नयी दिल्ली : नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा है कि मोदी सरकार ने आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना तथा ग्रामीण विद्युतीकरण जैसे सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों में बड़ी सफलता हासिल की है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा इस सरकार ने भ्रष्टाचार से निपटने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में किये गये सुधारों के बारे में उन्होंने कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी), दिवाला एवं ऋण शोधन संहिता (आईबीसी) तथा प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) तीन बड़ी पहल हैं.
पनगढ़िया ने कहा, ‘…आयुष्मान भारत, पीएम किसान, रसोई गैस, ग्रामीण सड़क तथा ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी योजनाओं का सफल क्रियान्वयन मोदी सरकार की बड़ी सफलता को प्रतिबिंबित करता है। भ्रष्टाचार से निपटने में भी बड़ी सफलता हासिल की गयी है.”
बुनियादी ढांचा क्षेत्र के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार सड़क, रेलवे, जलमार्ग, नागर विमानन तथा डिजिटलीकरण के क्षेत्र में तेजी से काम किये जिसके नतीजे दिख रहे हैं. सौ से अधिक अर्थशास्त्रियों तथा समाज विज्ञानियों द्वारा सांख्यिकी आंकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर उठाये गये सवाल के बारे में पूछे जाने पर पनगढ़िया ने कहा कि जबतक आलोचक स्पष्ट रूप से यह नहीं बताते कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय / सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तौर-तरीकों में से किस हिस्से को लेकर उन्हें समस्या दिखी है, उनका बयान केवल दावा बनकर रह जाएगा. इन तौर-तरीकों का 40 पृष्ठ के दस्तावेज में विस्तार से वर्णन किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘विश्वबैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष तथा संयुक्त राष्ट्र समेत किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने न तो हमारे सांख्यिकी संस्थानों की विश्वसनीयता और न ही आंकड़ों को लेकर कभी कोई संदेह नहीं जताया. और न ही मैंने कोई ऐसा ठोस साक्ष्य देखा कि इन संस्थानों ने अपने आंकड़े में स्वयं से या सरकारी विभागों के इशारे पर गड़बड़ी करने की कोई कोशिश की.’
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने यह भी कहा कि जीडीपी का अनुमान कुछ भी नया नहीं है और यह एक स्थापित प्रक्रिया है. उल्लेखनीय है कि हाल में आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था की 7 प्रतिशत वृद्धि दर पर संदेह जताया.
उन्होंने कहा कि जब पर्याप्त संख्या में रोजगार सृजित नहीं हो रहे तब इतनी आर्थिक वृद्धि दर को लेकर संदेह होता है और जीडीपी आंकड़ों को लेकर जो संदेह बना है, उसे दूर किया जाना चाहिए. इसके अलावा 108 अर्थशास्त्रियों तथा सामाजिक विज्ञानियों ने आंकड़ों में राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर चिंता जतायी और संस्थाओं की स्वतंत्रता को बहाल करने की मांग की.