मोदी-जिनपिंग वार्ता से संबंधों में कितना होगा सुधार

अमलेश नंदन प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने ब्रिक्‍स सम्‍मेलन के दौरान ब्राजील के फोर्टलेजा में चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. दोनों के बीच 80 मिनटों तक बातवीत हुई जिसे भारत चीन संबंधों में सुधार का घोतक बताया जा रहा है. अब देखना यह है कि इस मुलाकात से भारत और चीन के संबंधों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 15, 2014 6:20 PM

अमलेश नंदन

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने ब्रिक्‍स सम्‍मेलन के दौरान ब्राजील के फोर्टलेजा में चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. दोनों के बीच 80 मिनटों तक बातवीत हुई जिसे भारत चीन संबंधों में सुधार का घोतक बताया जा रहा है. अब देखना यह है कि इस मुलाकात से भारत और चीन के संबंधों में कितनी सुधार होती है. चीन के साथ भारत के संबंध काफी पुराने हैं.

दोनों देशों में कई वर्षों तक काफी मैत्री संबंध भी रहे हैं. इस वार्ता के बाद विदेश मामलों के जानकारों, विद्वानों और वरिष्‍ठ पत्रकारों के बीच विवाद खत्‍म होने के कयास लगाये जा रहे हैं. इधर चीन की ओर से भारत को अपने यहां आने का भी न्‍येता दिया गया है. मोदी ने इस मुलाकात को आपसी संबंधों में सुधार के लिए काफी महत्‍वपूर्ण बताया है

वाजपेयी ने भी संबंध सुधारने का किया था प्रयास

2003 में चीन दौरे पर गये तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चीन के साथ संबंध सुधारने का भरपूर प्रयास किया था. उन्‍होंने तिब्‍बत मामले पर चीन से गंभीर वार्तालाप कर उसे सुलझाने का पूरा प्रयास किया था. वाजपेयी और चीन के प्रधानमंत्री वन चा पाओ ने उस समय चीन व भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये. चीन व उसके पड़ोसी देशों के राजनयिक संबंधों के इतिहास में ऐसे ज्ञापन कम ही जारी हुए हैं.

दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा सम्पन्न इस ज्ञापन में दोनों देशों ने और साहसिक नीतियां अपनायीं, जिन में सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधियों को नियुक्त करना और सीमा समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना आदि शामिल था. चीन और भारत के इस घोषणापत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन का एक अभिन्न और अखंड भाग है.

सीमा समस्या के हल के लिए चीन व भारत के विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर विचार विमर्श किये जायेंगे. वर्ष 2004 में चीन और भारत ने सीमा समस्या पर यह विशेष प्रतिनिधि वार्ता व्यवस्था स्थापित की गयी. भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा था कि इतिहास से छूटी समस्या की ओर हमें भविष्योन्मुख रुख से प्रस्थान करना चाहिए. इसके अलावे कई बार चीनी और भारतीय उच्‍चाधिकारी भी संबंधों में सुधार के लिए दोनों देशों का दौरा कर चुके हैं.

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर चीन का हमला

पिछले कई वर्षों से चीन ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर जोरदार हमला किया है. भारतीय बाजारों में चीनी वस्‍तुओं की जबरदस्‍त मांग है. चीन सस्‍ते सामानों की आड में भारतीय बाजारों में घटिया क्‍वालिटी की सामानें लगातार भेज रहा है. सीमा शुल्‍क बचाने के लिए चीन में निर्मित सामानों पर भारतीय मुद्रा में काफी कम मूल्‍य अंकित होते हैं. परंतु वही सामान भारतीय बाजारों में कई गुणा बढे दामों पर बेचे जाते हैं. संबंध सुधरने में सरकार को दन बातों पर भी ध्‍यान देना चाहिए. क्‍या केवल सीमा विवाद खत्‍म करने से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में चीन का हस्‍तक्षेप कम हो जायेगा.

क्‍या भारत चीन सीमा विवाद का निकलेगा हल

भारत और चीन के बाद सीमा को लकर कई विवाद हैं. भारत और चीन की सीमाएं भी काफी लंबी हैं. दलिया हिल, मिरी हिल, मिसरी हिल सहित कई बडे क्षेत्र पर दोनों देशों का दावा काफी पुराना है. पिछले छह दशकों में भारत में कितनी ही सरकारे बदली. लेकिन कोई भी सरकार इस विवाद को समाप्‍त नहीं कर पायी. इसके अलावे सीमावर्ती भारतीय चौकियों पर हमले और कब्‍जा करने में चीन कई बार संलिप्‍त रहा है.

ऐसे में इस विवाद का हल निकालना भी मौजूदा भारत सरकार के लिए एक बडी चुनौती है. चीन पूरे अरूणांचल प्रदेश को भी अपना ही हिस्‍सा बताता है. पिछले साल चीन की ओर से जारी नक्‍शे में जम्‍मू-कश्‍मीर को भी चीन का हिस्‍सा दिखाया गया था. तिब्‍बत के लोगों को भी भारत से मैत्री संबंध रखने के कारण चीनी सैनिको द्वारा पीडित किया जाता रहा है.

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