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2019 के चुनाव में आदिवासी वोटर्स होंगे भाजपा के निशाने पर, रणनीति बनाने के लिए फरवरी में होगा महाजुटान

नयी दिल्ली : पांच राज्यों में हुए चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा ने मंथन शुरू कर दिया है. खासकर हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली हार के बाद भाजपा नयी रणनीति बनाने में जुटी है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा का टारगेट आदिवासी वोटर्स हैं और […]

नयी दिल्ली : पांच राज्यों में हुए चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा ने मंथन शुरू कर दिया है. खासकर हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली हार के बाद भाजपा नयी रणनीति बनाने में जुटी है.

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा का टारगेट आदिवासी वोटर्स हैं और पार्टी नयी रणनीति के अनुसार उन्हें साधने में जुटी है. इसके लिए फरवरी महीने में भाजपा के 5,000 निर्वाचित सदस्य ओडिशा में जुटेंगे. इस महाजुटान में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए आदिवासियों को टारगेट में लेने की रणनीति अपनाई जायेगी. हिंदुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से यह खबर प्रकाशित की है.

गौरतलब कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जहां आदिवासियों की संख्या ज्यादा है, भाजपा ने वोट शेयर और सीट दोनों गंवाई है. इन राज्यों में से दो में भाजपा की स्थिति पिछले दो चुनावों से खराब हुई है. छत्तीसगढ़ में भाजपा 29 रिजर्व सीटों में से मात्र तीन पर ही जीत दर्ज कर पायी. पूरे देश में जितने ट्राइब्स हैं उसका एक तिहाई इसी राज्य में है. वहीं राजस्थान और मध्यप्रदेश में रिजर्व सीट में से मात्र आधे पर ही भाजपा जीत पायी. यह आंकड़ा पिछले चुनाव की तुलना में बहुत ही निराशाजनक है.

छत्तीसगढ़ में अगर सीट शेयरिंग की बात करें तो 2013 में यह 37.9 था जो 2018 में मात्र 10.3 रह गया जबकि 2008 में यह आंकड़ा 65.5 का था. वहीं अगर वोट शेयरिंग की बात करें तो यह 2008 में 39.2, 2013 में 38.6 और 2018 में यह 32.3 हो गया.

मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा सीट शेयरिंग के मामले में 2008 में 61.7, 2013 में 66 प्रतिशत और 2018 में घटकर 34 प्रतिशत हो गया. वोट शेयरिंग की बात करें तो यह आंकड़ा 2003 में 38.7, 2013 में 42.6 और 2018 में 38.9 हो गया.

वहीं राजस्थान में सीट शेयरिंग की स्थिति कुछ ऐसी रही, 2003 में आठ प्रतिशत, 2013 में 72 प्रतिशत और 2018 में 36 प्रतिशत. जबकि वोट शेयरिंग में 2003 में 26.9, 2013 में 41.5 और 2018 में 38.7 रहा.

इस स्थिति में भाजपा और उसकी मातृसंस्था आरएसएस दोनों ही ट्राइबल वोट को लेकर गंभीर हैं, क्योंकि यह पूरे देश की जनसंख्या का नौ प्रतिशत है, 2011 की जनगणना के अनुसार. जिन राज्यों में भाजपा ने सत्ता गंवाई है, उनके लिए यह चिंता का विषय है.

90 के दशक तक आदिवासी वोटर कांग्रेस के साथ थे और उसके बाद उन्होंने भाजपा का रुख किया था, लेकिन इस चुनाव में वे भाजपा का साथ छोड़ते नजर आये हैं. यही कारण है कि पार्टी उन्हें संजोकर रखने के लिए तत्पर है और नयी रणनीति बना रही है. इन तीन राज्यों के अलावा ओडिशा और झारखंड भी आदिवासी बहुल राज्य है.

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