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देश में 30% सवर्ण आबादी, 125 लोस सीटों पर होगा सीधा असर, जानें 5 आरक्षण आंदोलनों के बारे जिन्होंने हिला दिया था देश
केंद्र सरकार ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद पूरे देश में सवर्ण समाज बेहद नाराज था. इन्हें मनाने के लिए […]
केंद्र सरकार ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद पूरे देश में सवर्ण समाज बेहद नाराज था. इन्हें मनाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का एलान किया है. सरकार के इस फैसले से लोकसभा की करीब 125 सीटों पर असर पड़ेगा.
2007 में सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा कराये गये एक सर्वे के मुताबिक, देश की हिंदू आबादी में पिछड़े वर्ग की संख्या 41 फीसदी और सवर्णों की संख्या 30 प्रतिशत है. 2014 के एक अनुमान के मुताबिक, 125 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां हर जातिगत समीकरणों पर सवर्ण उम्मीदवार भारी पड़ते हैं और जीतते हैं.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, हिमाचल, उत्तराखंड और राजस्थान में सवर्ण जातियों का असर वोट वैंक पर दिखता है. लोकनीति के एक सर्वे के मुताबिक, अब भी देश में 55 प्रतिशत वोटर प्रत्याशी की जाति देखकर वोट करते हैं. 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सामान्य जाति के 35.3 फीसदी और कांग्रेस को 25.5 फीसदी वोट मिले थे. 2014 में भाजपा के पक्ष में सबसे ज्यादा सवर्ण वोट मिले थे. भाजपा को 47.8 फीसदी और कांग्रेस को महज 13.8 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसका असर लोकसभा की सीटों पर दिखा.
उत्तर प्रदेश की 10 प्रतिशत सीटें सवर्ण बहुल
यूपी में 10 फीसदी ब्राह्मण, 7 फीसदी ठाकुर, 3 फीसदी वैश्य और 1 प्रतिशत कायस्थ मिलकर सवर्णों की तकरीबन 21 फीसदी आबादी है. यूपी के कुशीनगर, गोरखपुर, संतकबीर नगर, देवरिया, भदोई, वाराणसी, आंबेडकर नगर, सुल्तानपुर और खीरी जिलों ब्राह्मण जाति का असर राजनीति पर दिखता है. कुल मिलकर 10 फीसदी सीटें प्रभावित होती हैं.
राज्यवार सवर्णों का प्रतिशत
राज्य सवर्ण आबादी
बिहार 11.60
मध्य प्रदेश 15.00
राजस्थान 18.00
छत्तीसगढ़ 8.00
महाराष्ट्र 15.90
गुजरात 27.53
कर्नाटक 17.00
पहले भी सरकारों ने दिया था आरक्षण, कोर्ट ने लगा दी थी रोक
मोदी सरकार से पहले भी केंद्र की सरकारों ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का फैसला किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने छह नवंबर, 1992 को इंद्रा साहनी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (एआइआर 1993 एसी 477) में अपना फैसला सुनाया था. इसमें साफ किया था कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या इनके अलावा किसी भी अन्य विशेष श्रेणी में दिये जाने वाले आरक्षण का कुल आंकड़ा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विशेष रूप से ‘आर्थिक मानदंड’ असंवैधानिक थे, क्योंकि ‘गरीब’ की श्रेणी में ‘सामाजिक पिछड़ेपन’ को प्रतिबिंबित नहीं किया गया था. कोर्ट ने कहा था कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है. हालांकि, जुलाई, 2010 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ठोस वजह होने पर राज्य सरकार इसे बढ़ा सकती है.
कब-कब हुआ है खारिज?
2016 : अप्रैल में गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी. सरकार के इस फैसले के अनुसार छह लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को इस आरक्षण के अधीन लाने की बात कही गयी थी. हालांकि, अगस्त 2016 में हाइकोर्ट ने इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था.
2015 : सितंबर में राजस्थान सरकार ने अनारक्षित वर्ग के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था. हालांकि, दिसंबर 2016 में राजस्थान हाइकोर्ट ने इस आरक्षण विधेयक को रद्द कर दिया था. ऐसा ही हरियाणा
में भी हुआ था.
1978 : बिहार में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को तीन फीसदी आरक्षण दिया था. हालांकि बाद में कोर्ट ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया.
1991 : मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने के ठीक बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया था और 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि 1992 में कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया था.
संसद में संविधान संशोधन बिल पास कराना मुश्किल
आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण का लाभ देने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा. 49.5 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने के लिए संविधान की धारा 15 और 16 में बदलाव करना होगा. धारा 15 के तहत शैक्षणिक संस्थानों और धारा 16 के तहत रोजगार में आरक्षण मिलता है. अगर, संसद से ये संविधान संशोधन विधेयक पास हो जाता है, तो इसका लाभ ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार, कायस्थ, बनिया, जाट और गुर्जर आदि को मिलेगा. हालांकि, सरकार के लिए यह मुश्किल काम होगा, क्योंकि मोदी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है.
लोकसभा
523 सांसद हैं वर्तमान में
348 सांसदों की जरूरत. (संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी )
एनडीए सांसद
भाजपा 268
शिवसेना 18
एलजेपी 06
अकाली दल 04
अपना दल 02
एसडीएफ 01
जेडीयू 02
एनडीपीपी 01
कुल 302
राज्यसभा
244 सांसद हैं फिलहाल
163 सांसदों की जरूरत. (संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी )
एनडीए सांसद
भाजपा 73
जेडीयू 06
शिवसेना 03
अकाली दल 03
एसडीएफ 01
एनपीएफ 01
नाम निर्देशित 04
वाइएसआरसीपी 02
कुल 93
गर संसद से पास हो गया, तो क्या होगा?
