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जानें, आखिर सीसैट को लेकर परीक्षार्थी क्यों मचा रहें हैं बवाल

यूपीएससी सिविल सर्विसेस की परीक्षा की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों का 2011 में लागू हुए सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है .यह मामला आज जोर-शोर से लोकसभा में भी उठा. इसके बाद आज सरकार ने विवाद को सुलझाने तक परीक्षा लेने से मना किया है. आज भी लगभग 10 हजार छात्रों […]

यूपीएससी सिविल सर्विसेस की परीक्षा की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों का 2011 में लागू हुए सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है .यह मामला आज जोर-शोर से लोकसभा में भी उठा. इसके बाद आज सरकार ने विवाद को सुलझाने तक परीक्षा लेने से मना किया है. आज भी लगभग 10 हजार छात्रों ने यूपीएससी भवन के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया. आखिर परीक्षार्थी क्यों कर रहें हैं इसका विरोध, इसको लेकरयूपीएससी में सी-सैट प्रारुप को लेकर जानें विस्तार से-

क्या है सीसैट

वर्ष 2011 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने अपनी प्रारंभिक परीक्षा के पाठ्यक्रम के अंतर्गत कॉमन सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) को जोड़ा. इसके तहत 400 अंकों की परीक्षा में 200 अंकों का सामान्य अध्ययन और 200 अंकों का सीसैट होता है. इसका उद्देश्य यह था कि आयोग द्वारा उन विद्यार्थियों का चयन हो सके, जिनमें प्रशासनिक क्षमता हो लेकिन सीसैट उतना अच्छा परिणाम नहीं दे सका. क्योंकि एक तरफ तो प्रारंभिक परीक्षा कुछ खास पृष्ठभमि के लोगों के लिए बिल्कुल आसान हो गया कुछ के लिए यह काफी मुश्किल हो गया. मुख्य परीक्षा के अंदर प्रारंभिक परीक्षा पास करनेवालों का प्रदर्शन लगातार गिरता चला जा रहा है.

गैर-इंगलिश भाषी छात्र क्यों कर रहें हैं इसका विरोध

हिंदी भाषी छात्र मानते हैं कि सी-सैट परीक्षा अंग्रेजी माध्यम में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए ज़्यादा अनुकूल है. उनके अनुसार हिन्दी भाषा में दिये गये अनुवाद काफी जटिल होते हैं. उनमें से बहुत ऐसे अंग्रेजी शब्दों का हिन्दी अनुवाद ऐसा होता है कि जो इतना जटिल और भ्रामक होता है कि समझना मुश्किल होता है. दूसरी ओर उसमें यह भी स्पष्ट किया हुआ रहता है कि अंग्रेजी के प्रश्न ही मानक हैं अर्थात किसी तरह की त्रुटि की स्थिति में अंग्रेजी ही मान्य होता है.छात्रों का आरोप है कि इससे हिन्दी भाषी सफल छात्रों की संख्या में काफी गिरावट आयी है.

क्या कहते हैं आंकडे़

एक आंकड़े के मुताबिक 2013 की सिविल सेवा परीक्षा में सफल हिंदी छात्रों का प्रतिशत मात्र 2.3 ही है. जबकि 2003 से 2010 के बीच ऐसे छात्रों का प्रतिशत हमेशा 10 से ज़्यादा रहा है. 2009 में यह प्रतिशत 25.4 तक था. 2013 की परीक्षा में कामयाब हुए 1122 छात्रों में सिर्फ़ 26 हिंदी माध्यम के हैं. यह भी देखा गया है कि सी-सैट से पहले मुख्य परीक्षा में बैठने वाले छात्रों में हिंदी और अन्य भाषाओं के छात्रों का प्रतिशत 40 से ज़्यादा होता था, जबकि सी-सैट के बाद इसमें भारी गिरावट आई.

निगवेकर समिति ने भी सी-सैट की आलोचना की थी

यूपीएससी की निगवेकर समिति ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सी-सैट परीक्षा शहरी क्षेत्र के अंग्रेज़ी माध्यम के छात्रों को फ़ायदा पहुंचाती है. इस संदर्भ में निगवेकर समिति की आलोचनात्क टिप्पणी तो हुई है, लाल बहादुर शास्त्री अकादमी भी यह टिप्पणी दे चुकी है कि ‘सीसैट सबके लिए समान अवसर नहीं उपलब्ध करा पा रहा है.

कहा गया कि ग़रीब परिवार अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल नहीं भेज पाते. न वे उन्हें इंजीनियरिंग या मेडिकल की महंगी शिक्षा दे पाते हैं. वे उन्हें सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रेरित करते हैं, पर सी-सैट ने इसे भी मुश्किल कर दिया है.

