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वंशवाद के मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर बिहार दूसरे नंबर पर

नयी दिल्ली : देश में अब तक हुए चुनावों में वंशवाद या परिवारवाद का मुद्दा हमेशा हावी रहा है. 1999 के बाद से इस मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठाया जाता रहा है. खासकर भाजपा इस मुद्दे को लेकर काफी आक्रामक रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, जिन राज्यों में वंशवाद सबसे ज्यादा है, वहां गरीबी […]

नयी दिल्ली : देश में अब तक हुए चुनावों में वंशवाद या परिवारवाद का मुद्दा हमेशा हावी रहा है. 1999 के बाद से इस मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठाया जाता रहा है. खासकर भाजपा इस मुद्दे को लेकर काफी आक्रामक रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, जिन राज्यों में वंशवाद सबसे ज्यादा है, वहां गरीबी भी काफी ज्यादा है.
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गरीबी है. यहां पर राजनीतिक परिवारों से जुड़े जनप्रतिनिधि देश के बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा हैं. यहां पर 1952 लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक 51 जन-प्रतिनिधि वंशवाद की जड़ से निकले हैं. 27 के साथ बिहार दूसरे नंबर पर है. पंजाब और महाराष्ट्र में 10-10 जनप्रतिनिधि वंशवाद की जड़ से निकले हैं, जबकि महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 8 है.
भाई-बहन, बेटा-बेटी के मामले में ही 75 फीसदी वंशवाद : वंशवाद पर किये गये इस अध्ययन में सिर्फ नेताओं के माता-पिता, भाई-बहन और बेटे-बेटियों को ही शामिल किया गया है.
राजनीतिक घरानों से संबंध रखने वाले सांसद
लोकसभा वर्ष भाजपा कांग्रेस
13वीं लोकसभा 1999 10 (6%) 9 (8%)
14वीं लोकसभा 2004 10 (7%) 20 (13%)
15वीं लोकसभा 2009 10 (12%) 23 (11%)
16वीं लोकसभा 2014 20 (7%) 8 (18%)

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