आशंका : ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान, उपज में गिरावट
भारत की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है. ऐसे में सूखे की मार झेल रहे क्षेत्र में कृषि अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लग सकता है. सूखे का प्रभाव न सिर्फ किसानों पर पड़ेगा, बल्कि भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को भी रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में […]
भारत की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है. ऐसे में सूखे की मार झेल रहे क्षेत्र में कृषि अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लग सकता है. सूखे का प्रभाव न सिर्फ किसानों पर पड़ेगा, बल्कि भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को भी रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के चेयर प्रोफेसर आर रामकुमार का कहना है कि कृषि मजदूरों को वर्ष भर में बमुश्किल 150 से 160 दिन का काम मिल पाता है, सूखे की वजह से इन कार्य दिवसों में और कमी आयेगी. प्रोफेसर रामकुमार की मानें, तो जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वहां सूखे का असर कम हो सकता है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, भारत में कुल सिंचित क्षेत्र का शुद्ध सिंचित क्षेत्र केवल 34.5 प्रतिशत ही है, ऐसे में सूखे का असर व्यापक होने की आशंका है.
बीते 15 सालों में से नौ साल ऐसे रहे हैं, जब देश के करीब 100 जिलों को सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा है. यह बारंबारता बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र जैसे अनेक राज्यों में बढ़ती जा रही है.
इन नौ सालों में से चार सालों के सूखे ने देश की खाद्यान्न सुरक्षा पर नकारात्मक असर डाला है. यदि इस वर्ष मॉनसून सामान्य से नीचे रहा, तो यह लगभग 250 जिलों के लिए लगातार पांचवां ऐसा साल होगा, जब उन्हें कम बारिश और सूखे का सामना करना पड़ेगा. ये वे इलाके हैं, जो सिंचाई के लिए बरसात पर निर्भर हैं और यहां देश की आबादी का सबसे गरीब हिस्सा बसता है. अभी ही करीब 300 जिलों में सूखे की स्थिति है.
बीते चार दशकों से देश में बुवाई की जमीन की मात्रा कमोबेश समान रही है. ऐसे में खाद्यान्न की मांग की आपूर्ति के लिए सूखा-प्रभावित क्षेत्रों पर उत्पादन बढ़ाने का दबाव भी है. सूखा की आशंका से ग्रस्त जिलों में कुल उपजाऊ भूमि का 42 फीसदी भाग है. बुवाई की जमीन का अधिकांश हिस्सा (68 फीसदी) सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर करता है.
खाद्यान्न जरूरत को पूरा करने के लिए 2020 तक अतिरिक्त 100 मिलियन टन अनाज पैदा करना होगा जिसमें सूखे की आशंका के क्षेत्रों को 36 मिलियन टन का योगदान करना होगा. इन तथ्यों से जाहिर है कि सूखे के कारण हमारी खाद्यान्न आत्मनिर्भरता संकट में पड़ सकती है.
(विभिन्न स्रोतों के आधार पर)