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साहित्यकार के साथ सामाजिक सरोकारों की पैरोकार थी रमणिका गुप्ता : वृंदा करात

– साहित्यकार रमणिका गुप्ता की श्रद्धांजलि सभा का हुआ आयोजन ब्यूरो, नयी दिल्ली आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली साहित्यकार और नारीवादी रमणिका गुप्ता की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन शनिवार को कंस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित किया गया. इस मौके पर माकपा की वरिष्ठ नेता वृंदा करात ने कहा कि वे मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित […]

– साहित्यकार रमणिका गुप्ता की श्रद्धांजलि सभा का हुआ आयोजन

ब्यूरो, नयी दिल्ली

आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली साहित्यकार और नारीवादी रमणिका गुप्ता की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन शनिवार को कंस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित किया गया. इस मौके पर माकपा की वरिष्ठ नेता वृंदा करात ने कहा कि वे मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थीं. उनका व्यक्तित्व असाधारण था. चाहे हम साहित्य से, सिनेमा से, नारीवादी आंदोलनों से जुड़े हों, उनमें रमणिका जी का योगदान सराहनीय रहा है.

वृंदा करात ने कहा कि लगभग 90 साल तक वे पूरे जुनून से सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई रही. उनके अंदर विश्वास था कि अगर सब मिलकर काम करें तो समाज को बदला जा सकता है. घोर गंभीर परिस्थिति में वे बदलाव करने में यकीन रखती थी. एक दौर में हजारीबाग में कोयला खदानों पर माफिया का राज था और किसी की हिम्मत वहां जाने की नहीं होती थी.

उन्‍होंने कहा कि लेकिन एक महिला होने के बावजूद रमणिका वहां गयीं और मजदूरों के शोषण को दूर करने के लिए श्रम संगठनों को मजबूती दी. तमाम चुनौतियों के बावजूद वे निर्भीक होकर काम करती रही हैं. वे एक साहित्यकार के साथ ही सामाजिक आंदोलनों की सबसे बड़ी पैरोकार थीं.

करात ने कहा कि सड़क और संघर्ष को साहित्य के जरिए भी प्रदर्शित करने का काम किया. एक जीवन शोषण के खिलाफ लड़ने वालों के लिए एक उदाहरण है. इस विरासत को बचाकर आगे ले जाने की जिम्मेदारी सभी की है. वे आदिवासियों, साहित्य, मजदूरों की रानी थी और रहेंगी. उनके बेटे उमंग गुप्ता ने कहा कि जब मैं अपनी मां के बारे में सोचता हूं तो पाता हूं कि वे असाधारण थी.

उन्‍होंने कहा कि एक लेखक के साथ ही उनमें सामाजिक सरोकरों को लेकर काफी दिलचस्पी रहती थीं. वे किसी प्रकार के शोषण के सख्त खिलाफ थीं. पूरा जीवन वे उसी आदर्शों के सहारे जीया.

वरिष्ठ पत्रकार प्रंजाय गुहा ठकुराता ने कहा कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी थीं. लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता से लेकर अन्य कई गुण उनमें मौजूद थे. आदिवासियों और कोयला मजदूरों के हितों के लिए बहुत काम किया है. आदिवासियों और मजदूरों के सशक्तीकरण को लेकर बेहद संवेदनशील रहती थी. गौरतलब है कि 89 साल की रमणिका गुप्ता का निधन हाल ही में दिल्ली में हुआ था. जीवन के आखिरी समय तक वे सामाजिक कार्य और और साहित्य में सक्रिय थीं. वे सामाजिक सरोकारों की पत्रिका ‘युद्धरत आम आदमी’ का संपादन करती थी.

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