1998 से भाजपा-कांग्रेस के बीच सिमटा मध्य प्रदेश का लोकसभा चुनाव
1998 से ही मध्य प्रदेश का लोकसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच सिमट गया. इससे पहले बसपा तीसरा कोण बन कर उभरती रही थी और 1996 में निर्दलीय ने भी तीन सीटें जीती थीं, मगर उसके बाद से निर्दलीय और बसपा का भी खाता राज्य में बंद हो गया. पिछले पांच चुनावों में यहां […]
1998 से ही मध्य प्रदेश का लोकसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच सिमट गया. इससे पहले बसपा तीसरा कोण बन कर उभरती रही थी और 1996 में निर्दलीय ने भी तीन सीटें जीती थीं, मगर उसके बाद से निर्दलीय और बसपा का भी खाता राज्य में बंद हो गया.
पिछले पांच चुनावों में यहां किसी की दाल नहीं गली. सबसे खराब स्थिति तो सपा की रही, जिसके सौ फीसदी उम्मीदवारों की यहां जमानत ही जब्त होती रही है. 1999 के चुनाव में लोकसभा की 40 में से 29 सीटें भाजपा और 11 सीटें कांग्रेस के खाते में गयीं.
राज्य विभाजन के बाद 2004 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में राज्य की 29 में से 25 सीटेंं भाजपा ने जीत ली और चार सीटें कांग्रेस को मिलीं. बाकी सभी दलों का सफाया हो गया.
2009 में भाजपा को बड़ा झटका लगा और नौ सीटों के नुकसान के साथ उसे 16 सीटें ही मिली, मगर फिर भी उसकी झोली सबसे भारी रही. कांग्रेस को आठ सीटों का फायदा हुअा और वह 12 के अंक पर पहुंची, मगर 2014 के लोकसभा में भाजपा ने हिसाब चुकता कर लिया. उसने 29 में से 27 सीटें जीत लीं और कांग्रेस के खाते में केवल दो सीटें आयीं.
इस चुनाव में भी बाकी दलों का सफाया हो गया. हालांकि वोट प्रतिशत के लिहाज से देखें, तो पिछले चुनावों में कांग्रेस की जमीन ज्यादा नहीं खिसकी है. 2004 में जब उसे चार सीटें मिलीं थीं, तब उसे 34.06 फीसदी थी, जो 2014 में दो सीटों के नुकसान के बाद भी उसके वोट प्रतिशत (34.89%) में इजाफा ही हुआ.