नयी दिल्ली : पाकिस्तान के बालकोट की पहाड़ियों पर भारतीय सेना ने मंगलवार तड़के 350 से ज्यादा आतंकवादियों को हवाई हमले (Air Strike) में मार गिराया. इसके बाद दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बनी बालकोट की पहाड़ी का जिहादी इतिहास करीब 200 साल पुराना है. 19वीं सदी में सिख और मराठा शासकों को मिटाने और इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से बरेली के एक मौलाना ने बालकोट को जिहाद का केंद्र बनाने की कोशिश की थी. कहते हैं कि वर्ष 1831 में सिख सेना ने सैयद अहमद बरेलवी और शाह इस्माइल समेत करीब 3000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.
पाकिस्तानी लेखक अजीज अहमद के मुताबिक, वर्तमान उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले सैयद अहमद बरेलवी (1786-1831) ने इस जगह को जिहाद की जन्मस्थली बनायी. इसे आधुनिक इतिहास का पहला जिहाद कहा जाता है.
बालाकोट को अपने जिहाद के लांचिंग पैड के लिए सैयद अहमद बरेलवी ने खास कारण से चुना. बरेलवी को उम्मीद थी कि सुदूरवर्ती इलाके में कोई उस पर हमला नहीं करेगा. उसका मानना था कि बालकोट पहाड़ों से घिरा है और एक ओर नदी है. इसलिए किसी का भी यहां पहुंचना मुश्किल होगा.
सैयद अहमद बरेलवी ने जब इस जगह को जिहाद का केंद्र बनाया, तब उसकी उम्र 46 साल थी. बरेलवी की सोच थी कि आसपास की मुस्लिम आबादी और अफगानिस्तानियों का इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना के लिए शुरू किये गये जिहाद में उसे मदद मिलेगी.
जिस समय बरेलवी ने जिहाद की शुरुआत की, उस वक्त सब-कांटिनेंट के अलग-अलग हिस्सों में मुगल शासन कमजोर पड़ रहा था. मराठा, जाट और सिखों का राज था. इसी दौरान अंग्रेज भी तेजी से हिंदुस्तान में अपने पैर पसार रहे थे. इसलिए उसने इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना का सपना देखा और रायबरेली से चलकर बालकोट पहुंचा.
कहां है बालकोट
बालकोट खैबर पख्तूनख्वाह इलाका में है. यह मानशेरा जिले का तहसील मुख्यालय है. पहाड़ियों से घिरा बालकोट वर्ष 1831 से 2019 तक आतंकवाद, जिहाद का केंद्र रहा. वहाबी विचारधारा के आतंकियों का गढ़. तालिबान जैसे कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन की उत्पत्ति बालकोट से ही हुई. आतंकवाद के इस गढ़ को मिटाने के लिए कई बार हमले हुए. कभी सिख शासक को हमला करना पड़ा, तो कभी अंग्रेजों को. और अब भारत को भी हवाई कार्रवाई करनी पड़ी.
19वीं सदी में महाराजा रंजीत सिंह लाहौर के शासक थे. राजा हरि सिंह कश्मीर और खैबर पख्तूनख्वाह के गवर्नर. उस वक्त इस खूबसूरत पहाड़ी पर सबसे ज्यादा खूनखराबा हुआ. कहते हैं कि इस क्षेत्र पर कब्जे को लेकर जिहादियों और खालसा फौज के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ. कहते हैं कि तब युद्ध में करीब 3,000 जिहादी मारे गये थे.