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RSS के गढ़ नागपुर में गुरु-चेले के बीच सियासी संग्राम, गडकरी का मुकाबला भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में आये नाना पटोले से
महाराष्ट्र की उप राजधानी और विदर्भ के सबसे बड़े शहर नागपुर की लोकसभा सीट पर हमेशा देशभर की नजर रहेगी. इस सीट से भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. अगर वह इस बार भी जीतते हैं, तो इस सीट से भाजपा की तीसरी और गडकरी की […]
महाराष्ट्र की उप राजधानी और विदर्भ के सबसे बड़े शहर नागपुर की लोकसभा सीट पर हमेशा देशभर की नजर रहेगी. इस सीट से भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. अगर वह इस बार भी जीतते हैं, तो इस सीट से भाजपा की तीसरी और गडकरी की दूसरी जीत होगी. दरअसल, संतरों के लिए मशहूर नागपुर भले आरएसएस का मुख्यालय हो, इस लोस सीट पर ज्यादातर समय कांग्रेस का कब्जा रहा. भाजपा ने अब तक केवल दो बार इस सीट पर केसरिया परचम फहराया है.
लोकसभा सीट 1951 में इस सीट के अस्तित्व आयी. 1952 से लेकर 1991 के तक यहां कांग्रेस का राज रहा. 1996 में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर जीत का स्वाद चखा. बनवारी लाल पुरोहित इस सीट से भाजपा के सांसद बने. इसके बाद 2014 में मोदी लहर में गडकरी ने कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार को मात दी. इस बार उनके मुकाबले कांग्रेस ने नाना पटोले को उतारा है. नाना भाऊ के नाम से मशहूर पटोले राजनीति में गडकरी के शिष्य हैं. पिछले लोस चुनाव में वह भंडारा-गोंदिया सीट से भाजपा के सांसद चुने गये थे.
कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर अब तक दो बार ही जीती है भाजपा
नितिन गडकरी
गडकरी सामान्य जीवन जीते हैं. जब भी बड़े हनुमान मंदिर (तेलंगखेड़ी) से गुजरते हैं, गोविंद यादव का समोसा खाने जरूर रुकते हैं. नागपुर में होते हैं तो रोजाना ‘भक्ति’ निवास पर आने वाले हर व्यक्ति से मिलते हैं. जाति-पांति से उठ कर देखने वाले नेता की छवि है.
नाना पटोले
पटोले तेज-तर्रार हैं. कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने पार्टी से बगावत की. फिर भाजपा में सांसद होने के बावजूद यह कहते हुए इस्तीफा दिया कि मोदी को पसंद नहीं कि उनसे सवाल किये जाएं. किसानों, पिछड़ों और दलितों के मुद्दे वह जम कर उठाते हैं.
गडकरी का काम
नागपुर के अपने नेता हैं. सांसद-मंत्री के रूप में करीब 60 हजार करोड़ रुपये की दो दर्जन योजनाएं शुरू करायीं. मेट्रो रेल, आइआइएम, आइआइटी, एम्स, लॉ यूनिवर्सिटी सहित मिहान में औद्योगिक इकाइयां शुरू कीं, जिनसे लोगों को रोजगार मिला.
दलितों के भरोसे नाना
नाना की पकड़ कुणबी-मराठा व मुस्लिम वोटों पर है, पर जीत-हार दलित तय करेंगे. 2006 में भोतमांगे परिवार के चार लोगों की हत्या के मामले में दलित उनसे नाराज थे. तब नाना निर्दलीय एमएलए थे. हालांकि 2009 में फिर चुने गये.
नोटबंदी के खिलाफ नाना ने छोड़ी थी भाजपा
2017 में पटोले ने किसानों की आत्महत्या, नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार की आलोचना करते हुए भाजपा और लोकसभा की सदस्यता त्याग दी. पार्टी छोड़ने के उन्होंने 14 कारण गिनाए. कभी कांग्रेसी रहे पटोले 2018 में फिर कांग्रेस में आ गये. पटोले की किसानों और ओबीसी वर्ग में अच्छी पैठ है.
भाऊ पर भारी न पड़ जाए ‘बाहरी’ फैक्टर
गडकरी के कामकाज का लोहा मानने वाले भी कहते हैं कि पटोले उन्हें टक्कर दे सकते हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि किसानों-कमजोरों-पिछड़ों की राजनीति करने वाले नाना को नागपुर में एक बात खास तौर पर परेशान कर सकती है, वह है उनका ‘बाहरी’ होना. अतः गडकरी का पलड़ा इस लिहाज से भारी नजर आता है.
कांग्रेस का कुणबी कार्ड
नागपुर में डीएमके यानि दलित, मुस्लिम व कुणबी निर्णायक भूमिका में हैं. छह महीने से कांग्रेस कुणबी कार्ड चला रही है. नाना भी कुणबी समाज से हैं. जातिगत व दलित कार्ड चलने पर नागपुर में मुकाबला रोचक हो सकता है. कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री नितिन राऊत कहते हैं कि इस बार मोदी लहर नहीं है, इसलिए टक्कर तय है.
‘डीएमके’ की गणित
लोगों का मानना है कि गडकरी को चुनाव में ‘डीएमके’ (दलित, मुस्लिम और कुणबी) फैक्टर साधना होगा. गडकरी को भले ही यहां विकास क्रांति पर भरोसा है, लेकिन मतों के समीकरण में वह उलझ सकते हैं. हालांकि उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग पर भी काम किया है. यहां की सभी छह सीटों पर भाजपा एमएलए हैं.
लोकसभा चुनाव, 2014 का परिणाम
कुल वोट : 1867477, वोट पड़े : 1085050
विलास मुत्तेमवार
कांग्रेस
302939 वोट
नितिन गडकरी
भाजपा
587767 वोट
माणिकराव वैद्य
बसपा
94633 वोट
2019
कुल वोट
21,26,574
मतदान
11 अप्रैल को
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