नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने सोमवार को संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में राज्यसभा की कार्यवाही एक दिन के लिए बढ़ाकर नौ जनवरी तक कर दिया. आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों एवं शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने के लिए प्रस्तावित विधेयक पेश करने की खातिर राज्यसभा की कार्यवाही में एक दिन का विस्तार किया गया है. सूत्रों ने यह जानकारी दी.
सूत्रों ने बताया कि राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने सरकार के अनुरोध पर सहमति जताकर उच्च सदन की कार्यवाही एक दिन के लिए बढ़ा दी. बीते 11 दिसंबर को शुरू हुआ संसद का शीतकालीन सत्र मंगलवार (आठ जनवरी) को खत्म होनेवाला था. यह फैसला तब किया गया जब सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों एवं शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले को मंजूरी दी. अब सरकार इससे जुड़ा विधेयक मंगलवार को लोकसभा और बुधवार को राज्यसभा में लाने की तैयारी में है. इसी कारण संसद सत्र की अवधि बढ़ायी गयी है. कांग्रेस और कुछ अन्य पार्टियां आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण संबंधी विधेयक का समर्थन करने की बात कह चुकी है, ऐसे में यह विधेयक निचले सदन लोकसभा में आसानी से पारित हो जाने की संभावना है और फिर अगले दिन बुधवार को यह विधेयक राज्यसभा में लाया जायेगा.
इस बीच, केंद्र में सत्तासीन भाजपा ने अपने सभी सांसदों को संसद में मौजूद रहने का फरमान जारी किया है. साथ विपक्षी दल कांग्रेस ने भी अपने सांसदों को लोकसभा में मौजूद रहने को कहा है. दरअसल, मौजूदा व्यवस्था के तहत सामान्य वर्ग को आरक्षण हासिल नहीं है. लंबे समय से ये मांग की जाती रही है कि आर्थिक तंगी के आधार पर कोटा निर्धारित किया जाये. लोकसभा में सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है और विधेयक काे वहां से आसानी से मंजूरी मिल जायेगी, लेकिन राज्यसभा में भाजपा संख्याबल में कमजोर है. सहयोगी दलों के समर्थन के बाद भी वह बहुमत से दूर है. इसलिए उच्च सदन में उसे विपक्षी दलों के समर्थन की जरूरत होगी. ऐसी स्थिति में विधेयक को लेकर लोकसभा से भी ज्यादा राज्यसभा में मुकाबला दिलचस्प हो सकता है.
मोदी कैबिनेट के इस फैसले को जहां भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने ऐतिहासिक फैसला करार दिया है,वहीं कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का कहना है कि यह चुनाव से पहले का स्टंट है. कांग्रेस ने सरकार की इस घोषणा के समय को लेकर सवाल खड़े करते करते हुए दावा किया कि लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले के इस फैसले को लेकर प्रधानमंत्री की नीयत पर सवाल खड़े होते हैं और आशंका पैदा होती है कि कहीं यह भी जुमला न बन जाये. कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा, कांग्रेस पार्टी हमेशा से आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों के आरक्षण और उत्थान की समर्थक रही है. दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं हो और इसके साथ ही आर्थिक गरीबों के बच्चों को शिक्षा एवं रोजगार में आरक्षण मिले, हम इसमें समर्थन एवं सहयोग करेंगे. उन्होंने कहा, सवाल यह भी है कि जब लोकसभा का चुनाव नजदीक आ गया तब आर्थिक रूप से गरीब लोगों की याद क्यों आयी? इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत पर सवाल खड़े होते हैं.
एनडीए की सहयोगी रही तेलुगू देशम पार्टी ने कहा है कि वह गरीब लोगों को 10 फीसदी आरक्षण का समर्थन करती है, लेकिन यह फैसला अभी क्यों लिया गया, जबकि 2019 के चुनाव से पहले संसद सत्र का बस एक ही दिन बचा है. केरल के मुख्यमंत्री और सीपीएम के नेता पी विजयन ने कहा कि हम यह मांग लंबे समय से उठा रहे हैं. अब सरकार ने यह फैसला किया है, हम इसका स्वागत करते हैं. यूपी की योगी सरकार में सहयोगी भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने कहा है कि ऐसा सरकार के साढ़े चाल साल बाद क्यों किया गया. उन्होंने कहा कि क्योंकि सवर्ण जातियां भाजपा से नाखुश हैं, इसलिए रानजीतिक स्टंट के तहत यह निर्णय लिया गया है.
वहीं, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी सरकार की नीयत और टाइमिंग पर सवाल उठाये हैं. हालांकि, दोनों ही दल आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण तबके के लिए आरक्षण की मांग करते रहे हैं. राजद के तेजस्वी यादव ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था ही नहीं है, आरक्षण सामाजिक बराबरी के लिए दिया जाता है. उन्होंने कहा कि अगर मोदी सरकार आर्थिक स्थिति सुधारना चाहती है तो 15-15 लाख अकाउंट में डलवाये. अब देखना होगा कि मंगलवार को संसद मेंभाजपा संविधान संशोधन विधेयक लाती है तो उस दौरान दूसरे दलों का रुख क्या होगा.