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मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में मामा से ‘मामू’ बन गये शिवराज सिंह चौहान

मिथिलेश झा लोकतंत्र में पांच साल में एक बार चुनाव होता है. लोग अपनी इच्छा से अपनी सरकार चुनते हैं. अपने प्रतिनिधि से उनकी कई अपेक्षाएं और आकांक्षाएं होती हैं. कई बार नेता और पार्टी अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं, तो लोग उन्हें फिर से मौका देते हैं. उम्मीदों को तोड़ते हैं, तो सत्ता से […]

मिथिलेश झा

लोकतंत्र में पांच साल में एक बार चुनाव होता है. लोग अपनी इच्छा से अपनी सरकार चुनते हैं. अपने प्रतिनिधि से उनकी कई अपेक्षाएं और आकांक्षाएं होती हैं. कई बार नेता और पार्टी अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं, तो लोग उन्हें फिर से मौका देते हैं. उम्मीदों को तोड़ते हैं, तो सत्ता से बेदखल कर दिये जाते हैं. मध्यप्रदेश समेत तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता हाथ से चली गयी. शिवराज सिंह चौहान को जनभावनाओं का अनादर करना महंगा पड़ा. वोट (मत) तो उनके पक्ष में ज्यादा पड़े, लेकिन मतगणना में शिवराज और उनकी पार्टी हार गयी. सबसे बड़ी बात तो यह है कि मध्यप्रदेश के लोगों ने वहां के लोकप्रिय मामा को इस विधानसभा चुनाव में ‘मामू’ बना दिया.

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विशेषज्ञ बताते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव से ठीक पहले कुछ ऐसी गलतियां कर दी, जिसकी वजह से उन्हें अपनी सरकार गंवानी पड़ी. इसमें स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों पर अमल करने की मांग कर रहे किसानों पर पुलिस की फायरिंग के अलावा आरक्षण के मुद्दे पर मामा का दिया गया बयान भी उनकी हार का बड़ा कारण बना. उनकी सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार और उनकी संपत्ति में हुई अनाप-शनाप वृद्धि ने भी लोगों को नाराज कर दिया. रही-सही कसर बेरोजगारी ने पूरी कर दी.

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शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता अनिल माधव दवे की कमी भी खली. भाजपा के गंभीर नेता दवे अब इस दुनिया में नहीं हैं. मध्यप्रदेश में बागियों को साधने की जिम्मेवारी वह बखूबी निभाते थे. उनकी अनुपस्थिति में भाजपा के बागी उम्मीदवारों से ठीक से नहीं निबटा जा सका, जिसका खामियाजा पार्टी और शिवराज को भुगतना पड़ा.

किसानों का गुस्सा

किसानों ने स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर मध्यप्रदेश के किसानों ने मंदसौर में बड़ा आंदोलन किया. इस आंदोलन को पुलिस ने जिस तरह से कुचला, उसने किसानों को शिवराज सिंह चौहान का दुश्मन बना दिया. 6 जून, 2017 को हुई फायरिंग में 6 किसानों की मौत हो गयी. इस मामले में सरकार ने उन पुलिस वालों को क्लीन चिट दे दी, जिन्होंने किसानों पर गोलियां चलायी थीं. वहीं, शिवराज ने यह भी घोषणा कर दी कि वह किसानों का कर्ज माफ नहीं करेंगे. उन्होंने यहां तक कह दिया कि उन्होंने किसानों को बहुत कुछ दिया है. उन्हें कर्ज चुकाने के लिए सरकारी मदद की जरूरत नहीं है. वहीं, राहुल गांधी ने अपनी हर सभा में एलान किया कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है, तो 15 दिन के अंदर सभी किसानों के कर्ज माफ कर दिये जायेंगे. कर्जमाफी की उम्मीद में किसानों ने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया.

आरक्षण का समर्थन पड़ा महंगा

पिछड़े वर्गों को खुश करने के लिए शिवराज सिंह चौहान खुलकर आरक्षण के पक्ष में खड़े हो गये थे. उन्होंने साफ कह दिया था कि ‘कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता’. इससे सवर्ण वोटर नाराज हो गये और परिणाम यह हुआ कि जीतकर भी शिवराज हार गये.

मंत्रियों का भ्रष्टाचार

मध्यप्रदेश में कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. मंत्रियों की संपत्ति में तेजी से वृद्धि हुई. उनकी बड़ी-बड़ी गाड़ियों और बंगलों ने लोगों के मन में इस धारणा को पुष्ट कर दिया कि शिवराज के मंत्रियों ने अनाप-शनाप कमाई की है. राहुल गांधी लोगों को यह समझाने में सफल हो गये कि शिवराज सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है और वह मध्यप्रदेश का भला नहीं कर सकते.

रोजगार देने में विफलता

शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में 15 साल चली सरकार युवाओं को रोजगार देने में पूरी तरह विफल रही. उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया कि वह आने वाले 5 साल में 50 लाख लोगों को रोजगार देंगे. लेकिन, विशेषज्ञों की मानें, तो 15 साल में उनकी सरकार सिर्फ 2.45 लाख लोगों को रोजगार दे पायी. इम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज के आंकड़े बताते हैं कि शिवराज के शासनकाल में मध्यप्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 23 लाख तक पहुंच गयी. मामा की सरकार इस समस्या से निबटने में नाकाम रही. ऐसे में कांग्रेस बेरोजगार युवाओं और उनके परिवारों को अपनी ओर खींचने में कामयाब रही. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा कि यदि उसकी सरकार बनी, तो प्रदेश में हर परिवार से कम से कम एक व्यक्ति को नौकरी दी जायेगी. बेरोजगार युवाओं को 10,000 रुपये का बेरोजगारी भत्ता भी देने का पार्टी ने एलान किया, जिससे युवा उसकी ओर आकर्षित हुए.

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