#MeToo पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- किसी को बदनाम करने के लिए इसे जरिया बनाना गलत
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी व्यक्ति पर लगे मीटू आरोप उसे शर्मसार करने के लिए हमेशा के लिए ‘अनियंत्रित और अनंत’ अभियान में तब्दील नहीं होने चाहिए क्योंकि निजता के अधिकार में भुला देने और अकेला छोड़ देने के अधिकार शामिल हैं. यह व्यवस्था तब आई जब अदालत […]
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी व्यक्ति पर लगे मीटू आरोप उसे शर्मसार करने के लिए हमेशा के लिए ‘अनियंत्रित और अनंत’ अभियान में तब्दील नहीं होने चाहिए क्योंकि निजता के अधिकार में भुला देने और अकेला छोड़ देने के अधिकार शामिल हैं.
यह व्यवस्था तब आई जब अदालत एक व्यक्ति के उस आग्रह पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने अपने खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत के आधार पर एक मीडिया प्रतिष्ठान द्वारा लिखे गए लेखों के प्रकाशन और पुनर्प्रकाशन पर रोक लगाए जाने की मांग की.
उच्च न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में एक अंतिरम आदेश में एक मीडिया प्रतिष्ठान को निर्देश दिया था कि वह संबंधित दो लेखों को वापस ले और प्रतिष्ठान ऐसा करने पर सहमत हो गया था.
हालांकि, व्यक्ति के वकील ने गत नौ मई को अदालत को बताया कि उक्त लेखों को एक अन्य डिजिटल प्लैटफॉर्म पर उठा लिया गया है. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने स्थिति पर संज्ञान लेते हुए कहा कि जब एक बार मीडिया हाउस, मूल स्रोत, ने अदालत के आदेशों पर लेखों को हटा लिया तो इनके पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं दी जा सकती.
अदालत ने कहा, हटायी गई सामग्री को दूसरे डिजिटल/इलेक्ट्राॅनिक पोर्टल या प्लैटफॉर्म पर डालकर किसी व्यक्ति के खिलाफ अभियान अनियंत्रित और अनंत अभियान में तब्दील नहीं होना चाहिए. इसने कहा कि यदि संबंधित लेखों के पुनर्प्रकाशन की लगातार अनुमति दी जाती है तो इससे वादी के अधिकार बुरी तरह प्रभावित होंगे.
अदालत ने कहा, इसी तरह वादी के निजता के अधिकार, जिसके ‘भुला देने के अधिकार’ और ‘अकेले छोड़ देने के अधिकार’ महत्वपूर्ण और अंतर्निहित पहलू हैं, को मानते हुए निर्देश दिया जाता है कि 12 अक्टूबर 2018 और 31 अक्टूबर 2018 को प्रकाशित मूल लेखों की सामग्री, सार या अंश या किसी रूपांतरित संस्करण के किसी प्रिंट या डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म पर किसी भी तरह के पुनर्प्रकाशन पर मौजूदा मामले के लंबित रहने के दौरान रोक रहेगी.
खुद को एक प्रतिष्ठित मीडिया प्रतिष्ठान का प्रबंध निदेशक बताने वाले व्यक्ति ने अपने वाद में कहा कि उसे अपने खिलाफ लगाए गए निराधार आरोपों से संबंधित लेखों के प्रकाशन की वजह से काफी प्रताड़ना और दुख से गुजरना पड़ा है.
व्यक्ति ने यह भी कहा है कि एकतरफा लेखों ने ‘उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है.’ उसने यह भी कहा कि उसका निजी और व्यावसायिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है और यदि इन दो लेखों के पुनर्प्रकाशन को लेकर उसे उचित राहत नहीं दी जाती तो उसके और प्रभावित होने की संभावना है.