क्या है हिन्दी भाषी छात्रों की मुश्किलें

यूपीएसी की परीक्षा परिणाम में सामान्यतया यह देखा जाता है कि 60 प्रतिशत मार्क्स लाने वाले परीक्षार्थी टॉप कर जाते हैं.अंगरेजी माध्यम के छात्र इंगलिश कॉप्रीहेंशन के नौ प्रश्नों में हिंदीवालों से कम से कम तीन सवाल ज्यादा बना लेते हैं और वह भी 5 मिनट कम समय में.

इंजीनियरिंग, पीओ, एसएससी, मैनेजमेंट जैसी पृष्ठभूमि के लोग मानविकी के विद्यार्थियों की तुलना में गणित एवं तर्कशक्ति परीक्षा के 32 सवालों में कम से कम 10 मिनट के कम समय में इसका उत्तर निकाल लेते हैं. इसके अलावा चार से पांच सवाल के लाभ की स्थिति में भी होते हैं.

प्रबंधन, अभियांत्रिकी जैसी पृष्ठभूमि के लोग तेज गति से पढ़ने के अभ्यास में तीन से चार साल गुजार चुके हैं. इसलिए वे 32 सामान्य कॉम्प्रीहेंशन में कम से कम 10 मिनट का समय बचा लेते हैं. कॉम्प्रीहेंशन का हिंदी रूप चूंकि अनुदित होता है, इसलिए यह और भी जटिल हो जाता है, जो छात्रों की स्थिति को और भी खराब कर देता है. ग्रेजुएट मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट (जीमैट), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) एवं अन्य प्रबंधन परीक्षाओं की तैयारी किये छात्र/ छात्राएं तो कॉम्प्रीहेंशन में और भी तीव्र एवं सटीक होते हैं, क्योंकि उन्होंने पूर्व में इसकी अच्छी तैयारी की होती है.

एक पहलू यह भी

यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों में एक तबका ऐसा भी है, जो पूर्व की परीक्षाओं की तैयारी की बदौलत ही इसमें 80 से 90 प्रतिशत तक नंबर ले आता है. पिछले तीन वर्षो में हजारों विद्यार्थी ऐसे हैं, जो कभी साक्षात्कार तक पहुंच गये थे, वे अब प्रारंभिक परीक्षा में असफल हो जाते हैं. इसका कारण है कि प्रारंभिक परीक्षा का कटऑफ मार्क्‍स लगातार बढ़ रहा है, जो इस तरह की परीक्षा के विशेषज्ञों के अलावा अन्य लोगों के लिए भी लगभग असाध्य है. मुख्य परीक्षा का प्राप्तांक पिछले तीन वर्षो से लगातार गिरते हुए कम से कम 20 प्रतिशत नीचे आ गया है.

पहले भी हिन्दी के साथ होता रहा है भेदभाव

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यूपीएससी की वास्तविक परीक्षा लिखित और साक्षात्कार की परीक्षा है. शामिल होनेवाले प्रतिभागियों की भीड़ की छटनी के लिए प्रारंभिक परीक्षा को शामिल किया गया है और सीसैट का परिणाम यह है कि मुख्य परीक्षा के गंभीर विद्यार्थी ही इससे छंट जा रहे हैं. पहले भी देखा गया है कि हिन्दी भाषी छात्रों से अंग्रेजी में साक्षात्कार लिया जाता रहा है. इसको लेकर भी एक बार छात्रों ने आपत्ति की थी.

गौरतलब है कि यूपीएससी में करीब 60 फीसदी अंक लाने वाले परिक्षार्थी टॉपर बन जाते हैं. इसमें से अधिकांश वे परीक्षार्थी होते हैं जिनका इंगलिश बैकग्राउंड होता है. उनके मार्क्स मुख्य परीक्षा में इतने अच्छे आते हैं कि उनके सेलेक्शन के लिए इंटरव्यू विशेष मायने नहीं रखता. एक औसत मार्क्स आने पर भी उनका चयन हो जाता है. वहीं हिन्दी भाषी छात्रों का चयन बहुत हद तक उनके साक्षात्कार के मार्क्स पर निर्भर करता है क्योंकि हिन्दी माध्यम में मुख्य परीक्षा में सामान्यतया अच्छे मार्क्स् नहीं आ पाते हैं चाहे इसका वजह जो भी हो. गौरतलब है कि यूपीएससी के इतिहास में कोई भी हिन्दी भाषी परीक्षार्थी नंबर वन रैंक में नहीं आया हैं.

इस वर्ष यूपीएससी परीक्षा में हिन्दी भाषी परीक्षार्थियों के खराब परीक्षा परिणाम पर दिल्ली में एक हिन्दी भाषी परीक्षार्थी की टिप्पणी गौरतलब है- ‘यूपीएससी में 2013 के परीक्षा परिणाम से तो ऐसा लगता है कि आने वाले समय में मानविकी के और इसमें भी खासकर देशी भाषा के लोग यूपीएससी की परीक्षा वैसे ही पास कर पाएंगे जैसे कि अंगरेजी शासन के दौरान कुछ भारतीय भी पास कर जाते थे.’

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