नयी दिल्ली : वर्ष 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के गठन के बाद सत्ता के दो केंद्रों-प्रधानमंत्री वीपी सिंह और उपप्रधानमंत्री देवीलाल के बीच तनाव बढ़ने लगा था. लालू प्रसाद यादव ने इसके हल के लिए वीपी सिंह को मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने की सलाह दी थी.
राजद प्रमुख ने यह बात अपने संस्मरण में लिखी है. उन्होंने लिखा, वे (सिंह और देवीलाल) अक्सर परस्पर विरोधाभासी बयान जारी करते थे और इससे सरकार की स्थिरता के लिए खतरा पैदा होता … लालू लिखते हैं, मुझे चिंता होने लगी कि वीपी सिंह और देवीलाल के बीच बढ़ता तनाव राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के पतन का कारण बन सकता है और इस प्रक्रिया में बिहार में मेरी सरकार को खतरा हो सकता है.
इसके बाद उन्होंने अगस्त 1990 में वीपी सिंह सरकार को बचाने के लिए एक फार्मूला तैयार किया. उन्होंने प्रधानमंत्री से समय मांगा और उनसे कहा कि उन्हें देवीलाल के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए अन्यथा उनकी सरकार गिर जाएगी.
वीपी सिंह के पास तीक्ष्ण दिमाग और अच्छी राजनीतिक समझ थी. उन्होंने जवाब दिया, देवी लाल जी जाटों और पिछड़ों के नेता हैं. अगर मैं उनके खिलाफ कार्रवाई करता हूं, तो वह भारत भर में यह प्रचार कर सकते हैं कि मैं पिछड़ा विरोधी और गरीब विरोधी गरीब हूं. मैंने जवाब दिया, ‘एक रास्ता है.
किताब के अनुसार, उन्होंने कहा, मंडल आयोग ने 1983 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है. वह सिफारिश आपके कार्यालय में धूल फांक रही है. इसे तत्काल प्रभाव से लागू करें. यादव कहते हैं कि सिंह ने इसमें रूचि नही दिखाई , लेकिन वह उन्हें राजी कराने में सफल रहे और आखिरकार मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की गई.
उस समय सरकार में शामिल वरिष्ठ नेताओं जैसे शरद यादव, रामविलास पासवान आदि को प्रधानमंत्री के साथ उनकी मुलाकात के बारे में जानकारी नहीं थी. उन्होंने उन नेताओं को विश्वास में लिया। वे लोग आश्चर्यचकित थे कि वीपी सिंह मंडल आयोग कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के लिए सहमत हो गए हैं.
लालू की किताब गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा रूपा से प्रकाशित हुई है और नलिन वर्मा इसके सह-लेखक हैं. वह लिखते हैं, मेरे बिहार भवन रवाना होने के बाद, वीपी सिंह ने कैबिनेट की बैठक बुलाई, और रिपोर्ट को लागू करने का निर्णय लिया गया. उन्होंने मुझे एक विशेष दूत से अधिसूचना की एक प्रति भेजी. मैंने इसे अपने ब्रीफकेस में रखा तथा जल्दी से पटना के लिए रवाना हो गया.
उन्होंने इस किताब में कई अन्य मुद्दों की भी चर्चा की है. इनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनके संबंधों में उतार-चढ़ाव भी शामिल है. लालू लिखते हैं कि 2017 में महागठबंधन से नाता तोड़ने और राजग में शामिल होने के बाद, कुमार उनके साथ लौटना चाहते थे. उन्होंने दावा किया कि कुमार ने अपने दूत प्रशांत किशोर को पांच बार उनके पास भेजा था.
हालांकि किशोर ने इसे खारिज कर दिया था. वह लिखते हैं कि पटना के मिलर हाई स्कूल में दाखिला लेने के बाद वह डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें पता लगा कि इसके लिए उन्हें जीव विज्ञान का अध्ययन करना होगा और अपने प्रैक्टिकल कक्षाओं में मेंढकों की चीर-फाड़ करनी होगी. इसके बाद उन्होंने इस विचार को छोड़ दिया.
रथयात्रा के दौरान दिग्गज भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी, सोनिया गांधी द्वारा संप्रग सरकार का नेतृत्व नहीं करने का फैसला और 2004 में प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह की उम्मीदवारी का यादव का समर्थन सहित कई अन्य चर्चित मुद्दों पर भी इस किताब में रोशनी डाली गयी है.