बाड़मेर : राजनीतिक दलों की नजर दलित मतदाताओं पर
बाड़मेर : राजस्थान की बाड़मेर संसदीय सीट पर दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों- भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार मतदाताओं को रिझाने के साथ ही जातिगत समीकरण साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे और राजनीतिक टीकाकारों की मानें तो जाट बनाम राजपूत बने इस चुनाव में दलित मतदाताओं की निर्णायक भूमिका होगी. यही कारण है कि […]
बाड़मेर : राजस्थान की बाड़मेर संसदीय सीट पर दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों- भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार मतदाताओं को रिझाने के साथ ही जातिगत समीकरण साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे और राजनीतिक टीकाकारों की मानें तो जाट बनाम राजपूत बने इस चुनाव में दलित मतदाताओं की निर्णायक भूमिका होगी. यही कारण है कि दोनों प्रमुख दल कांग्रेस व भाजपा दलित मतदाताओं को साधने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. दलित वर्ग को आमतौर पर कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है.
भाजपा ने बीते शनिवार को एससी/एसटी सम्मेलन कर दलित समुदाय को रिझाने का प्रयास किया. ठीक एक दिन बाद रविवार को कांग्रेस ने भी एससी-एसटी कार्यकर्ताओं का सम्मेलन किया और अपने परंपरागत वोट बैंक को बनाए रखने की कोशिश की.
गौरतलब है कि बाड़मेर सीट पर कांग्रेस ने राजपूत समुदाय के मानवेन्द्र सिंह और भाजपा ने जाट समुदाय के कैलाश चौधरी को टिकट दी है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जहां तमाम जातियां दोनों दलों के बीच बंटती नजर आ रही हैं वहीं दलित मतदाता जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
जातीय गणित की बात की जाए तो 2011 की जनगणना के मुताबिक, बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र की कुल आबादी करीब 29.7 लाख है. इसमें जैसलमेर की भी एक विधानसभा सीट शामिल है. इसमें से 91.67 प्रतिशत ग्रामीण और 8.33 फीसदी शहरी आबादी है. वहीं, संसदीय क्षेत्र में 16.59 फीसदी एससी (अनुसूचित जाति) और 6.77 फीसदी एसटी (अनुसूचित जनजाति) जनसंख्या है.
बाड़मेर लोकसभा सीट पर तकरीबन 19.5 लाख वोटरों में से 3.5 लाख जाट, 2.5 लाख राजपूत, 4 लाख एससी-एसटी, तीन लाख अल्पसंख्यक और बाकी दूसरी जातियों के वोटर हैं. वहीं प्रमुख दलों के लिए इस बार खतरे की घंटी बनने वाली बसपा पार्टी के उम्मीदवार का नामांकन खारिज होने से कांग्रेस व भाजपा दोनों ने राहत की सांस ली है. बसपा प्रत्याशी और बर्खास्त आईपीएस पंकज चौधरी का नामांकन खारिज हो गया है.