तीर्थनगरी हरिद्वार में भाजपा को रोकने के लिए राजनीतिक ध्रुवीकरण की लड़ाई, हर बार मतदाता बदलते रहे हैं अपना सांसद
तीर्थनगरी हरिद्वार में हिंदुत्व, गंगा, एयर स्ट्राइक के साथ ही स्थानीय मुद्दों की गूंज हर तरफ सुनाई दे रही है. हिंदुत्व के एजेंडे के लिहाज से मुफीद इस सीट को हर हाल में बरकरार रखने का दबाव भाजपा पर है. कांग्रेस और बसपा पर भी दबाव कम नहीं है. दिलचस्प स्थिति अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति […]
तीर्थनगरी हरिद्वार में हिंदुत्व, गंगा, एयर स्ट्राइक के साथ ही स्थानीय मुद्दों की गूंज हर तरफ सुनाई दे रही है. हिंदुत्व के एजेंडे के लिहाज से मुफीद इस सीट को हर हाल में बरकरार रखने का दबाव भाजपा पर है. कांग्रेस और बसपा पर भी दबाव कम नहीं है. दिलचस्प स्थिति अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति के वोटों को लेकर बन रही है.
कांग्रेस और बसपा जहां इनके ध्रुवीकरण के लिए ताकत झोंक रही हैं, वहीं भाजपा इनके बिखराव से अपनी जीत का रास्ता तय होता देख रही है. पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक यहां से फिर भाजपा प्रत्याशी हैं, तो कांग्रेस ने पूर्व विधायक अंबरीष कुमार को उतारा है. कांग्रेस अपने सबसे मजबूत नेता पूर्व सीएम हरीश रावत को उतारने की तैयारी में थी, लेकिन बात नहीं बनी. बसपा ने अंतरिक्ष सैनी पर दांव खेला है.
इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल 14 विधानसभा सीटें हैं और सब में अलग-अलग मुद्दों का असर दिखता है. समान रूप से हिंदुत्व-गंगा, एयर स्ट्राइक जैसी बातें हैं, लेकिन कहीं पर गन्ना किसानों का बकाया, तो कहीं पर रुड़की से देवबंद तक बिछाये जा रहे रेलवे ट्रेक के एवज में अधिग्रहित दस गांवों की जमीन और उसके मुआवजे का मामला प्रभावी है.
मोदी सरकार ही भारत का भला कर सकती है. जहां तक सांसद के रूप में काम का सवाल है, क्षेत्र में इस समय 25 हजार करोड़ रुपये के विकास कार्य चल रहे हैं.
डॉ रमेश पी निशंक, भाजपा प्रत्याशी
पिछले पांच वर्षों में समस्याओं का अंबार खड़ा हुआ है. गन्ना किसानों से लेकर तमाम समस्याएं हैं. 70% रोजगार की बात छलावा साबित हुई. भाजपा ने लोगों को छला है.
अंबरीष कुमार, कांग्रेस प्रत्याशी
भाजपा-कांग्रेस ने जनभावनाओं से खिलवाड़ किया है. बसपा को लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है. जीत तय है.
अंतरिक्ष सैनी, बसपा प्रत्याशी
हरीश को मिली थी ताकत, जीत के बाद खूब चमके
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व सीएम हरीश रावत को 2009 में जब एक अदद चुनाव जीतने की सबसे बड़ी जरूरत थी, तब हरिद्वार लोकसभा सीट ने उनका साथ दिया था.
इससे पहले, कुमाऊं की अल्मोड़ा सीट से ही हरीश रावत चुनाव लड़ते थे. अस्सी के दशक में उन्होंने वहां से मुरली मनोहर जोशी को तीन बार पराजित किया, लेकिन नब्बे के दशक में राम लहर के बाद भाजपा के बची सिंह रावत ने चार बार हरीश रावत को वहां परास्त किया.
नया दांव खेलते हुए हरीश रावत 2009 में हरिद्वार सीट पर आये, तो उन्हें शानदार जीत मिली.
स्थानीय रोजगार का मुद्दा बरकरार
2000 में अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद हरिद्वार जिले में करीब 1200 से ज्यादा फैक्ट्रियां लगी हैं. इनमें लाखों लोग रोजगार से जुड़े हैं. इसके बावजूद स्थानीय युवाओं को रोजगार का मुद्दा अभी भी जिंदा है. तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने सिडकुल की स्थापना के समय 70% रोजगार स्थानीय युवाओं को देने का शासनादेश जारी किया था.
जमीन के मुआवजे का इंतजार
रुड़की से देवबंद तक बिछाये जा रहे रेलवे ट्रैक की एवज में हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र के करीब दस गांव की जमीन अधिग्रहित की गयी है. एक बार बंद हो गयी इस परियोजना को मोदी सरकार ने दो साल पहले फिर से शुरू किया था. गांवों की हजारों बीघा जमीन अधिग्रहित की गयी है, लेकिन जमीन मुआवजे का मामला अब भी अटका है.