J&K में Article 35A : केंद्र के एक्शन से कश्मीर घाटी में अफरातफरी, क्या करेगी मोदी सरकार?
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 35ए पर इस हफ्ते संभावित सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने कश्मीर घाटी में कुछ एक्शन लिया. केंद्र के एक्शन से घाटी में अफरातफरी मच गयी. जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के तीखे बयान आने शुरू हो गये. माना जा रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार […]
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 35ए पर इस हफ्ते संभावित सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने कश्मीर घाटी में कुछ एक्शन लिया. केंद्र के एक्शन से घाटी में अफरातफरी मच गयी. जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के तीखे बयान आने शुरू हो गये. माना जा रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार अध्यादेश के जरिये लंबे समय से विवादित आर्टिकल 35ए में बदलाव कर सकती है. इसके तहत जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य के नागरिकों को पूर्ण नागरिकता प्रदान करती है.
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आर्टिकल 35ए एक ऐसा कानून है, जिसकी वजह से जम्मू और कश्मीर के बाहर का कोई भी व्यक्ति इस राज्य में किसी प्रकार की संपत्ति नहीं खरीद सकता. यहां कि महिला से शादी के बाद उसकी संपत्ति पर हक नहीं जमा सकता. यह आर्टिकल राज्य के लोगों को विशेष दर्जा देता है.
इस आर्टिकल को महिला विरोधी, भेदभावपूर्ण और संविधान में दी गयी समानता, एकता की भावना को मजबूत बनाने से रोकने वाला करार देते हुए कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई हैं. वर्ष 2014 में एक गैर सरकारी संस्था (NGO) वी द पीपुल (We The People) ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की थी. इसके साथ ही इससे संबंधित 20 याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं. एक दर्जन से ज्यादा बार इस केस की लिस्टिंग होचुकी है, लेकिन सुनवाई एक बार भी नहीं हुई.
शनिवार को अधिकारियों के बताया कि सरकार आर्टिकल 35ए में संशोधन पर विचार कर रही है. सूत्रों के मुताबिक, अभी मामला कोर्ट में है, इसलिए सरकार इस पर कुछ निर्णय नहीं कर सकती. उन्होंने इस बात से भी इन्कार कर दिया कि सरकार इस कानून पर अध्यादेश लायेगी. लेकिन, इस बात पर बल दिया कि कोर्ट से इस मामले का हल निकल आयेगा.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि संविधान में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सलाह पर इस बात का जिक्र है कि आर्टिकल 35ए के तहत कोई भी जम्मू-कश्मीर की महिला राज्य के बाहर के व्यक्ति से विवाह कर सकती है. इस प्रस्ताव को चैलेंज करते हुए कहा गया है कि यह कानून राष्ट्रपति आदेश से प्रभावी हुआ है. भारत में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है.
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इस कानून पर विरोधियों ने भी सवाल उठाये थे. कहा था कि कानून महिला विरोधी है. भेदभावपूर्ण है. यह संविधान में सबको दी गयी समानता, एकता की भावना को मजबूत बनाने से रोकता है.