नयी दिल्ली : दिल्ली सरकार को बृहस्पतिवार को उस समय तगड़ा झटका लगा जब उच्चतम न्यायालय ने प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के संबंध में खंडित निर्णय सुनाया, लेकिन इस बात से सहमत नजर आया कि इसमें अंतिम राय केंद्र की है. न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने इस मुद्दे पर मतभेद के मद्देनजर मामला न्यायालय की वृहद पीठ को सौंप दिया.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह अजीब बात है कि मुख्यमंत्री को अपने कार्यालय में एक चपरासी तक की नियुक्ति करने का अधिकार नहीं होगा. केजरीवाल लगातार केंद्र पर ऐसे अधिकारी नियुक्त करने का आरोप लगाते रहे हैं जो आप सरकार के कामकाज में बाधा डालते हैं. न्यायालय ने केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के साथ दिल्ली की आप सरकार के बीच लगातार चल रही तकरार से संबंधित छह मामलों में से शेष पांच मुद्दों पर सर्वसम्मति का फैसला सुनाया. न्यायमूर्ति सीकरी और न्यायमूर्ति भूषण इस मुद्दे पर सहमत थे कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो पर उपराज्यपाल का नियंत्रण रहेगा और जांच आयोग गठित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास ही रहेगा.
न्यायालय ने कहा कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार को लोक सेवक नियुक्त करने, भू-राजस्व के मामलों का फैसला करने और विद्युत आयोग या बोर्ड की नियुक्ति का अधिकार होगा. जहां तक प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण का संबंध है, तो न्यायमूर्ति भूषण ने अपने निर्णय में कहा कि सभी प्रशासनिक सेवाओं के बारे में दिल्ली सरकार को कोई अधिकार नहीं होगा. हालांकि, न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि संयुक्त निदेशक और इससे ऊपर के अधिकारियों के तबादले और तैनाती सिर्फ केंद्र सरकार कर सकती है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों में मतभेद होने की स्थिति में उपराज्यपाल का दृष्टिकोण माना जायेगा. न्यायमूर्ति सीकरी ने आईएएस अधिकारियों के लिए बने बोर्ड की तरह ही ग्रेड-3 और ग्रेड-4 के अधिकारियों के तबादले और तैनाती के लिए अलग बोर्ड बनाने का सुझाव दिया.
न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि दिल्ली में सुचारू ढंग से शासन के लिए सचिव और विभागों के मुखिया के पद पर तैनाती और तबादले उपराज्यपाल द्वारा किये जायेंगे, जबकि दानिक्स और दानिप्स सेवा के अधिकारियों के मामले में फाइल मंत्रिपरिषद को उपराज्यपाल के पास भेजनी होगी. न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि संयुक्त निदेशक और उससे उच्च पदों के अधिकारियों की तैनाती और तबादले सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा ही किये जायेंगे क्योंकि इस संबंध में राज्य संघ लोक सेवा आयोग का कोई कानून नहीं है और दिल्ली सरकार के पास काडर नियंत्रण का अधिकार नहीं है. हालांकि, न्यायमूर्ति भूषण ने इससे असहमति व्यक्त की और कहा कि कानून के तहत दिल्ली सरकार को सेवाओं पर नियंत्रण का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने इन सेवाओं के बारे में दिल्ली उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को बरकरार रखा.
पीठ ने सर्वसम्मति से केंद्र की उस अधिसूचना को सही ठहराया जिसमे कहा गया था कि भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारी की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो जांच नहीं कर सकता. यह ब्यूरो दिल्ली सरकार का हिस्सा है, परंतु यह उपराज्यपाल के अधीन है. सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे पर मतभेद के बाद पीठ ने अपना आदेश लिखाया और कहा कि यह मामला वृहद पीठ को सौंपने की आवश्यकता है और दोनों न्यायाधीशों की राय प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखी जाये ताकि उचित पीठ का गठन किया जा सके. दिल्ली सरकार ने पिछले साल चार अक्तूबर को शीर्ष अदालत से कहा था कि वह चाहती है कि राष्ट्रीय राजधानी के शासन से संबंधित उसकी याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई की जाये क्योंकि वह प्रशासन में लगातार गतिरोध नहीं चाहती है.
दिल्ली सरकार ने यह भी कहा था कि संविधान पीठ के फैसले चार जुलाई, 2018 के आलोक में यह जानना चाहती है कि प्रशासन के मामले में उसकी क्या स्थिति है. केंद्र और दिल्ली में आप सरकार के बीच अधिकारों को लेकर लगातार हो रही खींचतान के परिप्रेक्ष्य में संविधान पीठ ने अपने इस फैसले में राष्ट्रीय राजधानी में शासन के मानदंड निर्धारित किये थे. संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता परंतु उसने उपराज्यपाल के अधिकार भी कम कर दिये थे. संविधान पीठ ने कहा था कि उपराज्यपाल को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है और उन्हें निर्वाचित सरकार की मदद और सलाह से ही काम करना होगा. केंद्र सरकार ने पिछले साल 19 सितंबर को न्यायालय से कहा था कि दिल्ली का प्रशासन अकेले दिल्ली सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता है. केंद्र ने दलील दी थी कि देश की राजधानी होने की वजह से इसका एक विशेष स्थान है.