था कि उनके और अन्य के विरुद्ध आरोप संज्ञेय अपराध दर्शाते हैं.
कुमार फिलहाल जमानत पर बाहर हैं और उच्च न्यायालय सीबीआई को 23 अक्टूबर से ही अस्थाना के खिलाफ कार्यवाही के संदर्भ में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दे रखा है. वर्मा के हलफनामे में यह भी दावा किया गया है कि अस्थाना की याचिका गलत धारणा पर आधारित एवं अपरिपक्व है और विचार किये जाने लायक नहीं है क्योंकि इस मामले में जांच तो बिल्कुल ही प्रारंभिक चरण में है. उन्होंने दलील दी है कि यह एक स्थापित परंपरा है कि अदालतों को जांच में दखल नहीं देना चाहिए खासकर उन मामलों में जहां संज्ञेय अपराध उजागर हो. मांस कारोबारी मोईन कुरैशी से जुड़े एक मामले के जांच अधिकारी रहे कुमार को व्यापारी सतीश बाबू सना के बयानों की रिकार्डिंग में फर्जीवाड़ा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
सना ने इस मामले में राहत पाने के लिए रिश्वत देने का दावा किया था. हलफनामे के मुताबिक सना की शिकायत पर ही अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. सना ने अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार, जबरन वसूली और गंभीर कदाचार के आरोप लगाए थे. उच्च न्यायालय ने 28 नवंबर को वर्मा और संयुक्त निदेशक ए के शर्मा को सीवीसी कार्यालय में अस्थाना के विरुद्ध प्राथमिकी से जुड़ी केस फाइल का निरीक्षण करने की अनुमति दी थी. वर्मा ने सीवीसी कार्यालय में रखीं फाईलों पर गौर करने के बाद अदालत से एक और जवाब दाखिल करने की अनुमति मांगी थी.