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क्या अरुणा शानबाग के साथ न्याय कर पायेगा समाज?

सुप्रीम कोर्ट ने आज इच्छामृत्यु को वैध बनाये जाने की याचिका पर विचार के लिए उसे संविधानपीठ को सौंप दिया. गौरतलब है कि अरुणा शानबाग पिछले 41 वर्षों से कोमा में हैं, डॉक्टरों का कहना है कि वे कभी ठीक नहीं होंगी. उन्हें इस स्थिति से मुक्ति दिलाने के लिए इच्छामृत्यु को वैध बनाने की […]

सुप्रीम कोर्ट ने आज इच्छामृत्यु को वैध बनाये जाने की याचिका पर विचार के लिए उसे संविधानपीठ को सौंप दिया. गौरतलब है कि अरुणा शानबाग पिछले 41 वर्षों से कोमा में हैं, डॉक्टरों का कहना है कि वे कभी ठीक नहीं होंगी. उन्हें इस स्थिति से मुक्ति दिलाने के लिए इच्छामृत्यु को वैध बनाने की याचिका कोर्ट में दाखिल की गयी है.

जिसपर आज कोर्ट ने सुनवाई करते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भेजा है और इस मामले को विचार के लिए संविधान पीठ के पास भेजा है. हालांकि इस मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से यह कहा गया है कि इच्छामृत्यु आत्महत्या के समान है, इसलिए इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. यहां सवाल यह है कि आखिर एक ऐसे व्यक्ति को क्यों जिंदा रखा जाये, जिसके जिंदा रहने के कोई मायने नहीं हैं.

कौन है अरुणा शानबाग

अरुणा शानबाग मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में जूनियर नर्स के पद पर कार्यरत थीं. 27 नवंबर 1973 को उसी अस्पताल के एक सफाई कर्मचारी सोहनलाल ने उसके साथ तब बलात्कार किया, जब वह अपने कपड़े बदल रही थी. सोहनलाल ने अरुणा का गला कुत्ते को बांधने वाले चेन से बांध दिया था, जिसके कारण अरुणा के मस्तिष्क में ऑक्सीजन नहीं जा पाया और वह कोमा में चली गयी. दुर्घटना के बाद से आज तक अरुणा कोमा में है. उसे किसी बात की सुध नहीं है. उस वक्त अस्पताल के डीन ने पीडि़ता को सामाजिक बुराइयों से बचाने और उसकी होनेवाली शादी को देखते हुए पुलिस में डकैती और हत्या के प्रयास का केस दर्ज कराया था. साथ ही गुदा रेप की बातों को उजागर किया था.

सोहनलाल की गिरफ्तारी हुई और उसे डकैती और हमला करने के आरोपों में दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने सात साल की सजा सुनायी. उसपर यौन हिंसा या छेड़छाड़ का मामला भी नहीं चलाया गया. लेकिन इस दरिंदे के कर्मों की सजा अरुणा आज भी भुगत रही है.

कब हुई इच्छामृत्यु की मांग

वर्ष 2010 में अरुणा की ओर से उसकी दोस्त पिंकी विरानी ने कोर्ट में इच्छामृत्यु के लिए याचिका दायर की थी. उन्होंने अरुणा की स्थिति का विश्लेषण डॉक्टरों की रिपोर्ट पर किया था. वर्ष 2011 में कोर्ट ने एक पैनल का गठन अरुणा की जांच के लिए गठित किया. इस पैनल के डॉक्टरों ने अरुणा की स्वास्थ्य जांच की और बताया कि अब वह कभी ठीक नहीं हो सकती हैं.

अरुणा की इच्छामृत्यु पर नर्सों को है एतराज

पिछले 41 वर्षों से किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में अरुणा की देखभाल में जुटीं नर्सों को इस बात पर बहुत आपत्ति है कि अरुणा को इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी जाये. इनका कहना है कि हम एक बच्चे की तरह उसकी देखभाल करते हैं और वह हमें बोझ नहीं लगती है.इसलिए उसकी जिंदगी छीनने का निर्णय सही नहीं होगा.

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