मतदान से नहीं चूकता यह गांव, 100% वोटिंग का रहता है रिकॉर्ड

समस्याओं से जूझता गांव, फिर भी मताधिकार के इस्तेमाल में सबसे आगे बारामती : महाराष्ट्र में पुणे से करीब 80 किमी दूर घोल गांव के लोग मतदान से कभी नहीं चूकते. गांव में ज्यादातर बुजुर्ग ही रहते हैं. यहां के ज्यादातर युवा पढ़ाई या फिर नौकरी पेश में हैं और गांव से दूर ही रहते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 24, 2019 6:46 AM
समस्याओं से जूझता गांव, फिर भी मताधिकार के इस्तेमाल में सबसे आगे
बारामती : महाराष्ट्र में पुणे से करीब 80 किमी दूर घोल गांव के लोग मतदान से कभी नहीं चूकते. गांव में ज्यादातर बुजुर्ग ही रहते हैं. यहां के ज्यादातर युवा पढ़ाई या फिर नौकरी पेश में हैं और गांव से दूर ही रहते हैं. लेकिन चुनाव के दौरान सभी गांव पहुंच कर वोट करते हैं. यही वजह है कि इस गांव में वोटिंग का रेकॉर्ड 100 फीसदी तक बन चुका है. एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार गांव के निवासी बाबू महादेव पोलेकर यहां 1970 से रह रहे हैं.
पड़ोसियों का कहना है कि उनकी उम्र 100 से अधिक है. पोलेकर ने बताया कि हम कभी उम्मीदवारों के नाम नहीं पूछते क्योंकि हम लिख-पढ़ नहीं सकते. हम सिर्फ बटन दबाते हैं. बाबू महादेव याद करते हुए बताते हैं कि घोल गांव कभी किसी चुनाव में मतदान करने से नहीं चूका.
बाहर रहने वाले आकर करते हैं वोट : इस गांव में ज्यादातर ग्रामीण बुजुर्ग हैं जिन्हें देखने कभी कोई उम्मीदवार यहां नहीं आया. बावजूद इसके गांव का मतदान 100 फीसदी के करीब रहता है. यहां तक कि नौजवान जो गांव से बाहर रहते हैं, वह भी मतदान के लिए पांच साल में एक बार जरूर आते हैं. हालांकि किसी बाहरी के लिए इस गांव के उत्साह को समझना थोड़ा मुश्किल होगा.
विकास कार्य अधूरे, नलो में नहीं आता पानी : पुणे के बारामती निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला घोल गांव वेल्हे तहसील का हिस्सा है और यहां समस्याओं का अंबार है. सहयाद्रियों से घिरे, पानशेत और वरसगांव बांधों के बैकवाटर के करीब स्थित घोल गांव में पानी की प्रचुर मात्रा है, लेकिन यहां के नलों में पानी नहीं आता है. यहां छुट्टियों में आये नारायण पडवाल बताते हैं, विकास का कार्य यहां तब शुरू होता है जब चुनाव की घोषणा होती है.
गांव से पुणे जाने के लिए सिर्फ एक ही साधन : नारायण मुंबई में पढ़ाई करते हैं. गांव में यातायात के नाम पर एकमात्र बस है. एक कच्ची सड़क जो गांव से पुणे शहर के बीच 80 किमी कवर करती है. गांव में रहने वाले यशवंत तुकाराम निंबालकर कहते हैं, एक बस है उससे भी बहुत अधिक मदद नहीं मिलती है.
यह पुणे के लिए सुबह छह बजे छूटती है, लेकिन वापसी के लिए हम इसके भरोसे नहीं रह सकते. बस पुणे से शाम 6 बजे वापस होती और रात करीब नौ बजे घोल पहुंचती है. कई बार तो आधी रात को बस गांव पहुंच पाती है. हमने इसको लेकर कई बार शिकायत की लेकिन हमारी एक भी नहीं सुनी गयी.’
12 किमी अतिरिक्त सड़क बनवाने से मिलेगी मदद : कई लोगों का कहना है कि घोल से रायगढ़ जिले के मानगांव तालुक तक मात्र 12 किमी की अतिरिक्त सड़क से हल निकल सकता है. 60 साल के गोविंद हरि पडवाल कहते हैं, पानशेत से हमारे गांव तक एक सड़क है, अगर इसी को रायगढ़ जिले तक बढ़ा दिया जाये तो हम पनवेल-गोवा हाइवे तक पहुंच सकते हैं. हमने इसके लिए 13 साल पहले अपील भी की थी लेकिन अभी तक काम नहीं हुआ.

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