अगर मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों से विधेयक पास करा भी लिया, तो उसे इस विधेयक पर 14 राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी लेनी होगी. याद रहे कि इसमें जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कोई रोल नहीं होगा, क्योंकि जम्मू-कश्मीर का अपना अलग कानून है. इसके बाद अगर इस विधेयक को देश के 14 राज्यों की विधानसभाओं ने मंजूरी दे दी, तो इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जायेगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही ये बिल कानून बन पायेगा.
संविधान में क्या है प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 15 (4) के अनुसार राज्य को यह अधिकार है कि अगर वह चाहे, तो अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है. अनुच्छेद 16 (4) में कहा गया है कि यदि राज्य चाहे तो सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण ला सकता है. अनुच्छेद 330 के तहत संसद और 332 में राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित की गयी हैं.
पांच बड़े आरक्षण आंदोलन, जिन्होंने देश को हिला दिया
गुर्जर आंदोलन
2008 में आरक्षण की मांग को लेकर राजस्थान में गुर्जर समुदाय ने आंदोलन किया था, जिसमें 20 लोगों की मौत हो गयी थी. 2015 में भी हजारों प्रदर्शनकारियों ने कुछ रेलवे ट्रैक्स पर कब्जा कर लिया था. कई रेलवे ट्रैक को उखाड़ दिया गया था. हफ्तेभर चले इस आंदोलन में रेलवे को 200 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा था.
पाटीदार आंदोलन
2015 में गुजरात के पाटीदार समाज ने आंदोलन किया था. इसी आंदोलन से हार्दिक पटेल उभरे. इस दौरान गाड़ियों के साथ सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया. यह आंदोलन करीबन दो महीने तक चला था. इसमें कई लोगों की जान चली गयी थी.
कापू आंदोलन
आंध्र प्रदेश के कापू समुदाय ने 2016 में ओबीसी दर्जे की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किया था. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने रत्नाचल एक्सप्रेस के चार डिब्बों सहित दो पुलिस थानों को आग के हवाले कर दिया था. दर्जनों लोग घायल हुए थे.
मराठा आरक्षण
नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय ने महाराष्ट्र में कई बार आंदोलन किया. आंदोलन की वजह से सरकार ने महाराष्ट्र विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पास कर दिया. राज्य में मराठाओं को 16 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. सूबे में मराठा करीब 33 प्रतिशत हैं, जो राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है.
जाट आंदोलन
फरवरी, 2016 में आरक्षण की मांग को लेकर जाट समुदाय ने हिंसक आंदोलन किया था. हरियाणा में आंदोलन के दौरान करीब 30 लोगों की जान गयी और राज्य को 34 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. इसकी आग पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व हिमाचल में फैल गयी थी.
आजादी के पहले भी होती रही थी आरक्षण की मांग
1882 : महात्मा ज्योतिराव फुले ने वंचित तबके के लिए सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व की मांग की थी. 1882 में प्राथमिक शिक्षा के लिए हंटर कमीशन का गठन हुआ.
1891 : त्रावणकोर रियासत में सिविल नौकरियों में देसी लोगों की बजाय बाहरी लोगों को तरजीह देने के खिलाफ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की उठी मांग.
1901 : कोल्हापुर रियासत के छत्रपति शाहूजी महाराज ने वंचित तबके के लिए आरक्षण की व्यवस्था की. वंचितों के लिए मुफ्त शिक्षा और हॉस्टल की व्यवस्था.
1908 : अंग्रेजों मे भी प्रशासन में कम हिस्सेदारी वाली जातियों की भागीदारी बढ़ाने का प्रावधान.
आजादी के 32 साल बाद आरक्षण को लेकर बना था मंडल आयोग
1979 : मोरारजी देसाई की सरकार ने सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों की पहचान करने के लिए मंडल आयोग का किया गठन. 1930 की जनसंख्या के आधार पर 1,257 समुदायों को पिछड़ी जाति में शामिल किया और उनकी आबादी 52% निर्धारित की गयी.
1980 : मंडल आयोग ने सिफारिश की कि मौजूदा 22 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण जोड़ा जाये.
1990 : मंडल कमीशन की सिफारिश के बाद अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गयी.
कैबिनेट के फैसले पर किसने क्या कहा
कैबिनेट द्वारा आर्थिक तौर से कमजोर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है. लोजपा इस सराहनीय निर्णय का स्वागत करती है.
रामविलास पासवान, लोजपा प्रमुख
चुनाव के पहले भाजपा सरकार संविधान में संशोधन करे. हम सरकार का साथ देंगे. नहीं तो साफ हो जायेगा कि यह मात्र भाजपा का चुनाव के पहले का स्टंट है.
अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री , दिल्ली
बहुत देर कर दी मेहरबां आते-आते. यह एलान तभी हुआ है, जब चुनाव नजदीक है. वे कुछ भी कर लें. कोई भी जुमला उछाल दें, सरकार बचने वाली नहीं है.
हरीश रावत , कांग्रेस नेता
गरीब सवर्णों को आरक्षण का एलान साबित करता है कि चुनाव का बिगुल बजाया जा चुका है.
उमर अब्दुल्ला, नेशनल कॉन्फ्रेंस
सवर्णों को आरक्षण देने का प्रस्ताव एक जुमले से ज्यादा कुछ नहीं है. संसद में इसे पारित कराने के लिए कोई समय नहीं है. सरकार पूरी तरह से बेनकाब है.
यशवंत सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री
सवर्णों को आरक्षण देने का निर्णय स्वागतयोग्य व सराहनीय कदम है. आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का हृदय से आभार एवं समस्त देशवासियों की ओर से हार्दिक अभिनंदन. सबका साथ, सबका विकास.
नंदकिशोर यादव, भाजपा नेता
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