जयपुर : सरकार बदलने के साथ इतिहास की किताबों के पाठ्यक्रमों में विभिन्न शख्सियतों से जुड़ी जानकारी में बदलाव से जहां राज्य के विद्यार्थी उहापोह में हैं, वहीं विशेषज्ञों ने बार- बार बदलाव के प्रति आगाह करते हुए कहा है कि राजनीति व शिक्षा को एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
उल्लेखनीय है कि राजस्थान की नयी कांग्रेस सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में आरएसएस विचारक विनय दामोदर सावरकर की जीवनी में बदलाव किया है . पाठ्यक्रम में यह जीवनी गत भाजपा सरकार ने शामिल की थी. दिसंबर में जब गहलोत सरकार बनी तो उसने पाठ्यक्रम समीक्षा समिति बना दी जिसकी सलाह पर सावरकर की जीवनी में बदलाव किया गया है. इसके तहत दसवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताब में सावरकर से जुड़े पाठ में उनके नाम के आगे से ‘वीर’ हटा दिया गया है.
पाठ में अब उन्हें विनायक दामोदर सावरकर लिखा गया है जिन्होंने महात्मा गांधी की ‘हत्या की साजिश रची’. इसके साथ ही समिति ने सावरकर के बारे में यह बात जोड़ी है कि आजादी से पहले सावरकर को जब गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने ब्रितानी हुकूमत से ‘माफी’ मांगी और जल्द रिहा भी हो गए. राजस्थान के स्कूल शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि संशोधित पाठ्यक्रम वाली इस किताब को आगामी सत्र से शामिल किया जाएगा. पाठ्यक्रम में इस तरह के बदलाव से राज्य में कांग्रेस व भाजपा के बीच एक बार फिर जुबानी जंग शुरू हो गयी है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने इस बदलाव पर सवाल उठाते हुए मंगलवार को यहां कहा, ‘‘इस तरह इतिहास के साथ छेड़खानी कर आप इतिहास को छुपा नहीं सकते.” जाने माने इतिहासकार प्रोफेसर आर एस खंगरोत ने कहा कि राजनीति व शिक्षा को एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और विचारधारा के हिसाब से तथ्यों से छेड़खानी से विद्यार्थियों को ही दुविधा होगी.
खंगरोत ने कहा, ‘‘इतिहास हमेशा तथ्यों पर आधारित है. तथ्य कभी नहीं बदलते लेकिन किसी भी घटना की व्याख्या या उसके प्रति विचार बदल सकते हैं.” उन्होंने कहा कि सरकार बदलने के साथ ही अगर हस्तियों से जुड़ी जानकारी बदली गयी तो विद्यार्थी हमेशा इस उहापोह में रहेंगे कि ठीक क्या है. एक अन्य प्रमुख इतिसकार ने नाम न छापने की शर्त कहा कि ‘पाठ्यक्रमों में इस तरह का बदलाव राजनीतिक खेल और बेकार की कवायद है.’ इस बीच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों का कहना है कि इस तरह के बदलाव से इतिहास विषय में उनकी तैयारी प्रभावित होगी. विद्यार्थी धर्मेंद्र शर्मा ने कहा, ‘‘अकबर हो या सावरकर इनसे जुड़ी जानकारी में बारंबार बदलाव का नुकसान अंतत: विद्यार्थियों को होगा जो प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं.”