नरसिंहगढ़ के महाराजा भानु प्रकाश सिंह का निधन, दिग्विजय सिंह ने जताया शोक

इंदौर : कांग्रेस के पूर्व सांसद और नरसिंहगढ़ रियासत के महाराजा भानु प्रकाश सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. वह गोवा के राज्यपाल भी रहे थे. उनके निधन पर मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने शोक प्रकट किया है. उन्होंने ट्वीट करते हुए श्रद्धांजलि दी है. दिग्विजय सिंह ने ट्विट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 24, 2019 4:01 PM

इंदौर : कांग्रेस के पूर्व सांसद और नरसिंहगढ़ रियासत के महाराजा भानु प्रकाश सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. वह गोवा के राज्यपाल भी रहे थे. उनके निधन पर मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने शोक प्रकट किया है.

उन्होंने ट्वीट करते हुए श्रद्धांजलि दी है. दिग्विजय सिंह ने ट्विट करते हुए कहा, ‘महाराजा भानुप्रकाश सिंह जी, नरसिंहगढ़ के दुखद देहांत के समाचार सुनकर बेहद दुख हुआ. वे एक बेहद प्रभावशाली व्यक्ति थे. वे इंदिरा गांधी जी के बेहद निकट थे, यदि प्रिवी पर्स के विषय पर कांग्रेस से इस्तीफा नहीं दिया होता तो वे कांग्रेस के बहुत ही बड़े नेता होते.’

एक दूसरे ट्विट में उन्‍होंने लिखा, ‘ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और शोक संतप्त परिवार को इस असहनीय दुख सहने की शक्ति प्रदान करें.’

तीसरी लोकसभा में चुने गये थे सांसद

महाराजा भानु प्रकाश सिंह 1962 में तीसरी लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गये थे. उन्होंने रायगढ़ लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए थे. वह केंद्रीय मंत्री और गोवा के राज्यपाल भी थे. बता दें कि महाराजा भानु प्रकाश सिंह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. बीमारी के बाद इंदौर में उनका इलाज चल रहा था.

क्या था प्रिवी पर्स?

आजादी के पहले हिंदुस्तान में लगभग 500 से ऊपर छोटी बड़ी रियासतें थीं. ये सभी संधि द्वारा ब्रिटिश हिंदुस्तान की सरकार के अधीन थीं. इन रियासतों की रक्षा और विदेश मामले ब्रिटिश सरकार देखती थी. इन रियासतों में पड़ने वाला कुल इलाका भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रफल का तिहाई था. देश की 28 फीसदी आबादी इनमें रहती थी.

इनके शासकों को क्षेत्रीय-स्वायत्तता प्राप्त थी. जिसकी जितनी हैसियत, उसको उतना भत्ता ब्रिटिश सरकार देती थी और ये नाममात्र के राजा थे. इनके राज्यों की सत्ता अंग्रेज सरकार के अधीन थी, इनको बस बंधी-बंधाई रकम मिल जाती थी. बाद में इंदिरा गांधी ने इसे बंद कर दिया था. जिसके देश के कई राजाओं ने विरोध किया था. कहा गया था कि जिस देश में इतनी गरीबी हो वहां राजाओं को मिलने वाली ये सुविधाएं तर्कसंगत नहीं लगतीं.

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