जो वन अधिकार की बात करेगा, वही 133 लोस सीटों पर राज करेगा

नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव के बाद देश में सरकार चाहे जिसकी बनी, आदिवासियों के प्रभुत्व वाली 133 सीटें इसमें अहम भूमिका निभायेंगी. वन अधिकार कानून (एफआरए) को लेकर पार्टियों के वादे-इरादे ही इन सीटों पर जीत-हार तय करेंगे. कहा जा रहा है कि जो पार्टी आदिवासियों के हितों की रक्षा के प्रावधान प्रभावी तरीके से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 3, 2019 6:04 AM

नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव के बाद देश में सरकार चाहे जिसकी बनी, आदिवासियों के प्रभुत्व वाली 133 सीटें इसमें अहम भूमिका निभायेंगी. वन अधिकार कानून (एफआरए) को लेकर पार्टियों के वादे-इरादे ही इन सीटों पर जीत-हार तय करेंगे. कहा जा रहा है कि जो पार्टी आदिवासियों के हितों की रक्षा के प्रावधान प्रभावी तरीके से लागू करने का वादा करेगी, आदिवासी उन्हीं का साथ देंगे. 

स्वयंसेवी संगठन सीएफआर-एलए के मुताबि​क 2014 में 133 सीटों में 95 फीसदी पर हार-जीत का जो अंतर है, उससे कहीं ज्यादा संख्या ऐसे मतदाताओं की है, जो वन अधिकार कानून के तहत जमीन पर अधिकार पाने के योग्य हैं. ये 133 सीटें मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और पूर्वोत्तर के राज्यों में हैं.

सुप्रीम काेर्ट ने वन अधिकार कानून के तहत दावा न पेश कर पाने वाले आदिवासियों को इन इलाकों से बाहर करने का आदेश दिया था. आदिवासियों के लिए काम करने वाले संगठनों का आरोप था कि केंद्र सरकार ने उनका पक्ष प्रभावी तरीके से नहीं रखा.  हालांकि बाद में शीर्ष कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाते हुए आदिवासियों के दावे बहाल कर दिये थे.

कैसे बदलता है वोटिंग पैटर्न

2014 लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा ने 133 में से 59 प्रतिशत सीटें जीती थीं. कांग्रेस सिर्फ 4 फीसदी सीटें ही जीत पाई थी. 2018 में छत्तीगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एफआरए को लागू करने का वादा किया. 2013 की तुलना में उसने एससी-एसटी के लिए आरक्षित 39 सीटों में से 68% पर जीत दर्ज की थी. वहीं, भाजपा को 75 प्रतिशत सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. वन अधिकारों को लेकर चुनाव प्रचार में भाजपा कमजोर रही.

वोटरों को जमीन अधिकार छिनने का डर

कम से कम चार करोड़ हेक्टेयर वन भूमि यानी भारत के वन क्षेत्र का 50 प्रतिशत से अधिक और उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के क्षेत्रफल से बड़ा क्षेत्र एफआरए के अंतर्गत आता है. इस क्षेत्र में रहने वाले वन निवासियों एवं जनजातियों के अधिकार और आजीविका इससे जुड़ी हुई है. कम-से-कम 1.70 हजार गांव यानी देश के गांवों का एक चौथाई हिस्सा एफआरए के अंतर्गत अधिकारों को पाने योग्य है.

दिख रही पार्टियों की चिंता

कांग्रेस

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सभी कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा कि वे आदिवासियों और वनों में रहने वाले लोगों की बेदखली के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करें. राहुल ने पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा इस कानून में किये बदलाव ठीक करने को भी कहा था. उनका आरोप था कि सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों के अधिकारों को केंद्र सरकार बचाने में नाकाम रही.

भाजपा

कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को राहुल के पत्र के दो दिन बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ऐसे निर्देश दिये. 25 फरवरी को उन्होंने ट्वीट किया- मैंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उत्पन्न स्थिति पर भाजपा शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों से बात की है. आदिवासियों के हक की रक्षा होगी व निष्कासन रोकेंगे.

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