#BhagatSingh : फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने भाई को लिखा था खत…

भारत की आजादी के लिए अपनी शहादत देने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह को उनके साथी राजगुरू और बटुकेश्वर दत्त के साथ आज ही के दिन यानी 23 मार्च 1931 को फांसी दी गयी थी. फांसी के समय भगत सिंह और उनके साथियों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था, वे फांसी पर चढ़ते वक्त डरे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2019 10:46 AM

भारत की आजादी के लिए अपनी शहादत देने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह को उनके साथी राजगुरू और बटुकेश्वर दत्त के साथ आज ही के दिन यानी 23 मार्च 1931 को फांसी दी गयी थी. फांसी के समय भगत सिंह और उनके साथियों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था, वे फांसी पर चढ़ते वक्त डरे नहीं उनके चेहरे पर खौफ नहीं बल्कि गर्व था.

उन्हें फांसी दिये जाने की खबर सुनकर जेल के बाहर इतनी भीड़ जमा थी कि अंग्रेज सरकार ने उनका अंतिम संस्कार किसी तरह रावी नदी के तट पर कर दिया था. लेकिन भगत सिंह मरे नहीं उनके विचार क्रांति के रूप में जीवित रहे और आज भी उन्हें उनके क्रांतिकारी विचारों के लिए ही याद किया जाता है.

महान क्रांतिकारी और देश के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देने वाले भगत सिंह को शेरो-शायरी से बहुत लगाव था. वे जब भी अपने परिवार वालों को खत लिखते उसमें शेरो-शायरी भी शामिल होते थे. फांसी पर चढ़ने से पहले उन्होंने अपने भाई को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने चंद पंक्तियां भी लिखीं थीं, पढ़ें :-

उसे यह फ़िक्र है हरदम,

नया तर्जे-जफ़ा क्या है?

हमें यह शौक देखें,

सितम की इंतहा क्या है?

दहर से क्यों खफ़ा रहे,

चर्ख का क्यों गिला करें,

सारा जहां अदू सही,

आओ मुकाबला करें।

कोई दम का मेहमान हूं,

ए-अहले-महफ़िल,

चरागे सहर हूं,

बुझा चाहता हूं।

मेरी हवाओं में रहेगी,

ख़यालों की बिजली,

यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,

रहे रहे न रहे।

रचनाकाल: मार्च 1931

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