नयी दिल्ली : जनरल वीके सिंह के बारे में एक कहावत सच साबित होती है कि एक फौजी, हमेशा फौजी ही रहता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में शामिल किये गये जनरल सिंह ने अपने जुझारू तेवरों का बखूबी परिचय दिया है. गुरुवार को उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की पहली पारी में विदेश राज्य मंत्री के रूप में सिंह ने युद्धग्रस्त यमन में साल 2015 में चलाये गये आपरेशन राहत में चुनौतीपूर्ण अभियान की कमान संभाली. इस अभियान के दौरान यमन से 4800 भारतीयों और अन्य देशों के 1972 नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था. जुलाई 2016 में भी जनरल वीके सिंह ने एक बार फिर से हिंसाग्रस्त दक्षिणी सूडान में आॅपरेशन संकट मोचन की कमान संभाली और वहां फंसे भारतीय नागरिकों को निकाला. उन्होंने कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मामलों में भारत के प्रतिनिधि के रूप में शानदार भूमिका निभायी. इसके अलावा एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबाई द्वीपों तथा यूरोप में विशेष कार्यक्रमों में शामिल हुए.
राजनीति में शामिल होने से पहले 68 वर्षीय जनरल सिंह सेनाध्यक्ष थे. वे परम विशिष्ट सेवा मैडल, अति विशिष्ट सेवा मैडल, युद्ध सेवा मैडल जैसे सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं. सेनाध्यक्ष रहते उनके साथ कुछ विवाद भी जुड़े थे. जब वह सेनाध्यक्ष बने तब उन्होंने दावा किया कि वह 1951 में पैदा हुए थे न कि 1950 में जैसा कि सेना के आधिकारिक रिकार्ड में दर्ज है. वह 31 मार्च 2010 में सेनाध्यक्ष बने और 31 मई 2012 को इसी पद से सेवानिवृत्त हुए. जनरल सिंह एक मार्च 2014 को भाजपा में शामिल हुए और 2014 लोकसभा चुनाव में गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र से पहली बार चुनाव मैदान में उतरे और विजयी हुए. सिंह इंडियन पोलो एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं तथा टेनिस, गोल्फ और बैडमिंटन के अलावा घुड़सवारी में भी रुचि रखते हैं. अपनी आत्मकथा करेज एंड कंविक्शन में सिंह ने दावा किया है कि तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सेना की तैनाती के खिलाफ आवाज उठाना रास नहीं आया था.