नयी दिल्ली : चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण में असहमति के फैसले को आयोग के फैसले में शामिल नहीं करने के मुद्दे पर चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की नाराजगी को दूर करने के लिए अगले सप्ताह मंगलवार को आयोग की पूर्ण बैठक आहूत की गयी है.
आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को बताया, ‘मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि लवासा की ‘असहमति’ को कुछ मीडिया रिपोर्टों में गैरजरूरी रूप से तूल दिया गया है. यह विशुद्ध रूप से आयोग का आंतरिक मामला है और ‘असहमति’ को दूर करने के लिए 21 मई (मंगलवार) को आयोग की पूर्ण बैठक आहूत की गयी है.’
उन्होंने अरोड़ा के स्पष्टीकरण के हवाले से कहा कि विषय विशेष पर चुनाव आयुक्तों में ‘असहमति’ होना सहज, स्वाभाविक और सामान्य स्थिति है. इसमें विवाद जैसी कोई बात नहीं है.
उल्लेखनीय है कि अरोड़ा ने शनिवार को जारी स्पष्टीकरण में चुनाव आचार संहिता की शिकायतों के निपटारे से जुड़ी बैठकों से लवासा द्वारा खुद को अलग करने संबंधी मीडिया रिपोर्टों को ‘नाखुशगवार’ बताया था. अरोड़ा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान इस तरह की रिपोर्ट से बचा जाना चाहिए था.
अरोड़ा ने कुछ मामलों में लवासा की असहमति संबंधी मीडिया रिपोर्टों को गैरजरूरी बताते हुए कहा कि आयोग की 14 मई की बैठक में भी लोकसभा चुनाव संपन्न कराने की प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों के निपटारे के लिए पृथक समूह गठित करने का सर्वानुमति से फैसला हुआ था. इसमें आचार संहिता के पालन सहित 13 अन्य विषय शामिल थे.
समझा जाता है कि गत चार मई को लवासा ने अरोड़ा को पत्र लिखकर कहा था कि चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण से जुड़ी बैठकों से वह खुद को तब तक अलग रखेंगे, जब तक कि उनके ‘विसम्मत फैसले’ को आयोग के फैसले में दर्ज कराने की अनुमति नहीं दी जायेगी. अरोड़ा ने कहा कि आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण से खुद को अलग करने का फैसला लवासा ने ऐसे समय में किया है, जबकि आयोग में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान और मतगणना की तैयारियां युद्धस्तर पर चल रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘किसी विषय पर आयोग के तीनों सदस्यों के विचार पूरी तरह से समरूप होना अपेक्षित नहीं है. इससे पहले भी व्यापक पैमाने पर विचारों में अंतर देखा गया है और ऐसा होना स्वाभाविक भी है. लेकिन यह स्थिति हमेशा आयोग के आंतरिक मामलों की परिधि में ही सीमित रही है.’
अरोड़ा ने स्पष्ट किया कि निर्वाचन कानून भी विषय विशेष पर वैचारिक समरूपता को वरीयता देते हैं, लेकिन मतभेद या असहमति की स्थिति में बहुमत से फैसला करने का प्रावधान है. सूत्रों के अनुसार, लवासा ने अरोड़ा को लिखे तल्ख पत्र में कहा था कि जब से बैठक में अल्पमत के फैसलों को दर्ज नहीं किया जा रहा है, तब से उन्हें मजबूरन खुद को आयोग की बैठकों से अलग करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि उनके असहमति के फैसले को रिकॉर्ड में दर्ज नहीं करने के कारण बैठकों में उनकी मौजूदगी ‘निरर्थक’ हो जाती है.
पीएम का बयान, जिस पर मचा है घमासान
महाराष्ट्र के वर्धा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अप्रैल को कहा था, ‘कांग्रेस ने हिंदुओं का अपमान किया और देश के लोगों ने पार्टी को चुनाव में दंडित करने का फैसला किया है. इस पार्टी के नेता अब उन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ने से डर रहे हैं, जहां बहुसंख्यक जनसंख्या का प्रभाव है. इसी वजह से वे ऐसे स्थानों पर शरण लेने के लिए बाध्य हैं, जहां बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हैं.’
ईमानदार अफसर की है अशोक लवासा की छवि
1980 बैच के रिटायर्ड अशोक लवासा को 2018 में चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था. हरियाणा कैडर के अधिकारी लवासा पहले नागरिक उड्डयन और पर्यावरण मंत्रालय में सचिव रह चुके हैं. 2017 में वित्त सचिव के पद से रिटायर हुए थे. हरियाणा में उनकी छवि एक ईमानदार अधिकारी की रही है.