40 साल बाद बंगाल से तैरकर प्रयागराज पहुंचेंगी हिल्सा मछलियां, गंगा में बनेगा गलियारा
बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली हिल्सा अब गंगा नदी के रास्ते प्रयागराज (इलाहाबाद) तक पहुंचेगी. ऐसे में यह उत्तर प्रदेश के हिल्सा मछली के शौकीनों के लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं है. दरअसल, 40 साल के अंतराल के बाद प्रयागराज में हिल्सा मछलियों के इस बार के मॉनसून में गंगा में जगह लेने की योजना […]
बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली हिल्सा अब गंगा नदी के रास्ते प्रयागराज (इलाहाबाद) तक पहुंचेगी. ऐसे में यह उत्तर प्रदेश के हिल्सा मछली के शौकीनों के लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं है. दरअसल, 40 साल के अंतराल के बाद प्रयागराज में हिल्सा मछलियों के इस बार के मॉनसून में गंगा में जगह लेने की योजना पर काम चल रहा है.
फरक्का नेवीगेशन लॉक
मालूम हो कि कई तरह के जीव-जंतुओं के लिए जीवनदायिनी गंगा नदी को स्वच्छ बनाये रखने के लिए केंद्र सरकार ने नमामि गंगे परियोजना चला रखी है. अब हिल्सा के प्रजनन और उनके एक स्थान से दूसरे स्थान तक आवागमन के लिए अलग से बैराज बनाया जाएगा, जो प्रयागराज तक बनेगा. इस गलियारे का निर्माण फरक्का नेवीगेशन लॉक के तहत जलमार्ग विकास परियोजना के जरिये किया जा रहा है.
मछलियों का अलग गलियारा
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक, 1976 में फरक्का नेवीगेशन लॉक के निर्माण के बाद से नदी में हिल्सा मछलियों की गतिविधियां फरक्का तक सीमित रह गयी थीं, लेकिन अब जलमार्ग विकास परियोजना के जरिये अलग से मछलियों के गलियारा बन जाने से इनका एक स्थान से दूसरे स्थान आना-जाना आसान हो जाएगा.
पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश में सांस्कृतिक महत्व
यहां यह जानना गौरतलब है कि बांग्लादेश के अलावा पश्चिम बंगाल में भी बड़ा सांस्कृतिक महत्व रखनेवाली हिल्सा मछली का प्रयागराज तक माइग्रेशन, 70 के दशक में बंगाल में फरक्का पर एक बैराज बनाने की वजह से संभव हुआ था. लेकिन फिर फरक्का नेविगेशन लॉक का निर्माण होने की वजह से हिल्सा का आवागमन अवरुद्ध हो गया था.
सुरक्षित और सुगम्य माइग्रेशन
नयी योजना के तहत अब इस लॉक को इस तरह री-डिजाइन किया जाएगा, ताकि तीनों मेटिंग सीजन (प्रजनन समय) में, खासकर मॉनसून सीजन में हिलसा का सुरक्षित और सुगम्य माइग्रेशन हो सके. इनलैंड वाटरवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IWAI) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, हम रात एक बजे से सुबह 5 बजे तक केवल 8 मीटर तक गेट खोलेंगे जो कि हिलसा के स्थानांतरण के लिए उचित समय है. हमने आइसीएआर सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टिट्यूट, सेंट्रल वाटर कमिशन और फरक्का बैराज प्रॉजेक्ट अथॉरिटी के साथ मिलकर यह प्रावधान किया है. हमने इसे रीडिजाइन करके इनहाउस बनाया है और इसके जरिये करीब 100 करोड़ रुपये की बचत की गयी है.
खारे पानी वाली मछलियां
गौरतलब है कि हिल्सा मछलियों के बांग्लादेश से प्रयागराज तक माइग्रेशन का इतिहास रहा है. हालांकि ये खारे पानी वाली मछलियां हैं लेकिन फिर भी बंगाल की खाड़ी से गंगा के मीठे पानी में माइग्रेट करती हैं. जानकार बताते हैं कि हिल्सा मछलियां भोजन के लिए अक्सर बड़े एरिया में फैल जाती हैं. हिल्सा के माइग्रेशन से क्षेत्र में इनकी संख्या भी बढ़ेगी.