नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने लोक सभा चुनाव से पहले असम में कई श्रेणियों के लोगों को मताधिकार से कथित रूप से वंचित करने के मामले में शुक्रवार को निर्वाचन आयोग के सचिव को 12 मार्च को पेश होने का निर्देश दिया. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस याचिका पर एक फरवरी को नोटिस जारी किया था. परंतु इसके बावजूद आयोग की ओर से कोई पेश नहीं हुआ था. इस पर न्यायालय ने आयोग के सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया.
याचिका में ऐसी पांच श्रेणियों के लोगों का उल्लेख किया गया है जिनके नाम मतदाता सूची में नहीं हैं. याचिका के अनुसार इन श्रेणियों में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे में तो हैं परंतु मतदाता सूची में नहीं हैं. याचिका में आरोप लगाया गया है कि मताधिकार से वंचित किये जा रहे लोगों में ऐसी श्रेणी के लोग भी शामिल हैं जिनके नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे में हैं परंतु उन्हें मतदाता सूची से हटा दिया गया है. याचिका में दावा किया गया है कि इन लोगों ने 2014 में हुये लोक सभा चुनावों में मतदान किया था. याचिका में कहा गया है कि इसमें ऐसे लोग भी हैं जिनके नाम नागरिक पंजी के अंतिम मसौदे में शामिल नहीं थे परंतु उन्होंने बाद में अपने नाम शामिल कराने के लिये दावा फार्म भरे हैं.
ऐसे लोगों ने इससे पहले के लोकसभा चुनावों में मतदान किया था और इस समय नाम शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं। इसी तरह एक वर्ग वह है जिन्हें विदेशियों के न्यायाधिकरण और गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने विदेशी घोषित कर दिया है परंतु शीर्ष अदालत ने इस पर रोक लगा दी है. इसी तरह एक अन्य श्रेणी में वे लोग हैं जिन्हें विदेशी घोषित करने के न्यायाधिकरण के आदेश को शीर्ष अदालत ने निरस्त कर दिया है परंतु न्यायाधिकरण के आदेश के तहत उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिये गये हैं. याचिका के अनुसार इसी तरह पांचवी श्रेणी में ऐसे व्यक्ति हैं जिनके नाम नागरिक पंजी के मसौदे में शामिल नहीं किये गये हैं जबकि उनके परिवार के अन्य सदस्यों के नाम पंजी सूची में हैं. ऐसे लोगों ने अपने नाम शामिल कराने के लिए दावा फार्म दाखिल कर रखे हैं. यह याचिका असम के निवासी गोपाल सेठ और सुसांता सेन ने दायर की है.