- नसीमुद्दीन बने यूपी में कांग्रेस को सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से बाहर रखने की वजह
- रेड्डी, नूर, पांडा के पाला बदलने से तेलंगाना, बंगाल और ओड़िशा में लिखी गयी नयी इबारत
चार महत्वपूर्ण सियासी राज्यों में चार नेताओं के दलबदल ने चुनावी समीकरण उलझाकर रख दिया है. नसीमुद्दीन सिद्दीकी को साथ लेने की कीमत कांग्रेस को यूपी में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से बाहर रहकर चुकानी पड़ी.पश्चिम बंगाल में सांसद मौसम नूर ने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थामा, तो दोनों पार्टियों में चुनाव पूर्व गठबंधन की संभावनाएं धुल गयीं, जबकि वैजयंत जय पांडा के दलबदल ने ओड़िशा में भाजपा और बीजू जनता दल (बीजेडी) के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन की उम्मीद तोड़ दी. उधर, तेलंगाना में जीतेंद्र रेड्डी के पाला बदल ने चुनाव बाद टीआरएस-भाजपा के साथ आने पर सवालिया निशाना लगा दिया. बसपा की कांग्रेस से नाराजगी की वजह चंद्रशेखर रावण से प्रियंका गांधी की मुलाकात और शिवपाल यादव की पार्टी से गठबंधन की संभावना तलाशना बतायी जा रही है.
हालांकि, बसपा ने कांग्रेस से दूरी बनाने का फैसला उसी दिन कर लिया था, जब फरवरी 2018 में कांग्रेस ने बसपा से निष्कासित कद्दावर नेता नसीमुद्दीन को पार्टी में शामिल किया था. बसपा प्रमुख मायावती ने सपा से गठबंधन की प्रारंभिक चर्चाओं में ही साफ कह दिया था कि कांग्रेस को इसमें जगह नहीं मिलनी चाहिए.
भाजपा को आधी सीटें देने को राजी थे नवीन
इसी प्रकार, ओड़िशा में भाजपा और बीजेडी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन पर गंभीरता से बात हो रही थी. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक विधानसभा में अपनी पार्टी को महत्व देने पर भाजपा को लोकसभा की आधी सीटें देने के लिए तैयार थे. बातचीत के क्रम में नवीन पटनायक के भावी उत्तराधिकारी पर भी चर्चा हुई थी. इसी बीच, बीजेडी के निष्कासित सांसद वैजयंत जय पांडा के भाजपा में आने के बाद बातचीत पटरी से उतर गयी. संबंधों में इतनी खटास आ गयी कि बीजेडी का चुनाव बाद तय माना जाने वाला परोक्ष समर्थन भी अब संशय में है.
सारधा में ममता घिरी
पश्चिम बंगाल में दो माह पूर्व तृणमूल और कांग्रेस के बीच गठबंधन के लिए तीन दौर की वार्ता हो चुकी थी, बात पटरी पर नजर आ रही थी. सांसद मौसम नूर जैसे ही तृणमूल कांग्रेस में गईं, कांग्रेस उखड़ गयी. इसके बाद सारधा चिट फंड में कांग्रेस ने सीधे ममता बनर्जी को कठघरे में खड़ा करते हुए संसद में तृणमूल पर हमला बोला.