Supreme Court ने कहा – केंद्र को तत्काल नियमित सीबीआई निदेशक की नियुक्ति करनी चाहिए

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह अंतरिम सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के खिलाफ नहीं है, परंतु केंद्र को तत्काल केन्द्रीय जांच ब्यूरो के नियमित निदेशक की नियुक्ति करनी चाहिए. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि सीबीआई निदेशक का पद संवेदनशील है और लंबे समय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2019 8:33 PM

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह अंतरिम सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के खिलाफ नहीं है, परंतु केंद्र को तत्काल केन्द्रीय जांच ब्यूरो के नियमित निदेशक की नियुक्ति करनी चाहिए.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि सीबीआई निदेशक का पद संवेदनशील है और लंबे समय तक इस पद पर अंतरिम निदेशक को रखना अच्छी बात नहीं है. पीठ ने इस टिप्पणी के साथ ही सरकार से जानना चाहा कि अभी तक इस पद पर नियुक्ति क्यों नहीं की गयी. इस पर केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सीबीआई के नये निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षतावाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति की शुक्रवार को बैठक हो रही है. पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि आपको सीबीआई निदेशक तत्काल नियुक्त करना चाहिए. प्रभारी अधिकारी और नहीं.

अटाॅर्नी जनरल ने कहा कि समिति यह काम जल्द से जल्द कर रही है. पीठ नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने के सरकार के फैसले को चुनौती देनेवाली गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस संगठन के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पिछले दो-तीन सप्ताह में सीबीआई से 40 अधिकारियों का तबादला किया जा चुका है. पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि सीबीआई निदेशक पद पर नियुक्त होनेवाले अधिकारी को नागेश्वर राव द्वारा अंतरिम निदेशक का पदभार ग्रहण करने के बाद लिये गये फैसलों की जांच ही नहीं करनी चाहिए, बल्कि जब निदेशक पद पर बहाली के बाद आलोक वर्मा ने दो दिन के लिए पदभार ग्रहण किया था उस दौरान हुए फाइलों की आवाजाही का भी पता लगाना चाहिए.

सुनवाई के दौरान अटाॅर्नी जनरल ने सीलबंद लिफाफे में उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक की कार्यवाही का विवरण पेश किया. इस समिति की 24 जनवरी को बैठक हुई थी जो अधूरी रह गयी थी. उन्होंने पीठ से यह भी कहा कि केंद्र ने आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव को अंतरिम सीबीआई निदेशक नियुक्त करने से पहले उच्चाधिकार प्राप्त समिति की मंजूरी ली थी. चयन समिति में प्रधान मंत्री, प्रतिपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता और प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित शीर्ष अदालत के न्यायाधीश शामिल हैं. भूषण ने न्यायालय से कहा कि सरकार को सीबीआई में अंतरिम निदेशक नियुक्त करने का अधिकार नहीं है और ऐसा सिर्फ उच्चाधिकार समिति की मंजूरी के बाद ही किया जा सकता है. पीठ ने भूषण से कहा, आप सौ फीसदी सही हैं कि समिति द्वारा ही नियुक्ति की जानी चाहिए.

इसी दौरान पीठ ने अटाॅर्नी जनरल से सवाल किया, आपने (केंद्र) अभी तक नियमित निदेशक नियुक्त क्यों नहीं किया? सीबीआई निदेशक एक संवेदनशील पद है. यह सब अक्तूबर से चल रहा है. आप पहले से ही जानते थे कि यह व्यक्ति (पूर्व निदेशक आलोक वर्मा) जनवरी में सेवानिवृत्त हो रहे हैं. आपको नया निदेशक नियुक्त करना चाहिए था. वेणुगोपाल ने कहा कि यह मामला शीर्ष अदालत में लंबित था और इस पर पिछले महीने ही फैसला आया है. पीठ ने अटाॅर्नी जनरल से कहा कि अंतरिम निदेशक की नियुक्ति की व्यवस्था का मार्ग नहीं अपनाया जाना चाहिए. जांच एजेंसी तदर्थता के आधार पर काम नहीं कर सकती. हफ्ता दो हफ्ता समझ में आता है, परंतु इससे अधिक नहीं.

अटाॅर्नी जनरल ने कहा कि चयन समिति की पिछली बैठक में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कुछ जानकारी मांगी थी जो उन्हें उपलब्ध करा दी गयी है. इस पर पीठ ने कहा कि चयन समिति का सदस्य अगर कुछ तथ्यों की पुष्टि करना चाहता है, तो यह बुरी बात नहीं है. चयन समिति की शुक्रवार को प्रस्तावित बैठक के बारे में अटॉर्नी जनरल के कथन के मद्देनजर न्यायालय ने मामले की सुनवाई छह फरवरी तक स्थगित कर दी. भूषण ने पीठ से कहा कि न्यायालय को जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता के पहलू पर गौर करना चाहिए. पीठ ने भूषण से कहा, आप तत्काल नियुक्ति चाहते हैं. हमें यहीं रुकना होगा. पहले नियुक्ति होने दीजिये. यदि आपको कोई शिकायत हो कि प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और इसमें पारदर्शिता नहीं थी, तो आप इसे बाद में चुनौती दे सकते हैं. जांच ब्यूरो के अंतरिम निदेशक के रूप में नागेश्वर राव की नियुक्ति को चुनौती देनेवाली इस याचिका पर सुनवाई से तीन न्यायाधीश पहले ही खुद को अलग कर चुके थे. इसके बाद न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति सिन्हा की पीठ का गठन किया गया था.

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